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MP में तहसीलदारों के खिलाफ HC का कड़ा आदेश: भोपाल के Tahsildar की संपत्ति के जांच के निर्देश, सभी तहसीलदारों को ये फरमान

Action Against Tahsildar In MP: MP हाईकोर्ट ने लोकायुक्त को भोपाल के गोविंदपुरा संभाग के तहसीलदार दिलीप कुमार चौरसिया की संपत्ति की जांच के निर्देश दिए हैं। 3 महीने में रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने के निर्देश दिए हैं।

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Rahul Garhwal
MP High Court Action Against Tahsildar Bhopal Govindpura hindi news

हाइलाइट्स

  • MP हाईकोर्ट का तहसीलदारों के खिलाफ कड़ा आदेश
  • तहसीलदार दिलीप कुमार चौरसिया की संपत्ति की होगी जांच
  • 3 महीने में रिपोर्ट पेश करने के निर्देश
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Action Against Tahsildar In MP: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और न्यायमूर्ति दिनेश कुमार पालीवाल की युगलपीठ ने लोकायुक्त को भोपाल के गोविंदपुरा संभाग के तहसीलदार दिलीप कुमार चौरसिया की संपत्ति की जांच के निर्देश दिए हैं। साथ ही भोपाल कलेक्टर को भी तहसीलदार के खिलाफ विभागीय जांच के आदेश देकर 3 महीने में रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने के निर्देश दिए हैं।

कोर्ट ने कहा- तहसीलदार ने ली रिश्वत

कोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया है कि एडीएम व कोर्ट के आदेश के बावजूद कार्रवाई को टालना यह दर्शाता है कि तहसीलदार अतिक्रमणकारियों से मिले हुए हैं। उन्होंने रिश्वत लेकर भ्रष्टाचार किया है। लिहाजा, लोकायुक्त तहसीलदार की संपत्ति की जांच करे। इसके जरिए यह पता लगाए कि तहसीदार के पास आय से अधिक संपत्ति है या नहीं।

30 दिन में कार्रवाई के निर्देश

हाई कोर्ट ने इस मामले को महज गोविंदपुरा तहसीलदार तक सीमित न रखते हुए व्यापक करते हुए संपूर्ण प्रदेश के तहसीलदारों के कामकाज में कसावट की आवश्यकता रेखांकित कर दी। इसके अंतर्गत एडीएम के आदेश के बाद हर हाल में 30 दिन के भीतर कार्रवाई सुनिश्चित करने की व्यवस्था दे दी।

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हाईकोर्ट की टिप्पणी

भोपाल के गोविंदपुरा तहसीलदार दिलीप कुमार चौरसिया को एडीएम और हाई कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करना भारी पड़ा। तहसीलदार ने अतिक्रमण हटाने के आदेश को 8 महीने तक टाल दिया था। इस रवैये को हाड़े हाथों लेकर हाई कोर्ट ने तहसीलदार दिलीप कुमार चौरसिया से सख्त लहजे में कहा कि तुम्हें हम उदाहरण बनाएंगे। इसी के साथ हाई कोर्ट ने ऐसा आदेश जारी किया जिसका असर अब पूरे प्रदेश के सभी तहसीलदारों पर पड़ेगा।

तहसीलदार ने अटकाया मामला

भोपाल के पारस नगर फेज-वन में मोहम्मद अनीस और उनकी पत्नी नसीम रहते हैं। दोनों ने इक्विटल स्माल फाइनेंस बैंक से मकान गिरवी रखकर लोन लिया था। लोन लेने के बाद उन्होंने इसे चुकाने से साफ इनकार कर दिया। बैंक ने यह मामला एडिशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट साउथ भोपाल के पास पहुंचाया। सुनवाई के बाद अधिकारी ने फैसला बैंक के पक्ष में सुनाया। 23 जुलाई 2024 को गोविंदपुरा तहसीलदार दिलीप कुमार चौरसिया को आदेश जारी हुआ। आदेश में कहा गया कि कब्जा दिलाकर संपत्ति बैंक को सौंप दी जाए। इसके लिए पुलिस सहायता लेने के निर्देश भी दिए गए थे। तहसीलदार ने यह आदेश लगभग आठ महीने तक लंबित रखा। बैंक ने कई बार तहसील कार्यालय में आवेदन जमा किए। 5 मार्च 2025 को तहसीलदार ने महज एक नोटिस जारी किया। कोई कार्रवाई नहीं की गई जिससे बैंक को हाई कोर्ट जाना पड़ा।

[caption id="attachment_847039" align="alignnone" width="918"]mp high court मध्यप्रदेश हाईकोर्ट[/caption]

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एडीएम के बाद हाई कोर्ट के आदेश को टालना पड़ा भारी

14 मई 2025 को बैंक ने हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की। हाई कोर्ट ने इस मामले में तहसीलदार की भूमिका पर संदेह जताया। कोर्ट ने आशंका जताई कि तहसीलदार अतिक्रमणकारियों से मिले हुए हैं। कोर्ट ने आदेश दिया कि 23 जून 2025 तक बंधक संपत्ति पर कब्जा दिलाया जाए। तहसीलदार ने इस आदेश को भी नजरअंदाज कर दिया। 23 जून को अगली सुनवाई हुई। इसमें तहसीलदार को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का आदेश था। तब भी उन्होंने केवल खानापूर्ति करते हुए एक नोटिस जारी कर दिया।

हाई कोर्ट के निर्देश पर हाजिर हुए तहसीलदार ने मांगी माफी

26 जून को तहसीलदार दिलीप कुमार चौरसिया कोर्ट में पेश हुए। उन्होंने आते ही माफी मांगी और 26 जून को जारी किए गए नोटिस का हवाला दिया, लेकिन कोर्ट ने यह दलील निरस्त कर दी। कोर्ट ने पूछा कि एडीएम के आदेश में 11 माह की देरी क्यों की गई। साथ ही कोर्ट के आदेश की अनदेखी पर भी सवाल किया गया। इस सवाल का तहसीलदार कोई जवाब न देकर बगलें झांकने लगे।

पूरे प्रदेश के तहसीलदारों के लिए जारी हुआ आदेश

इस सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने बड़ा आदेश पारित करते हुए कहा कि सरफेसी एक्ट की धारा 14 के तहत सीजेएम और एडीएम द्वारा जारी आदेशों पर तहसीलदारों को हर हाल में 30 दिनों के भीतर कार्रवाई करनी होगी। यदि वे ऐसा नहीं करते हैं, तो उनके विरुद्ध सेवा में लापरवाही के चलते विभागीय जांच की जाएगी। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि इस निर्देश की प्रति राज्य के मुख्य सचिव को भेजी जाए, जो इसे सभी कलेक्टरों को भेजेंगे, और प्रत्येक जिला कलेक्टर इसे अपने जिले के सभी तहसीलदारों को प्रेषित करेंगे। इस तरह गोविंदपुरा तहसीलदार दिलीप कुमार चौरसिया की एक गलती ने पूरे प्रदेश के तहसीलदारों की कार्यप्रणाली को हाईकोर्ट की निगरानी में ला खड़ा किया है।

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