MPPSC Main Exam 2025 Case, MP High Court: मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) द्वारा आयोजित राज्य सेवा परीक्षा 2025 को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। जबलपुर हाईकोर्ट ने इस मामले में एक बार फिर सख्त रुख अपनाते हुए MPPSC के जिम्मेदार अधिकारी को तलब किया है और राज्य सरकार से भी दो हफ्तों के भीतर जवाब मांगा है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि समय पर जवाब नहीं मिला तो सरकार पर ₹15,000 का जुर्माना लगाया जाएगा।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, यह विवाद उस वक्त शुरू हुआ जब MPPSC द्वारा घोषित प्रारंभिक परीक्षा के नतीजों में आरक्षित वर्ग के प्रतिभाशाली छात्रों को अनारक्षित वर्ग में शामिल नहीं किया गया। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि आयोग ने नियमों और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी करते हुए सामान्य वर्ग की सभी सीटें केवल अनारक्षित छात्रों के लिए आरक्षित कर दीं।
कट-ऑफ मार्क्स सार्वजनिक करने के आदेश
15 अप्रैल को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने MPPSC द्वारा सीलबंद लिफाफे में जमा किए गए कट-ऑफ मार्क्स को खोला और पाया कि उसमें कोई गोपनीय दस्तावेज नहीं है। इस पर कोर्ट ने उन्हें तुरंत सार्वजनिक करने का आदेश दिया और याचिकाकर्ताओं को एक-एक कॉपी प्रदान करने को कहा।
बिना अनुमति परीक्षा नहीं
हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने स्पष्ट किया है कि जब तक कोर्ट की अनुमति नहीं मिलती, MPPSC मुख्य परीक्षा (MPPSC Main Exam 2025) आयोजित नहीं की जा सकती। कोर्ट ने आयोग को निर्देशित किया है कि वर्गवार कट-ऑफ अंक स्पष्ट रूप से जारी किए जाएं और बताया जाए कि कितने आरक्षित वर्ग के मैरिटोरियस छात्रों को अनारक्षित सीटों पर चुना गया है।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि MPPSC मुख्य परीक्षा 2025 पर लगी अस्थायी रोक फिलहाल जारी रहेगी, और अब 6 मई 2025 को अगली सुनवाई तय की गई है। इस सुनवाई में आयोग को स्पष्ट और तथ्यात्मक जवाब के साथ पेश होना अनिवार्य होगा।

MPPSC ने की स्टे ऑर्डर हटाने की मांग
एमपीपीएससी की ओर से अधिवक्ता ने हाईकोर्ट में अपील की कि स्थगन आदेश (Stay Order) के कारण मुख्य परीक्षा आयोजित नहीं हो पा रही है, जिससे हजारों छात्रों का शैक्षणिक नुकसान हो सकता है। आयोग ने बताया कि मुख्य परीक्षा की संभावित तारीख 9 जून 2025 तय की गई है।
इस पर हाईकोर्ट ने स्थगन आदेश वापस नहीं लिया, लेकिन मौखिक रूप से यह आश्वासन जरूर दिया कि मामले की अगली सुनवाई 6 मई को होगी, और चूंकि परीक्षा एक महीने बाद है, इसलिए MPPSC अपनी तैयारी जारी रख सकता है।
‘परीक्षा परिणाम में जानबूझकर पारदर्शिता नहीं बरती गई’
याचिकाकर्ता सुनीत यादव और अन्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर व विनायक प्रसाद शाह ने दलील दी कि MPPSC ने परीक्षा परिणाम में जानबूझकर पारदर्शिता नहीं बरती। आयोग ने 5 मार्च को घोषित परिणाम में वर्गवार कट-ऑफ अंक जारी नहीं किए, जो कि पूर्व की सभी परीक्षाओं में किया जाता रहा है।
याचिकाकर्ता पक्ष का यह भी कहना है कि आयोग ने अपनी गलती छुपाने के लिए कट-ऑफ अंक सीलबंद लिफाफे में कोर्ट को सौंपे थे। जबकि कोर्ट ने साफ कर दिया कि इसमें कोई गोपनीयता नहीं है और इसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
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कोर्ट का अल्टीमेटम- दो हफ्ते में दे जवाब, वरना लगेगा जुर्माना
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को दो हफ्तों के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो ₹15,000 का जुर्माना लगाया जाएगा। साथ ही MPPSC को निर्देशित किया गया है कि मामले से संबंधित अधिकारी अगली सुनवाई पर कोर्ट में मौजूद रहें।
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