MP Soybean Rate Low Issue: मध्य प्रदेश कहने को तो सोया स्टेट है, लेकिन यहां सोयाबीन उत्पादक किसानों की हालत ये है कि वह खेतों में खड़ी फसल को बखर रहे हैं। मंडी में सोयाबीन अपने 12 साल पहले यानी 2012 के रेट पर आ गया है।
खेती किसानी के जानकार सोयाबीन के दामों में गिरावट के लिए नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हैं। आइये आपको बताते हैं कि सोयाबीन के दामों में इतनी गिरावट कैसे हो गई।
किसान ने खड़ी फसल पर चला दिया ट्रेक्टर
मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले के गरोठ गांव के किसान कमलेश पाटीदार ने सोयाबीन की खड़ी फसल पर ट्रैक्टर चला दिया। क्योंकि बाजार का भाव नफा की बजाय नुकसान का सौदा दे रहा था।
किसान कमलेश पाटीदार ने बताया कि सोयाबीन की लागत ज्यादा है और मंडी में वह सिर्फ 3500 से 3800 रुपये क्विंटल पर बिक रहा है। ऐसे में जो फसल घाटा देगी ही उसे दो महीने तक और क्यों खेत में खड़ा रखा जाए। पाटीदार ने सोयाबीन की फसल बखर दी है, वह अब इसमें कोई दूसरी फसल लगाएंगे।
सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल
कमलेश पाटीदार के ही गांव के कुछ और किसानों ने अपनी सोयाबीन की फसल पर ट्रेक्टर चला दिया है। प्रदेश के अन्य जिलों से भी कुछ इसी तरह के वीडियो सामने आ रहे हैं।
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— Bansal News (@BansalNewsMPCG) August 19, 2024
सोयाबीन का समर्थन मूल्य 4850 रुपये के आसपास है, लेकिन मंडियों में ये 1000 से लेकर 1350 रुपये तक कम रेट पर बिक रहा है। समर्थन मूल्य भी नहीं मिल पाने से किसान अब सोयाबीन की फसल से दूरी बना रहे हैं।
यूरोपीय बाजार में लीडर्स की दखल बढ़ी
वैश्विक स्तर पर सोयाबीन के सबसे बड़े उत्पादक देश अर्जेंटीना, ब्राजील और अमेरिका है। सोयाबीन में इनका मार्केट शेयर 95 प्रतिशत तक हैं।
वहीं विश्व स्तर पर भारत की हिस्सेदारी महज 2.5 से 3 फीसदी है। भारत यूरोप में सोयाबीन का व्यापार करता है, लेकिन इस बाजार में लीड करने वाले देश अर्जेंटीना, ब्राजील और अमेरिका की दखल बढ़ गई है।
बांग्लादेश के मार्केट पर भी असर
कृषि के जानकार केदार सिरोही बताते हैं कि भारत के लिये सबसे बड़ा सोयाबीन का मार्केट बांग्लादेश प्रोवाइड कराता है।
बांग्लादेश में हुए सत्ता परिवर्तन के घटनाक्रम के बाद इस बाजार पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है। ऐसे में एक्सपोर्ट डिमांड घटी है। सोयाबीन के रेट (MP Soybean Rate Low Issue) पर असर की एक वजह ये भी है।
32 प्रतिशत ड्यूटी इम्पोर्ट ड्यूटी घटाकर 12.5 प्रतिशत की
सोयाबीन को लेकर पहले इम्पोर्ट ड्यूटी 32 प्रतिशत तक थी। इम्पोर्ट ड्यूटी अधिक होने से फॉरेन कंट्रीज से भारत सोयाबीन तेल का आयात कम होता था।
सरकार ने इसे घटाकर 12.5 प्रतिशत कर दिया। इससे दूसरे देशों से भी कम दामों पर सोयाबीन भारत आने लगा। इससे देश के अंदर सोयाबीन की डिमांड कम हो गई।
प्रोटीन के सब्स्टीट्यूट के रूप में आया डीडीजीएस
सोयाबीन की खलीचुनी यानी डीओसी (De-Oiled Cake) का इस्तेमाल पशुओं के खाने के लिये किया जाता रहा है।
मार्केट में अब प्रोटीन के सब्स्टीट्यूट के रूप में डीडीजीएस (Distillers Dried Grains with Solubles) आ गया है जो डीओसी से 20 प्रतिशत तक सस्ता है। ऐसे में डीओसी की भी डिमांड कम होती जा रही है। जिससे सोयाबीन के रेट में लगातार गिरावट (Soybean Rate Low Issue) देखी जा रही है।
उत्पादन घटा पर लागत बढ़ गई
बाजार में अमानक बीज की भरमार है। सरकारी प्रयास इन्हें रोकने में नाकाम ही रहे हैं या जो प्रयास किये जा रहे हैं वो नाकाफी है। अमानक बीज, खाद और कीटनाशक के उपयोग से सोयाबीन के उत्पादन पर असर पड़ा है।
इसके उलट डीजल, बिजली, लेबर, ट्रांसर्पोटेशन महंगा होने से सोयाबीन की लागत बढ़ चुकी है। जिसके कारण किसानोंं के लिये अब सोयाबीन की चमक पीले सोने जैसी नहीं रही।