नारों के बलबूते जीतने का दम भर रहीं पार्टियां, एक—दूसरे को ठहरा रहे गदृार

भोपाल. प्रदेश में 28 सीटों पर हो रहे उपचुनाव में नारों को खूब उछाला जा रहा है। प्रमुख दलों के रणनीतिकार मान रहे हैं कि नारों का जनमानस पर सीधा और गहरा असर होता है। नारों के जरिए चुनाव जंग जीतने का ख्वाब देख रहे राजनीतिक दलों के रणनीतिकार विरोधी दल के नेताओं को गदृार कहने तक से नहीं चूक रहे। नारों का जनता पर कितना असर हुआ यह तो परिणाम ही बताएंगे, लेकिन फिलहाल तो चुनावी जंग में सबसे ज्यादा गूंज इन नारों की ही सुनाई दे रही है।
कभी इंदिरा गांधी के गरीबी हटाओ नारे का असर आम आदमी के जनमानस पर दिखा था। इसके साथ चुनावी माहौल बदलता रहा और नए नए नारे बाद के चुनावों में सुनाई देते रहे। चुनावी रणनीतिकार मानते हैं कि जनता पर समसामयिक मुदृदों पर प्रहार करने वाले नारों का अधिक असर होता है। देखा गया है कि पूर्व् के कुछ चुनाव में नारों ने भी अहम भूमिका निभाई है।
दिग्गी राजा के उस नाम को आज तक नहीं भुला पाए
दिग्विजय सिंह के शासन को पलटने में नारों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। प्रदेश की पूर्व सीएम उमा भारती ने तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को मिस्टर बंटाधार का नाम दिया था। चुनाव तो आते जाते रहे, लेकिन दिग्गी राजा का यह राजनीतिक नाम आज तक लोगों की जुबान पर जब तब आ ही जाता है। वे इस नाम से अभी तक पिंड नहीं छुडा पाए।
बदलते रहे नारे
. वर्ष 2008 में फिर भाजपा, फिर शिवराज का नारा दिया और जीत हासिल की।
. वर्ष 2013 में भाजपा ने नरेन्द्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान को एक पर एक ग्यारह का नारा दिया था।
. वर्ष 2018 के चुनाव में भाजपा का नारा था माफ करो महाराज, हमारा नेता शिवराज।
. वर्ष 2018 में कांग्रेस का कहना साफ, हर किसान का कर्ज होगा माफ का नारा देकर भाजपा से सत्ता छीनी।
. वर्ष 2020 के उपचुनाव में कांग्रेस का नारा गदृदारी बनाम वफादारी और 15 साल बनाम 15 महीने का नारा देकर भाजपा को सबक सिखाना चाहती है, वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया अब कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को ही गदृदार ठहरा कर रहे हैं।