नरसिंहपुर। MP Election 2023: मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर घमासान मचा हुआ है। सभी राजनीतिक पार्टियां अपनी पूरी क्षमता के साथ चुनावी प्रचार में जुटी हुई हैं।
इधर, नरसिंहपुर जिले की गोटेगांव विधानसभा में इस बार चुनाव समीकरण बदलते हुए नजार आ रहे। कमलनाथ के नेतृत्व वाली पिछली सरकार में विधानसभा अध्यक्ष रहे नर्मदा प्रसाद प्रजापति को भाजपा के साथ-साथ एक निर्दलीय उम्मीदवार से कड़ी टक्कर मिलती नजर आ रही है।
बागी नेता बने मुसीबत
गोटेगांव से चार बार विधायक रहे प्रजापति की राह में सबसे बड़ा रोड़ा कांग्रेस के बागी उम्मीदवार और पूर्व विधायक शेखर चौधरी हैं।
वह बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। कांग्रेस ने पहले उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित किया था, लेकिन नामांकन से ठीक पहले उन्हें बदलकर प्रजापति को टिकट दे दिया।
बीजेपी ने नए चेहरे पर लगाया दांव
अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित जिले की इस एकमात्र सीट पर भाजपा ने एक नये चेहरे महेन्द्र नागेश पर दांव लगाया है। वह 2005 से 2010 तक जिला पंचायत नरसिंहपुर के प्रमुख रह चुके हैं।
उन्हें केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल का करीबी माना जाता है। गोटेगांव प्रह्लाद पटेल की जन्म भूमि है। इस लिहाज से नागेश की जीत सुनिश्चित करना उनके लिए ‘प्रतिष्ठा’ का प्रश्न भी बन गया है।
हर विधानसभा चुनाव में अपना प्रतिनिधि बदल देने की विशेष पहचान रखने वाले इस क्षेत्र में एक ही बार वह मौका आया, जब किसी एक दल ने यहां से लगातार दो बार चुनाव जीता।
1993 में पहली बार जीते थे नर्मदा प्रसाद
कांग्रेस से नर्मदा प्रसाद प्रजापति ने 1993 में यहां से जीत दर्ज की, लेकिन अगले चुनाव में पार्टी ने प्रजापति का टिकट काट दिया और शेखर चौधरी को अपना उम्मीदवार बना दिया।
साल 1998 में चौधरी ने यहां से जीत दर्ज की थी। प्रजापति यहां से चार बार विधायक रहे हैं, लेकिन वह कभी भी लगातार दो बार विधायक नहीं चुने गए।
कांग्रेस सरकार में रहे विधानसभा अध्यक्ष
प्रजापति कमलनाथ के नेतृत्व में 2018 में बनी कांग्रेस सरकार के 15 महीने के कार्यकाल के दौरान राज्य विधानसभा अध्यक्ष रहे थे। वह दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली पहली सरकार (1993-98)में राज्य के ऊर्जा मंत्री भी रह चुके हैं।
मतदाताओं का रुख देखते हुए पार्टियां भी यहां हर चुनाव में अपना उम्मीदवार बदल देती हैं। साल 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के हाकम सिंह मेहरा ने प्रजापति को हराया था।
टिकट काट से शेखर चौधरी हुए बागी
इस चुनाव में कांग्रेस ने अपने तत्कालीन विधायक शेखर चौधरी का टिकट काट दिया था। इससे नाराज होकर शेखर चौधरी भाजपा में शामिल हो गए, तो अगले विधानसभा चुनाव (2008) में भाजपा ने हाकम सिंह का टिकट काटकर शेखर चौधरी को टिकट दे दिया।
इस चुनाव में मुकाबला प्रजापति और चौधरी में हुआ, लेकिन जीत प्रजापति की हुई। इस बार के चुनाव में दोनों फिर से आमने-सामने हैं। बस अंतर यह है वह इस बार निर्दलीय मैदान में हैं।
गोटेगांव सीट पर परंपरागत रूप से भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला रहता है, लेकिन यहां इस बार के विधानसभा चुनाव को शेखर चौधरी ने त्रिकोणीय बना दिया है।
क्या कहती है गोटेगांव की जनता?
गोटेगांव के न्यू बस स्टैंड पर मिले 55 वर्षीय एक किसान श्याम सिंह पटेल ने चुनावी माहौल के बारे में पूछे जाने पर कहा कि यहां इस बार मुख्य लड़ाई भाजपा और निर्दलीय शेखर चौधरी के बीच है।
उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव जीतने के बाद यहां दिखाई ही नहीं पड़ते हैं। वह अधिकांश समय या तो दिल्ली या फिर भोपाल और जबलपुर में रहते हैं।’’
कृषि की दृष्टि से यह क्षेत्र समृद्ध है। यहां के किसान बड़ी संख्या में गन्ने व दलहन की खेती करते हैं। यहां गुड़ का उत्पादन होता है और क्षेत्र में चीनी की कुछ मिलें भी हैं।
श्याम सिंह पटेल बताते हैं कि किसानों के लिए सिंचाई व्यवस्था परेशानी का सबब है, क्योंकि उन्हें भूमिगत जल स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है। उन्होंने कहा कि बिजली छह से सात घंटे ही आती है और वह महंगी भी है।
गोटेगांव में जातिगत समीकरण
इस विधानसभा क्षेत्र में दो लाख के करीब मतदाता हैं। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक इनमें 93,860 महिला मतदाता हैं। सबसे अधिक संख्या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के मतदाताओं की है।
क्षेत्र में कुर्मी, लोधी और कोटवार मतदाताओं की भी अच्छी खासी मौजूदगी है, जो किसी भी उम्मीदवार का खेल बना और बिगाड़ सकते हैं।
यहां के मतदाताओं में प्रजापति के प्रति नाराजगी भी दिखी। राईखेड़ा इलाके में रहने वाले घनश्याम सिंह नाम के एक युवक ने कहा कि प्रजापति जनता के बीच रहते ही नहीं हैं और ना ही उन्होंने कोई काम किया है।
उन्होंने कहा, ‘‘शेखर चौधरी लोगों के बीच रहते हैं और उन्होंने कोरोना के समय जो काम किए हैं, उसे कोई भूल नहीं सकता।’’
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