हाइलाइट्स
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मध्यप्रदेश में होमगार्ड कॉल ऑफ विवाद
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हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी
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हाईकोर्ट ने सुरक्षित रखा फैसला
MP Home Guard Call Off Controversy: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में प्रदेश के 10 हजार से ज्यादा होमगार्ड सैनिकों को 3 महीने का कॉल-ऑफ देने की वैधानिकता को चुनौती देने के मामले में सुनवाई पूरी हो गई। जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा है।
490 याचिकाओं पर लगातार 5 दिन हुई सुनवाई
कॉल-ऑफ मामले पर 490 याचिकाएं लंबित थीं, जिन पर पिछले 5 दिन लगातार सुनवाई हुई। याचिकाओं में कॉल-ऑफ की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई।
पहले आपातकाल में ड्यूटी, फिर नियमित सेवाएं
याचिकाकर्ता होमगार्ड सैनिकों की ओर से अधिवक्ता विकास महावर ने पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि वर्ष 1948 में पुलिस की सहायता के लिए स्वयंसेवी संगठन की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए होमगार्ड एक्ट 1947 बनाया गया। इसके तहत होमगार्ड संगठन का गठन हुआ। शुरुआत में होमगार्ड सैनिकों की ड्यूटी केवल आपातकाल में ही लगाई जाती थी। वर्ष 1962 के बाद नियमित सेवाएं ले जाने लगीं।
MP सरकार ने नियम में किया बदलाव
हाईकोर्ट में दलील दी गई कि पहले प्रत्येक दो वर्ष में 3 माह कॉल-ऑफ दिया जाता था। वर्ष 2008 में मानवाधिकार आयोग ने इस प्रक्रिया को समाप्त करने की अनुशंसा की। वर्ष 2011 में हाईकोर्ट ने सरकार को आदेश दिए कि कॉल-ऑफ को समाप्त कर पुलिस आरक्षकों की सेवा शर्तों की तरह इनके लिए भी नियम बनाएं। याचिका लंबित रहने के दौरान सरकार ने नियम में बदलाव कर तीन वर्ष में दो माह का कॉल-ऑफ का प्रावधान किया।
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MP सरकार ने दी दलील
मध्यप्रदेश शासन की ओर से याचिकाओं पर आपत्ति प्रस्तुत की गई। दलील दी गई कि होमगार्ड संगठन एक स्वयंसेवी संगठन है एवं इन्हें पूरे वर्ष कार्य पर नहीं रखा जा सकता।
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