हाइलाइट्स
- उज्जैन के झलारिया पीर गांव में खाप पंचायत जैसा फैसला।
- मंदिर जमीन विवाद में पुजारी और परिवार का बहिष्कार।
- स्कूल से बच्चों को निकाला, पूजा कराने लगाई रोक।
Ujjain Pujari Family Boycott Case: मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। यहां झलारिया पीर गांव में एक सामाजिक पंचायत में हरियाणा की खाप पंचायत जैसी सख्ती दिखाते हुए मंदिर के पुजारी और उनके परिवार का बहिष्कार करने का फैसला सुनाया गया है। इस फरमान में पुजारी के बच्चों की पढ़ाई, पूजा-पाठ, बाल कटवाने और मजदूरी करने तक पर पाबंदी लगा दी गई है। इतना ही नहीं, यदि कोई इस फैसले का उल्लंघन करता है तो उस पर 51 हजार रुपए का जुर्माना लगाने की चेतावनी भी दी गई है। अब मामले में पुजारी की शिकायत के बाद कलेक्टर ने जांच के आदेश दिए हैं।
जानें क्या है पूरा मामला
उज्जैन जिले के झलारिया पीर गांव जिसकी आबादी लगभग 4 हजार है, इस गांव में देव धर्मराज मंदिर की देखरेख का जिम्मा पिछले कई वर्षों से पूनमचंद चौधरी और उनके परिवार के पास है। मंदिर से सटी लगभग 4 बीघा भूमि पर वे खेती कर अपने परिवार का गुजर-बसर करते आए हैं। पुजारी परिवार का कहना है कि कुछ ग्रामीण मंदिर की इस जमीन पर कब्जा जमाने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने मंदिर के जीर्णोद्धार के नाम पर चंदा तो इकट्ठा किया, लेकिन अब उसी राशि से मंदिर को दूसरी जगह शिफ्ट करने का प्रयास किया जा रहा है। जब परिवार ने इसका विरोध किया, तो उनके खिलाफ गांव में बहिष्कार का फरमान जारी कर दिया गया।
मंदिर परिसर में हुई बैठक, सुनाया फरमान
पुजारी पूनमचंद चौधरी के बेटे मुकेश चौधरी के मुताबिक, मंदिर की जमीन और जीर्णोद्धार को लेकर विरोध जताने के बाद गांव के कुछ प्रभावशाली लोगों ने उन्हें और उनके परिवार को निशाना बनाना शुरू कर दिया। इसी क्रम में 14 जुलाई को गांव के नागराज मंदिर परिसर में एक पंचायत बैठाई गई, जहां बड़ी संख्या में ग्रामीण जुटे।
माइक पर पढ़ा गया बहिष्कार का फरमान
इस पंचायत में दूसरी ग्राम पंचायत के सचिव गोकुल सिंह देवड़ा ने माइक पर बहिष्कार का फरमान पढ़कर सुनाया, जिसका वीडियो भी सामने आया है। वीडियो में साफ दिख रहा है कि गांव के कई लोगों ने हाथ उठाकर इस फैसले का समर्थन किया। जब एक ग्रामीण ने पुजारी के बच्चों को स्कूल से निकालने के निर्णय का विरोध किया, तो पंचायत की ओर से कहा गया कि यह सुझाव कुछ ग्रामीणों की ओर से आया था और इसलिए इसे निर्णय में शामिल किया गया है।
बच्चों को स्कूल से कर दिया बाहर
बहिष्कार का फैसला सुनाए जाने का सबसे बड़ा खामियाजा मासूम बच्चों को भुगतना पड़ा। पुजारी पूनमचंद चौधरी के बेटे ने बताया कि फैसले के अगले ही दिन गांव के प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाले उनके तीनों बच्चों 13 साल की संध्या (8वीं क्लास), 10 साल का सतीश (5वीं क्लास) और 6 साल का विराट (3वीं क्लास) को स्कूल प्रशासन ने स्कूल से निकाल दिया गया, बच्चों से कहा गया कि कि “आपके परिवार का सामाजिक विवाद चल रहा है, इसलिए बच्चों को पढ़ाना संभव नहीं।”
इस पूरी घटना में हैरानी तब हुई जब स्कूल प्राचार्य ने स्वीकार किया कि उन्होंने पंचायत द्वारा कराई गई सार्वजनिक मुनादी सुनकर यह फैसला लिया। अब सवाल उठ रहा है कि क्या बच्चों की शिक्षा पर भी खाप जैसी पंचायतों का दबाव हावी हो सकता है? और क्या किसी विवाद की कीमत मासूमों को पढ़ाई से वंचित करके चुकानी चाहिए?
