Gwalior News: हाईकोर्ट के आदेश पर सेवा से हटाए गए परिवहन आरक्षकों ने विभाग के अधिकारियों की परेशानी बढ़ा दी है। दस साल से अधिक समय तक नौकरी में रहने के बाद हटाए गए 14 परिवहन आरक्षकों ने हाईकोर्ट की जबलपुर बेंच का रूख किया है।
न्यायाधीश विशाल मिश्रा ने याचिका खारिज कर दी है। उन्होंने कहा कि जनवरी 2014 में परिवहन आरक्षकों को हटाने का आदेश दिया गया था। इसके बाद इन्होंने काम किया और सैलरी का लाभ भी लिया। जनता की कमाई का ये गलत इस्तेमाल है।
तीन महीने में प्रक्रिया पूरी करनी है
राज्य के मुख्य सचिव वरिष्ठ अधिकारियों की कमेटी बनाई गई है। ये पता लगाए कि किस अफसर के आदेश से परिवहन आरक्षकों को जॉब करने की परमिश्न दी गई। आरक्षकों को दस साल से अधिक समय तक दी गई सैलरी की वसूली अधिकारी से की जाए। ये प्रक्रिया तीन महीने में पूरी करनी होगी।
2012 में निकला था भर्ती का विज्ञापन
बता दें कि 2012 में परिवहन विभाग ने आरक्षकों की भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला था। 2013 में नियुक्ति हुई। 45 आरक्षकों को महिला उम्मीदवारों के लिए रिजर्व पद पर भर्ती की गई। 14 आरक्षकों ने अक्टूबर 2023 को हाईकोर्ट में याचिका दायर की। वहीं, नियमित नहीं करने का आरोप लगाया।
दो साल के लिए नियुक्त किया गया था
याचिका में बताया गया कि अप्रैल-मई 2013 में उन्हें दो साल के पीरियड के लिए नियुक्त किया गया था। इसके बाद उनका कार्यकाल बढ़ाया जा रहा है, लेकिन नियमित नहीं किया गया। याचिका के पेंडिंग रहने पर 25 सितंबर 2024 को परिवहन आयुक्त डीपी गुप्ता ने परिवहन आरक्षकों को सेवा से हटाने का आदेश जारी किया। आरक्षकों ने आदेश को चुनौती दी।
हाईकोर्ट ने कहा कि दस साल से अधिक समय से याचिकाकर्ता काम कर रहे हैं। डिपार्टमेंट में परिवहन आरक्षकों के पद खाली हैं। वहीं, सरकार की ओर कहा गया 27 जनवरी 2014 को हाईकोर्ट ने 45 आरक्षकों की नियुक्ति को रद्द करने का आदेश दिया था। इस आदेश के खिलाफ शासन सुप्रीम कोर्ट का रूख किया, लेकिन राहत नहीं मिली।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि आरक्षक याचिकाओं की नियुक्ति 2014 में निरस्त हो गई थी। राज्य शासन के आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी, लेकिन राहत नहीं मिली। हाईकोर्ट इस मामले में दखल नहीं दे सकता।
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