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MP Foundation Day: आसान नहीं थी पुनर्गठन की राह, राजधानी के लिए भोपाल का नाम तय होते ही जबलपुर वासियों में छा गई थी मायूसी

MP Foundation Day: आसान नहीं थी पुनर्गठन की राह, राजधानी के लिए भोपाल का नाम तय होते ही जबलपुर वासियों में छा गई थी मायूसी MP Foundation Day: The path of reorganization was not easy, as soon as the name of Bhopal was decided for the capital, the people of Jabalpur were disappointed nkp

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Bansal Digital Desk
MP Foundation Day: आसान नहीं थी पुनर्गठन की राह, राजधानी के लिए भोपाल का नाम तय होते ही जबलपुर वासियों में छा गई थी मायूसी

भोपाल। देश का दिल कहे जाने वाला मध्यप्रदेश आज अपना 66वां स्थापना दिवस मना रहा है। अपनी अनूठी कला-संस्कृति और विविधता के कारण 'हृदय प्रदेश' पूरे देश में एक अलग पहचान रखता है। विभिन्न बोलियों और लोक संस्कृति के कारण, आप यहां पूरे भारत की एक झलक पा सकते हैं। 1 नवंबर 1956 को मध्य प्रदेश देश के पटल पर स्थापित हुआ था। इस राज्य की स्थापना की कहानी भी काफी दिलचस्प है।

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गठन में 34 महीने का लगा था समय

मालूम हो कि राज्यों के पुनर्गठन की प्रक्रिया आजादी के बाद शुरू हुई थी। इसके लिए राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया गया। आयोग के पास उत्तर प्रदेश जितना बड़ा एक और राज्य बनाने की जिम्मेदारी थी। क्योंकि यह राज्य महाकौशल, ग्वालियर-चबल, विंध्य प्रदेश और भोपाल के आसपास के हिस्सों को मिलाकर बनाया जाना था। ऐसे में साफ है कि यह चुनौती बहुत बड़ी थी, पहले से मौजूद इन राज्यों की अपनी एक अलग पहचान थी। इतना ही नहीं इन राज्यों की अपनी एक अलग विधानसभा भी थी। जब इन राज्यों को एक साथ किया जाने लगा तो सभी नेताओं ने अपनी-अपनी सिफारिशें देनी शुरू कर दीं। राज्य पुनर्गठन आयोग को सभी सिफारिशों पर विचार-विमर्श करने में करीब 34 महीने यानि ढाई साल लग गए। तब जाकर मध्य प्रदेश का असली स्वरूप समाने आया।

ब्रिटिश शासन से ही अस्तित्व में आथ मध्य प्रदेश!

बतादें कि वैसे तो मध्य प्रदेश का अस्तित्व ब्रिटिश शासन से ही था। तब इसे सेंट्रल इंडिया के नाम से जाना जाता था। जो पार्ट ए, पार्ट बी और पार्ट सी भाग में बंटा हुआ था। जबकि राजधानी भोपाल में नवाबी शासन था। पार्ट-ए की राजधानी नागपुर थी। इसमें बुंदेलखंड और छत्तीसगढ़ की रियासतें शामिल थी। इसी तरह पार्ट-बी की राजधानी ग्वालियर और इंदौर थी, इसमें मालवा-निमाड़ की रियासतें शामिल थी।

पंडित रविशंकर शुक्ल बने पहले मुख्यमंत्री

पुनर्गठन के समय पार्ट-ए का हिस्सा रहे नागपुर को महाराष्ट्र में शामिल कर दिया गया। इसी तरह बुंदेलखंड का आधा हिस्सा उत्तर प्रदेश में शामिल हो गया। इसके बाद शेष बचे क्षेत्रों को मिलाकर मध्य प्रदेश का गठन किया गया। डॉ. पट्टाभि सीतारामैया मध्यप्रदेश के पहले राज्यपाल बने, जिन्होंने पंडित रविशंकर शुक्ल को मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ दिलाई। बतादें कि जिस दिन मध्य प्रदेश का जन्म हुआ था, उस दिन अमावस्या की रात थी। पंडित रविशंकर शुक्ल उसी दिन मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे। तभी किसी ने याद दिलाया की आज तो 'अमावस्या की रात है' यह सुनकर शुक्ल पहले तो थोड़ा असहज हुए, लेकिन फिर उन्होंने कहा कोई नहीं अंधेरा मिटाने के लिए आज हजारों दिए जल रहे हैं। बतादें कि शपथ वाली रात दीपावली की रात थी। वह दीपावली उनकी आखिरी दीपावली थी। क्योंकि मुख्यमंत्री बनने के ठीक दो महीने बाद उनका निधन हो गया।

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अचानक सामने आया भोपाल का नाम

करीब 34 महीने तक चले खिंचतान के बाद आखिरकार मध्य प्रदेश, राज्य तो बन गया, लेकिन राज्य की राजधानी बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। राज्य के पुनर्गठन के बाद उस समय तीन बड़े शहर इस दौड़ में सबसे आगे थे। इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर। तीनों क्षेत्रों के नेताओं ने अपने शहर को राजधानी बनाने के लिए बहुत कोशिश की। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। क्योंकि यह तीनों शहर एक दूसरे से काफी दूरी पर थे और इनका क्षेत्रीय विवाद भी था। ऐसे में अचानक एक नाम सामने आया, वह था भोपाल। तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा भोपाल को राजधानी बनवाना चाहते थे। क्योंकि यह मध्य प्रदेश के बीचो-बीच बसा था और उनका जन्म भी भोपाल में ही हुआ था। उन्होंने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात की और प्रस्ताव रखा कि भोपाल को मध्य प्रदेश की राजधानी बनाया जाए।

नेहरू को पसंद आया था भोपाल का नाम

तत्कालीन राष्ट्रपति ने नेहरू को बताया कि भोपाल पहाड़ी इलाके पर बसा है और अन्य शहरों के मुकाबले यहां न गर्मी पड़ती, ना ही सर्दी। अगर थोड़ी बहुत बारिश भी होती है तो यहां बाढ़ के हालात नहीं बनते हैं। इसके अलावा यह शहर मध्य प्रदेश के बीचो-बीच बसा है। प्रदेश के लोग चारो तरफ से यहां आसानी से पहुंच सकते हैं। डॉ. शंकर दयाल शर्मा का यह प्रस्ताव पंडित नेहरू को पसंद आया और उन्होंने भोपाल को राजधानी बनाने के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। बता दें कि जब भोपाल राजधानी बना तब वह सीहोर जिले की एक तहसील मात्र था। बाद में वर्ष 1972 में भोपाल को एक अलग जिले का दर्जा दिया गया।

जबलपुर के लोग निराश हो गए थे

जब भोपाल को राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया तब जबलपुर के लोग निराश हो गए। क्योंकि उनका ख्वाब पूरा होने से पहले ही बिखर गया था। कहा जाता है कि जबलपुर के लोग इस फैसले से इतने दुखी थे कि उन्होंने दिवाली भी नहीं मनाई। हालांकि जबलपुर भी निराश नहीं हुआ। वर्तमान में मध्य प्रदेश हाई कार्ट जबलपुर में ही है। इसके अलावा सेंट्रल लाइब्रेसी और मध्य प्रदेश विद्युत मंडल भी जबलपुर में ही है।

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