भोपाल। MP BOARD: माध्यमिक शिक्षा मंडल (MPBSE) यानी एमपी बोर्ड ने परीक्षा (board exam) से जुड़ा एक महत्वपूर्ण आदेश आया है, जो अभिभावक की जेब पर असर डालेगा।
यदि किसी स्टूडेंट की 70 फीसदी न्यूनतम अटेंडेंस नहीं है तो उसे नियमित की जगह स्वाध्यायी के रूप में परीक्षा देने होगा। इसके लिए बोर्ड ने 7 गुना से अधिक फीस में बढ़ोत्तरी की है।
इतनी जमा करनी होगी फीस
माध्यमिक शिक्षा मंडल के परीक्षा नियंत्रक (examination controller) की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि ऐसे स्टूडेंट जिनकी स्कूल में न्यूनतम उपस्थिति भी नहीं है, उन्हें 150 रुपये की फीस जमा करना होगी।
बता दें कि इससे पहले पिछले शैक्षणिक सत्र (academic session) तक यह फीस सिर्फ 20 रुपये थी, जिसमें अब 7 गुना से अधिक तक की बढ़ोत्तरी कर दी है।
स्कूलों को लेना होगा विशेष अनुमति
प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन का आरोप है कि एमपी बोर्ड सरल प्रक्रिया को जटिल कर रहा है। पिछले सत्र तक बोर्ड जनवरी फरवरी में पोर्टल ओपन करता था और स्कूल स्टूडेंट की जानकारी उसमें दर्ज कर देते थे।
इसके बाद स्टूडेंट (student) को स्वाध्यायी के रूप में परीक्षा देने की अनुमति मिल जाती थी। नये आदेश में इसके लिए विशेष अनुमति की बात कही गई है, जिसके लिए संबंधित स्टूडेंट की सूची मांगी गई है।
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25 जनवरी तक भेजना है जानकारी
स्कूल के प्राचार्य संबंधित स्टूडेंट की सूची रोल नम्बर सहित संबंधित जिले के जिला शिक्षा अधिकारी (district education officer) के माध्यम से 10 से 25 जनवरी तक Online पोर्टल से G2G लॉगिन के माध्यम से माशिमं मुख्यालय को भेजेंगे।
यह है परीक्षा का शेड्यूल
12वीं की परीक्षा 6 फरवरी से लेकर 5 मार्च तक आयोजित होगी। वहीं प्रैक्टिकल एग्जाम सामान्य छात्रों के लिए (नियमित) 5 मार्च से 20 मार्च और प्राइवेट छात्रों के लिए (स्वाध्यायी) 6 फरवरी से 5 मार्च के बीच आयोजित किये जाएंगे।
वहीं 10वीं की परीक्षा 5 फरवरी से लेकर 28 फरपरी तक होंगी। प्रैक्टिकल एग्जाम सामान्य छात्रों के लिए (नियमित) 5 मार्च से 20 मार्च और प्राइवेट छात्रों के लिए (स्वाध्यायी) 5 फरवरी से 28 मार्च के बीच आयोजित किये जाएंगे।
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बोर्ड सरल प्रक्रिया को कर रहा कठिन
सोसायटी फॉर प्राइवेट स्कूल डायरेक्टर्स मध्य प्रदेश के संस्थापक दीपक सिंह राजपूत ने कहा कि बोर्ड सामान्य प्रक्रिया को जटिल यानी कठिन बना रहा है।
पहले जो प्रक्रिया स्वत: हो जाती थी, अब उसके लिए विशेष अनुमति लेना है। पहले 20 रुपये शुल्क था, जिसे बढ़ाकर 150 रुपये कर दिया।
बोर्ड और विभाग की कोशिश शिक्षा को सरल और सुलभ बनाने की होना चाहिए, न की इससे पैसा कमाने की।
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