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MP: ऐसे मुख्यमंत्री की कहानी जो 'छांछ' पर छिड़कते थे जान, गांव से भोपाल लाने के लिए रखवाई थी स्पेशल जीप

MP: ऐसे मुख्यमंत्री की कहानी जो 'छांछ' पर छिड़कते थे जान, गांव से भोपाल लाने के लिए रखवाई थी स्पेशल जीपMP: Story of a Chief Minister who used to sprinkle his life on 'Chhach', Special was arranged to bring Bhopal from village Jeep nkp

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Bansal Digital Desk
MP: ऐसे मुख्यमंत्री की कहानी जो 'छांछ' पर छिड़कते थे जान, गांव से भोपाल लाने के लिए रखवाई थी स्पेशल  जीप

भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक गुरू और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा की कहानी लोग आज भी बड़े चाव से सुनते हैं। जब पटवा पहली बार सीएम बने थे, तो वे केवल 29 दिनों के लिए ही मुख्यमंत्री रह पाए थे। जब वे दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तो उनकी सरकार बर्खास्त कर दी गई। हालांकि पटवा फिर भी राजनीतिक रूप से हरदम शीर्ष पर रहे। कांग्रेस के अजेय दुर्ग कहे जाने वाले छिंदवाड़ा को उन्होंने ही एक बार भेदा था और कमलनाथ को हराया था।

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उनके जेब में हमेशा काजू रखे रहते थे

पटवा के बारे में कहा जाता है कि वे खाने के बेहद शौकीन थे। उन्हें काजू और छाछ बेहद पसंद था। जानकार कहते हैं कि पटवा के जेब में हमेशा काजू रखे रहते थे। बैठक या अन्य किसी कार्यक्रम में वो काजू इतनी चतुराई से मुंह में डालते थे कि बगल में बैठे व्यक्ति को भी नहीं पता चल पाता था कि पटवा काजू खा रहे हैं।

छाछ लाने के लिए स्पेशल जीप

काजू के अलावा सुंदरलाल पटवा को छांछ बेहद पसंद था। ये किस्सा उनके मुख्यमंत्री के कार्यकाल के दौरान का है। दरअसल, पटवा मूलरूप से कुकड़ेश्वर, मंदसौर के रहने वाले थे। उन्हें छांछ बहुत पसंद था। इसलिए वे दिन में दो तीन बार छाछ का सेवन करते थे। जब वे मुख्यमंत्री बने तो एक जीप स्पेशल तौर से कुकड़ेश्वर से छाछ लाने के लिए लगाई गई थी। इस बात की चर्चा उन दिनों खूब हुआ करती थे।

मप्र की राजनीति को दी नई दिशा

इन सब के अलावा पटवा को मध्यप्रदेश की राजनीति को नई दिशा देने वाले और प्रदेश में भाजपा के संगठन को खड़ा करने वाले के रूप में जाना जाता है। पटवा बचपन से ही संघ की विचारधारा से जुड़ गए थे। वे जब 1942 में 18 वर्ष के हुए तो RSS के सदस्य बन गए। इसके बाद उन्होंने संघ में रहकर ही अपना जीवन आगे बढ़ाया और 1947-51 तक संघ प्रचारक की भूमिका निभाई। इसके बाद वे सक्रिय राजनीति में आ गए। 1957-1967 तक मप्र विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता रहे। 1975 में जनसंघ मप्र के महासचिव बने। इसके बाद साल 1980 में वे प्रदेश के मुखिया बने। 20 जनवरी 1980 से लेकर 17 फरवरी 1980 तक वे पहली बार 29 दिन के लिए सीएम बने। दूसरी दफा 5 मार्च 1990 से 15 दिसंबर 1992 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। साल 1997 में वे पहली बार छिंडवाडा से लोकसभा के लिए चुने गए और वाजपेयी सरकार में दो साल तक मंत्री भी रहे।

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