MP Police Station Mandir Case High Court: जबलपुर हाईकोर्ट ने मध्यप्रदेश के पुलिस थानों में बने मंदिरों को हटाने की याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि इस मामले में पहले ही निर्णय दिया जा चुका है, ऐसे में नई याचिका दाखिल करने की जरूरत नहीं है। यह याचिका जबलपुर के वकील ओपी यादव ने दायर की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों की अनदेखी करते हुए थानों में धार्मिक स्थल बनाए जा रहे हैं।
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि आदेशों का पालन सुनिश्चित करना प्रशासन की जिम्मेदारी है। याचिकाकर्ता चाहें तो अवमानना याचिका दायर कर सकते हैं। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही यह निर्देश जारी किया है कि सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक ढांचे का निर्माण नहीं किया जा सकता।
हाईकोर्ट में खारिज हुई जनहित याचिका
गुरुवार को चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैथ और जस्टिस विवेक जैन की बेंच ने सुनवाई करते हुए याचिका को खारिज कर दिया। दरअसल, इसी विषय पर 2009 में एडवोकेट सतीश वर्मा ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर अदालत ने पहले ही यह निर्णय दिया था कि सार्वजनिक संपत्ति पर धार्मिक स्थल नहीं बनाए जा सकते। बावजूद इसके, ओपी यादव ने फिर से इसी मामले पर याचिका दाखिल की।
2009 में फैसला सुना चुके फिर याचिका क्यों?
अदालत ने कहा कि जब इस मामले में पहले ही फैसला सुनाया जा चुका है, तो इसे दोबारा लाने का कोई औचित्य नहीं है। इसी टिप्पणी के साथ अदालत ने याचिका निरस्त कर दी। मामले की इससे पहले 4 नवंबर, 19 नवंबर, और 16 दिसंबर को सुनवाई हो चुकी थी, और अदालत ने राज्य सरकार से जवाब मांगा था। हालांकि अब याचिका खारिज होने के बाद अब थानों में बने मंदिर पहले की तरह ही बने रहेंगे।
ओपी यादव ने मंदिरों से थाने हटाने की बात कही थी
वहीं दूसरे पक्ष यानी ओपी यादव ने इस मामले में याचिका दायर कर मांग की थी कि मध्यप्रदेश के विभिन्न थानों में बने धार्मिक स्थलों को हटाया जाए, क्योंकि ये अवैध रूप से और बिना किसी नियम के बनाए गए हैं। याचिकाकर्ता का कहना था कि पुलिसकर्मी अपनी मर्जी से मंदिर बना रहे हैं, जो सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन करते हैं। इसलिए इन धार्मिक स्थलों को हटाने की आवश्यकता है।
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‘याचिकाकर्ता अपनी मांग रख सकते हैं’
इस पर बार काउंसिल के अधिवक्ता दिनेश अग्रवाल ने कोर्ट में तर्क दिया कि इस याचिका में वही वकील हैं, जिन्होंने 2009 में इसी मुद्दे पर याचिका दायर की थी। अदालत ने इसे आधार बनाते हुए याचिका खारिज कर दी। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता चाहें तो अन्य कानूनी उपायों के माध्यम से अपनी मांग रख सकते हैं।
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