MP Foundation Day: मध्यप्रदेश यानि देश का दिल, देश की धड़कन, मध्यप्रदेश संस्कृति, कला, और प्रदेश की राजनीति के लिए देश में अपनी अलग पहचान रखता हैं। मध्यप्रदेश में प्राकृतिक संपदा, कृषि, प्रदेश की बोलियां और अपने अलग ही अंजाद के रहन सहन से दुनियाभर में जाना जाता है। आज मध्यप्रदेश 67 साल का हो चुका है, आज के दिन मध्यप्रदेश की स्थापना हुई थी। मध्य प्रदेश के स्थापना दिवस के मौके पर आज हम आपको कुछ ऐसी जानकारियां बताने जा रहे है जो शायद ही कोई जानता होगा।
कैसे हुए मध्यप्रदेश का गठन
मध्यप्रदेश आज 67 साल का हो चुका है। 67 साल पहले एमपी का गठन किया गया था। हालांकि राज्य की स्थापना काफी पुरानी है। जब देश को आजादी मिली थी तब देश में राज्यों का गठन किया गया थाा। इसके लिए राज्य पुनर्गठन आयोग गठित किया गया था। उस समय पंडित रविशंकर शुक्ल ने महाकौशल के नेताओं के साथ एक बैठक आयोग के सामने की थी। इसी बैठक में तय किया गया था कि महाकौशल, ग्वालियर-चंबल, विंध्य प्रदेश और भोपाल समेत उसके आसपास के इलाकों को जोड़कर एक प्रदेश बनाया जाए। पंडित रविशंकर शुक्ला ने आयोग के सामने अपनी सिफारिश रखी और कांग्रेस नेता द्वारका प्रसाद मिश्र और घनश्याम सिंह गुप्त को इसे लागू कराने की जिम्मेदारी सौपी। दोनों नेताओं ने करीब ढाई साल बाद सिफारिशों पर विचार किया और मध्यप्रदेश राज्य बनाने की अनुमति दी।
चार भागों में विभाजित था मध्य प्रदेश
आपको बता दें कि मध्य प्रदेश का अस्तित्व ब्रिटिश शासन से ही था। उस दौर में मध्य प्रदेश को सेंट्रल इंडिया कहा जाता था, जो तीन हिस्सों में बंटा हुआ था। उस समय भोपाल में नवाबों का शासन काल था। उस समय बुंदेलखड़ और छत्तीसगढ़ की रियासतों की राजधानी नागपुर हुआ करती थी। वही दूसरे हिस्से की राजधानी ग्वालियर और इंदौर हुआ करती थी। इस दूसरे हिस्से में पश्चिम की रियासते शामिल थी। इसके अलवा तीसरे हिस्से की राजधानी रीवा थी। जिसे आज विंध्य प्रदेश के नाम से जाना जाता है। सभी राजधानियों की अपनी अपनी विधानसभाएं थी। लेकिन आजादी के बाद राज्यों का पुनर्गठन किया गया। इसके लिए एक आयोग बनाया गया। जिसके बाद ग्वालियर-चंबल, मालवा-निमाड़, और विंध्य प्रदेश के अलावा मध्यभारत को मिलकार मध्यप्रदेश का गठन हुआ। मध्यप्रदेश के गठन के बाद डॉ. पटटाभि सीतारामैया मध्यप्रदेश के पहले राज्यपाल बने, तो वही पंडित रविशंकर शुक्ल मध्य प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने औरा पंडित कुंजी लाल दुबे प्रदेश के पहले विधानसभा अध्यक्ष बने।
कैसे बनी भोपाल राजधानी
मध्यप्रदेश का गठन करीब ढाई साल तक चलनी मशक्कत के बाद हो सका। प्रदेश के गठन के बाद ग्वालियर, इंदौर और जबलपुर मध्य प्रदेश के हिस्से में थे। तीनों क्षेत्रों के नेता ये कोशिश में थे कि उनके शहर को राजधानी बनाई जाए। लेकिन यह तीनों शहर काफी दूरी पर थे इसलिए इन शहरों को राजधानी बनान आसान नहीं था। लेकिन बड़ा सवाल था कि राज्य की राजधानी किसे बनाया जाए। हालांकि प्रशासनिक और राजनैतिक के तौर पर ग्वालियर और इंदौर का नाम सबसे पहले पयदान था लेकिन अचानक भोपाल का नाम तेजी से उभरकर सामने आया। उस समय देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा थें। भले ही अपने अपने क्षेत्र के नेता अपने अपने शहरों को राजधानी बनाने की जुगत लगा रहे थे लेकिन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा मध्य प्रदेश के भोपाल को राजधानी बनवाना चाहते थे। ऐसे में उन्होंने देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से मुलाकात कर यह प्रस्ताव उनके सामने रखा, और भोपाल शहर की खूबियां बताई। डॉ. शंकर दयाल शर्मा का यह प्रस्ताव पंडित जवाहर लाल नेहरू को पसंद आया और भोपाल को मध्य प्रदेश की राजधानी बनाने के प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इसके बाद भोपाल को मध्यप्रदेश की राजधानी बनाया गया।