Ramsahay Pandey Passed Away: बुंदेलखंड के राई नृत्य को पूरी दुनिया में पहचान दिलाने वाले महान लोक कलाकार पद्मश्री रामसहाय पांडे अब इस दुनिया में नहीं रहे। 97 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। वे पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे और एक निजी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। साल 2022 में भारत सरकार ने उन्हें राई नृत्य में विशेष योगदान के लिए पद्मश्री सम्मान से नवाजा था।
गरीबी और संघर्षों से भरा बचपन
रामसहाय पांडे का जन्म 11 मार्च 1933 को सागर जिले के मडधार पठा गांव में हुआ था। उनका बचपन बेहद गरीबी और संघर्षों से भरा रहा। जब वे सिर्फ 6 साल के थे, तब उनके पिता लालजू पांडे का निधन हो गया। इसके बाद उनकी मां उन्हें लेकर मायके कनेरादेव गांव चली गईं, लेकिन 6 साल बाद मां का भी साया उठ गया। ऐसे हालात में पले-बढ़े रामसहाय ने खुद को राई नृत्य में समर्पित कर दिया।
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ऐसे मिला राई नृत्य से नाता
एक मेले में राई नृत्य को देखकर रामसहाय इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने तय कर लिया कि वे भी इस कला को सीखेंगे। उन्होंने मृदंग बजाने से शुरुआत की और समाज की कड़ी मान्यताओं को तोड़ते हुए ब्राह्मण परिवार से होने के बावजूद इस लोकनृत्य में पारंगत हुए। वे जब कमर में मृदंग बांधकर नाचते थे, तो लोग हैरान रह जाते थे।
राई नृत्य को दी अंतरराष्ट्रीय पहचान
रामसहाय पांडे ने जापान, हंगरी, फ्रांस और मॉरिशस जैसे देशों में राई नृत्य की शानदार प्रस्तुतियां दीं। उन्होंने बुंदेलखंड की लोककला को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई। राज्य स्तर पर उन्हें कई बार सम्मानित किया गया और अंततः 2022 में उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया।
क्या है राई नृत्य?
राई नृत्य बुंदेलखंड अंचल का पारंपरिक लोक नृत्य है, जिसमें मुख्य रूप से महिलाएं (बेड़नियां) नृत्य करती हैं और पुरुष मृदंग बजाते हैं। शादी-ब्याह और खुशी के अवसरों पर इस नृत्य का आयोजन होता है। मृदंग की थाप और घुंघरुओं की झंकार पर यह नृत्य बेहद मनोरंजक होता है।
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