नई दिल्ली। प्रमोश में आरक्षण के मामले MP Gov Employee Supreem Court Faisla को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी तरह का फैसला नहीं सुनाया। कोर्ट का कहना है कि आरक्षण के लिए आंकड़ों का होना जरूरी है। इस पर सरकार को उच्च पदों पर प्रतिनिधित्व के आंकड़े जुटाना चाहिए। साथ कोर्ट ने कहा है कि एक तय अवधि में मूल्यांकन किया जाना चाहिए। इसके लिए केंद्र सरकार को अवधि तय करनी होगी। सुप्रीम कोर्ट ने गेंद केंद्र सरकार के पाले में डाल दी है।
24 फरवरी से शुरू होगी सुनवाई —
आपको बता दें आज के सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोई फैसला नहीं सुनाया है। इसके बाद अगली सुनवाई 24 फरवरी को होगी। आपको बता दें एमपी में अप्रैल 20216 से प्रमोशन में आरक्षण पर रोक लगी है।
प्रदेश में पौने छ: साल से पदोन्नति में रोक है —
मध्य प्रदेश में अप्रैल 2016 से पदोन्नति में रोक है। आपको बता दें मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल को ‘मप्र लोक सेवा (पदोन्नत) नियम 2002″ खारिज कर दिया था। जिसे लेकर सरकारी कर्मचारी परेशान हैं और पदोन्नति को लेकर मांग कर रहे हैं। आपको मालूम हो इस दौरान 60 हजार से ज्यादा कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इनमें से 32 हजार लोग बिना पदोन्नति के ही रिर्टायर हो चुके हैं।
ये था मामला —
सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण मिलेगा या नहीं इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट आज फैसला सुनाएगा। इस मामले में 26 अक्तूबर 2021 को जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने मामले में अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल, अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) बलबीर सिंह और विभिन्न राज्यों के लिए उपस्थित अन्य वरिष्ठ वकीलों सहित सभी पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। केंद्र ने पहले पीठ से कहा था कि यह जीवन का एक तथ्य है कि लगभग 75 वर्षों के बाद भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को अगड़ी जातियों के समान योग्यता के स्तर पर नहीं लाया गया है। इस मसले को लेकर प्रदेश के मंत्रालय में भी चहलकदमी देखने को मिली। पदोन्नति का विकल्प तलाश करने के लिए गठित की गई मंत्रिमंडल उप समिति की बैठक भी हो गई।