MP Government Budget: मध्यप्रदेश सरकार के हिसाब-किताब को लेकर CAG ने बड़ा खुलासा किया है। कैग की रिपोर्ट में बताया गया कि मध्य प्रदेश सरकार ने चुनावी साल यानी 2023 में वित्तीय वर्ष 2022-23 के आखिरी तीन महीने में 25,355 करोड़ रुपए खर्च किए। इसमें से भी 23,341 करोड़ सिर्फ मार्च के महीने में खर्च किए गए।
31 मार्च 2023 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष की रिपोर्ट 5 जुलाई को विधानसभा के पटल पर रखी गई थी। कैग ने अपनी रिपोर्ट में ये भी कहा है कि तत्कालीन शिवराज सरकार ने एक साल में अनुपूरक बजट में 17 हजार 973 करोड़ का गैरजरूरी प्रावधान किया था। अनुपूरक बजट में किसानों के लिए 6 हजार करोड़ से ज्यादा की राशि रखी गई थी, जिसमें से आधी यानी 50 प्रतिशत भी खर्च नहीं हो सकी।
इतना ही नहीं, मध्य प्रदेश के 26 विभागों ने 13 हजार करोड़ रुपए सरेंडर नहीं किए, जिससे इनका उपयोग दूसरे कार्यों में नहीं हो सका। इधर, एमपी सरकार को पुराना कर्ज चुकाने के लिए नया कर्ज लेना पड़ रहा है। इस तरह से सरकार का वित्तीय प्रबंधन लगातार गड़बड़ा रहा है।
यहां बता दें, CAG एक संवैधानिक संस्था है, जो केंद्र और राज्य सरकारों के खर्च का लेखा-जोखा रखती है। कैग की रिपोर्ट ने सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर क्या सवाल किए हैं और इस पर जानकारों की क्या राय है।
अनुपूरक बजट की 45% राशि नहीं की खर्च
CAG की रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि सरकार ने अनुपूरक बजट में 42,076 करोड़ रुपए का प्रावधान किया था।
इसमें से 19,105 करोड़ रुपए योजनाओं को पूरा करने के लिए था, लेकिन यह राशि खर्च नहीं की गई।
2022-23 में शुरू की गई 50 करोड़ रुपए से अधिक बजट प्रावधान वाली 18 नई योजनाओं में 6 हजार 117 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया गया था, जिसमें तीन हजार 498 करोड़ रुपए खर्च नहीं हुए।
50 हजार करोड़ बचे पर सरेंडर सिर्फ 22 हजार करोड़ किए
कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022-23 में तीन लाख 21 हजार करोड़ रुपए के बजट में से 50 हजार 543 करोड़ (15.71 प्रतिशत ) रुपए बच गए थे।
इसमें 22 हजार 984 करोड़ रुपए विभागों द्वारा वित्तीय वर्ष के अंतिम दिन शासन को लौटाए गए, पर बाकी राशि समर्पित नहीं करने से लैप्स हो गई।
रिपोर्ट के मुताबिक, 26 विभागों ने अपने बजट का 50 हजार 403 करोड़ रुपए वित्तीय वर्ष समाप्त होने तक खर्च नहीं किए।
इतना ही नहीं, इन विभागों ने 13 हजार 498 करोड़ रुपए सरेंडर नहीं किए।
बजट का समय से इस्तेमाल ना होने पर निर्माण कार्यों की बढ़ती है लागत
अर्थशास्त्री एवं इंडियन इकोनॉमिक एसोसिएशन के एमपी प्रभारी डॉ. देवेंद्र विश्वकर्मा कहते हैं कि विभाग अनुपूरक बजट की मांग योजनाओं को पूरा करने के लिए करते हैं।
वित्त विभाग बजट में राशि का प्रावधान तो कर देता है, लेकिन पैसा किस्तों में रिलीज करता है।
ऐसे में निर्माण कार्यों में विलंब होता है और इससे लागत बढ़ जाती है।
योजना के लिए राशि की मांग के लिए विभागों को लंबी प्रक्रिया (Long Process) पूरी करना होती है, लेकिन अक्सर उन्हें राशि एक मुश्त नहीं मिल पाती।
इसलिए वित्तीय वर्ष समाप्त होने तक राशि खर्च नहीं हो पाती है। कई बार किसी योजना की राशि को दूसरे मद में खर्च हो जाने से भी बजट असंतुलित हो जाता है।
1700 करोड़ रुपए के घाटे में बिजली कंपनियां
कैग रिपोर्ट में बताया गया है कि ऊर्जा के क्षेत्र के तीन उपक्रम में 1,779 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है।
मप्र पूर्वी क्षेत्र, मध्य क्षेत्र और पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी घाटे में चल रही हैं।
जबकि मप्र पावर ट्रांसमिशन कंपनी ने 141 करोड़ रुपए का लाभ कमाया है।
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डिफॉल्टर किसानों के ब्याज की राशि नहीं हुई माफ
चुनावी साल में मध्यप्रदेश सरकार ने डिफॉल्टर किसानों के ब्याज की राशि को माफ करने का ऐलान किया था।
अनुपूरक बजट में 133 करोड़ का प्रावधान भी किया गया था। लेकिन, कैग की रिपोर्ट बताती है कि 133 करोड़ रु. खर्च नहीं किए।
वहीं सहकारिता विभाग को प्राथमिक कृषि साख संस्थाओं (PAC) के कंप्यूटरीकरण के काम के लिए प्रस्तावित राशि का भी उपयोग नहीं हुआ।
जबकि, इस साल के बजट में भी सरकार ने PAC संस्थाओं के कंप्यूटरीकरण का ऐलान किया है।
वहीं एक जिला एक उत्पाद के संचालन के लिए 10 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था, मगर ये राशि खर्च नहीं की गई।