जानिए क्या-क्या लगाए गए प्रतिबंध
गांव में खाप पंचायत जैसी सामाजिक बैठक में मंदिर के पुजारी पूनमचंद चौधरी और उनके परिवार पर कई गंभीर सामाजिक प्रतिबंध लगाए गए हैं। पंचायत के इस फैसले में ये फरमान सुनाए गए…
- पारिवारिक बहिष्कार: पुजारी पूनमचंद चौधरी, उनके बेटे मुकेश चौधरी और पूरे परिवार को सामाजिक रूप से बहिष्कृत कर दिया गया है।
- पूजा-पाठ पर रोक: कोई भी ब्राह्मण या पुरोहित उनके घर पूजा या धार्मिक अनुष्ठान के लिए नहीं जाएगा।
- दाढ़ी कटिंग पर रोक: गांव के कोई भी नाई इस परिवार के किसी सदस्य के बाल या दाढ़ी नहीं काटेगा।
- मजदूरी पर रोक: मजदूरों को पुजारी के खेत या मकान में काम करने से मना कर दिया गया है।
- सफाई सेवाएं रोकी गईं: सफाईकर्मी उनके घर साफ-सफाई नहीं करेगा, अगर कोई पशु मर जाए तब भी नहीं।
- समारोह में जानें पर रोक: परिवार को शादी-ब्याह या किसी भी सामाजिक आयोजन में न बुलाया जाएगा और न ही वे शामिल हो सकेंगे।
- सामाजिक मेलजोल बंद: गांव का कोई भी व्यक्ति उनके साथ बैठकर चाय-पानी नहीं पीएगा।
- बच्चों को स्कूल जाने पर रोक: उनके तीनों बच्चों को गांव के स्कूल से निष्कासित कर दिया गया है।
- जुर्माने की चेतावनी: यदि कोई व्यक्ति इन प्रतिबंधों का उल्लंघन करता है तो उस पर 51,000 रुपए का जुर्माना लगाया जाएगा।
सर्वसमाज ने लिया बहिष्कार का फैसला
मंदिर में हुई पंचायत में ग्राम पंचायत सचिव गोकुल सिंह देवड़ा ने माइक पर फैसला पढ़कर सुनाया। गोकुल सिंह देवड़ा ने बताया कि यह मंदिर सार्वजनिक संपत्ति है, जिसे गांव के लोगों ने मिलकर संवारने की पहल की थी। जीर्णोद्धार के लिए छह लाख रुपए का चंदा जुटाया गया, लेकिन पुजारी परिवार ने इसमें सहयोग नहीं किया।
देवड़ा ने कहा कि पुजारी पूनमचंद चौधरी को कई बार समझाने की कोशिश की गई, लेकिन वे विवाद सुलझाने के बजाय कोर्ट का रुख कर गए। उन्हें 14 जुलाई की पंचायत में बुलाया भी गया था, लेकिन न तो वे पहुंचे और न ही चौकीदार को ही वहां टिकने दिया गया। इसी के बाद सर्व समाज की बैठक में बहिष्कार का निर्णय लिया गया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मंदिर से जुड़ी भूमि का विवाद फिलहाल अदालत में विचाराधीन है, और अंतिम निर्णय न्यायालय द्वारा ही लिया जाएगा।
पुजारी ने कलेक्टर से लगाई न्याय की गुहार
मंदिर से जुड़े विवाद और सामाजिक बहिष्कार के बाद पुजारी पूनमचंद चौधरी ने उज्जैन कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर अपनी पीड़ा साझा की। उन्होंने शिकायत में बताया कि गांव में उन्हें और उनके परिवार को पूरी तरह से सामाजिक रूप से अलग-थलग कर दिया गया है। न तो उन्हें किसी सामाजिक कार्यक्रम में आमंत्रित किया जा रहा है और न ही मजदूरी करने वाले लोग अब उनके यहां काम करने आ रहे हैं।
पुजारी ने बताया कि इस बहिष्कार का असर उनके बच्चों की शिक्षा पर भी पड़ा है, जिन्हें स्कूल से निकाल दिया गया है। मामले की गंभीरता को देखते हुए कलेक्टर ने तत्काल जांच के निर्देश जारी कर दिए हैं, ताकि पीड़ित परिवार को न्याय मिल सके और मामले में समाधान निकाला जा सके।