हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार और मेडिकल एजुकेशन विभाग से जवाब मांगा है कि 2021 बैच के छात्रों के लिए एमबीबीएस फर्स्ट ईयर में उत्तीर्ण होने का क्राइटेरिया क्यों बदला गया। कोर्ट ने मेडिकल विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार, डीएमई और नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज के डीन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। जबलपुर मेडिकल कॉलेज के छात्र शोएब खान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आदित्य संघी ने पक्ष रखा है।
मेडिकल विवि ने जारी की अधिसूचना
आदित्य संघी के अनुसार याचिकाकर्ता ने एमबीबीएस के फर्स्ट ईयर के एनाटॉमी और फिजियोलॉजी में चौथे अटेम्प्ट में उत्तीर्ण नहीं किया इसलिए उसे कोर्स से बाहर कर दिया। साथ ही बताया कि 23 फरवरी 2024 को मेडिकल विश्वविद्यालय ने एक अधिसूचना जारी की थी। इस अधिसूचना में कंपीटेंसी बेस्ड मेडिकल एजुकेशन अधिनियम में संशोधन किया गया था। इस संशोधन के चलते दो सब्जेक्ट के संयुक्त ग्रुप में कुल 40 प्रतिशत अंक लाना अनिवार्य कर दिया गया।
2019-20 के लिए नहीं उक्त नियम
कोर्ट में बताया गया कि 2019 और 2020 सेशन के लिए ये नियम नहीं था। साथ ही उन्हें पांच अटेम्प्ट का लाभ भी दिया गया था। साथ ही बताया गया कि याचिकाकर्ता शोएब गंभीर रूप से बीमार है इसलिए वह परीक्षा के लिए पढ़ाई नहीं कर सका।
इंटर्नशिप पीरियड 2 से 3 साल क्यों- HC
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने विदेश से MBBS करने वाले स्टूडेंट्स के मामले में राज्य शासन और मेडिकल काउंसिल के नियमों पर सवाल उठाए हैं। कोर्ट ने पूछा- जब इंटर्नशिप का पीरियड दो साल थी, तो उसे बढ़ाकर तीन साल क्यों किया गया है।
विदेश से इंटर्नशिप करने का प्रावधान 2 साल
नियम के मुताबिक भारत से MBBS करने वालों के लिए इंटर्नशिप एक साल है। वहीं विदेश से इंटर्नशिप करने वालों के लिए दो साल का प्रावधान है। कोर्ट में दलील दी गई कि MP मेडिकल काउंसिल ने चार नवंबर 2024 को एक आदेश जारी कर इंटर्नशिप दो साल की तीन साल कर दी।
याचिकाकर्ताओं को नवंबर 2023 में बताया गया कि उन्हें दो साल की इंटर्नशिप करनी है। सभी का कोर्स मार्च 2025 में पूरा होगा। ऐसे में नया नियम लागू करना अवैधानिक है।
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