श्योपुर। देश के कई राज्यों में अभी भी पर्दा प्रथा है। लेकिन हिंदुस्तान के दिल में बसे मध्य प्रदेश में एक और अनोखी प्रथा है। यहां के श्योपुर जिले में रहने वाली आदिवासी समाज की महिलाएं बुजुर्गों के सामने मान-सम्मान में सिर्फ घूंघट ही नहीं करती, बल्कि उनके सामने चप्पल भी नहीं पहनती हैं। इस अनोखी प्रथा को श्योपुर से तकरीबन 65 किमी दूर आमेठ की महिलाएं आज भी निभाती हैं।
जितने कुनबे, उतनी प्रथा
बतादें कि मध्यप्रदेश के सबसे पिछड़े जिले के रूप में श्योपुर को गिना जाता है। कहने को तो यह मध्य प्रदेश का एक जिला है, लेकिन परंपरा और सांस्कृतिक रूप से यह राजस्थान के करीब है। जिले में आदिवासियों के कई कुनबे हैं। जितने कुनबे हैं उतनी प्रथाएं भी हैं। इन्हीं प्रथाओं में से एक प्रथा है महिलाओं का बुजुर्गों के सामने चप्पल नहीं पहनना।
गांव में 1150 लोग रहते हैं
250 घरों की आबादी वाले आमेठ गांव में 1150 लोग रहते हैं। इनमें से 600 पुरूष और 350 महिलाएं है, जबकि बाकी बच्चे हैं। बतादें कि आमेठ गांव में सैकड़ों वर्षों से यह प्रथा चलती आ रही है। प्रथा के अनुसार महिलाएं बुजुर्गों के सामने कभी भी चप्पल पहनकर नहीं जाती हैं। इतना ही नहीं अगर किसी घर में कोई बुजुर्ग है तो भी महिलाएं उनके घर के सामने से चप्पलें पहनकर नहीं गुजर सकती हैं।
गांव के बाहर जाकर चप्पल पहनती हैं
यही कारण है कि महिलाएं गांव में बिना चप्पल के ही ज्यादातर घूमती हैं। अगर किसी महिला को गांव से बाहर जाना होता है तो वो हाथ में चप्पल लेकर पहले गांव से बाहर जाती है। उसके बाद चप्पल पहनती है। मालूम हो कि इस गांव को आज से लगभग हजार वर्ष पूर्व राजा बिट्ठल दा ने बसाया था। इनकी सीमा में बरगवां, गोरस, पिपराना, कर्राई सहित कराहल क्षेत्र का 30 किमी का इलाका आता था। माना जाता है कि राजा बिट्ठल दा के जमाने से ही महिलाएं बुजुर्गों के सामने से चप्पल पहन कर नहीं निकलती हैं।
स्थानीय लोगों का क्या मानना है?
गांव में आज भी इस प्रथा को आदिवासी समाज के लोगों ने जिंदा रखा है। हालांकि, वर्तमान युग में इस प्रथा को ज्यादातर लोग कुप्रथा मानते हैं। वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि यह हमारे समाज की रीति है, जो हजारों वर्षों से चलती आ रही है। वहीं गांव के सरपंच का कहना है कि गांव में महिलाओं के चप्पल पहनने पर कोई रोक नहीं है या इसको लेकर कोई नियम है, लेकि आदिवासी समाज के लोग अपनी प्रथा को बचाकर रखना चाहते हैं इसलिए आज भी ये प्रथा जिंदा है।
महिलाएं इस प्रथा को खुद ही पालन करती हैं
गांव की महिलाओं को भी इस प्रथा से कोई दिक्कत नहीं है। वे खुद ही इसका बखूबी पालन करती हैं। आज तक प्रथा तोड़ने का मामला गांव में नहीं आया है। हालांकि कई बार गलती से महिलाओं ने ये प्रथा तोड़ी है। अगर कोई महिला इस प्रथा को तोड़ती है तो मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उन्हें सजा के तौर पर अपनी चप्पल सिर पर रखकर घर तक जाना पड़ता है।