MP Stubble Burning Impact Parali Jalane ke Nuksan: मध्यप्रदेश में खेतों में पराली (नरवाई) जलाने की आदत अब किसानों पर ही भारी पड़ रही है। हाल ही में हुई एक रिपोर्ट के मुताबिक, पराली जलाने से मिट्टी की ताकत तेजी से कम हो रही है, जिससे खेतों की पैदावार आधी रह गई है।
राज्य के 52 जिलों से पिछले एक महीने में लिए गए 8,000 मिट्टी के सैंपलों की जांच में चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं। इनमें से 1,700 सैंपलों में मिट्टी की उर्वरता 20 से 44 प्रतिशत तक घट चुकी है। रिपोर्ट के अनुसार, जिन खेतों में पहले एक एकड़ में 10 क्विंटल फसल होती थी, वहां अब यह घटकर महज 5.5 से 6 क्विंटल ही रह गई है।
जैविक खाद बनने की प्रक्रिया भी प्रभावित
रिपोर्ट में बताया गया कि 1,700 सैंपलों में से करीब 900 में मिट्टी में जैविक खाद बनने की प्रक्रिया भी गड़बड़ा गई है। यानी पराली जलाने से मिट्टी में मौजूद उपयोगी बैक्टीरिया जैसे राइजोबियम, एजोटोबेक्टर और फास्फेट घुलनशील बैक्टीरिया नष्ट हो रहे हैं, जो फसलों को जरूरी पोषक तत्व देने में मदद करते हैं।
सबसे ज्यादा प्रभावित जिले
नर्मदापुरम, सीहोर, विदिशा, इंदौर, उज्जैन, हरदा, रायसेन, देवास और भोपाल ऐसे जिले हैं जहां मार्च और अप्रैल के दौरान पराली जलाने की सबसे ज्यादा घटनाएं (MP Stubble Burning Impact in Hindi News ) दर्ज हुईं। अकेले नर्मदापुरम में 5,774 घटनाएं दर्ज की गईं, वहीं सीहोर में 2,416, विदिशा में 1,445, और इंदौर में 1,439।
मिट्टी की सेहत पर खतरा
कृषि विभाग के पूर्व संयुक्त संचालक पी.के. विश्वकर्मा ने कहा कि पराली जलाने से मिट्टी की प्राकृतिक खाद बनाने की क्षमता खत्म हो रही है और बारिश का पानी सोखने की ताकत भी कम होती जा रही है। अगर यही स्थिति रही तो आने वाले 10 से 12 सालों में मिट्टी की उत्पादकता 20 से 30 प्रतिशत या उससे भी कम रह जाएगी।
राज्य भर में मिट्टी की हो रही जांच
मध्यप्रदेश के 265 में से 255 लैब में मिट्टी की जांच हो रही है। सॉइल टेस्टिंग लैब के नोडल अधिकारी रामस्वरूप गुप्ता के मुताबिक, जिन इलाकों में पराली जलाने की घटनाएं ज्यादा हैं, वहां की मिट्टी की ताकत सबसे ज्यादा प्रभावित हुई है।