Burhanpur Collector Fine: मध्यप्रदेश के बुरहानपुर के रहने वाले पर्यावरण प्रेमी अंतराम अवासे को सिर्फ इसिलए जिला बदर कर दिया गया, क्योंकि वे जंगल में अवैध कटाई की लगातार जिला प्रशासन और वन विभाग से शिकायत करते थे। कलेक्टर द्वारा की गई कार्रवाई पर कमिश्नर ने भी लीपापोती कर दी। आखिरकार अंतराम अवासे को हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी और वहां से उन्हें न्याय मिला। साथ ही मनमानी कार्रवाई करने वाले कलेक्टर पर कोर्ट ने 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है।
यहां बता दें, अंतराम अवासे जागृत आदिवासी दलित संगठन के कार्यकर्ता हैं।
जबलपुरः हाईकोर्ट ने बुरहानपुर कलेक्टर पर लगाया 50 हजार का जुर्माना, दलित संगठन कार्यकर्ता अंतराम आवासे को किया था जिला बदर#Jabalpur #HighCourt #BurhanpurCollector #fine #mpnews pic.twitter.com/ZOxI4uWYLa
— Bansal News (@BansalNewsMPCG) January 23, 2025
हाईकोर्ट ने सरकार को दिए ये निर्देश
जस्टिस विवेक अग्रवाल की कोर्ट ने सुनवाई करते हुए 22 जनवरी को बुरहानपुर कलेक्टर पर 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया। हाईकोर्ट ने राज्य शासन को यह भी अनुमति भी दी है कि अगर वह चाहे तो कलेक्टर से यह राशि व्यक्तिगत रूप से भी वसूल सकता है।
अवैध कटाई का उठाया था मुद्दा
अंतराम अवासे जंगल में चल रही अवैध कटाई को लेकर लगातार जिला प्रशासन और वन विभाग से शिकायत करते रहे थे। इसके लेकर कई बार धरना भी दिया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। उल्टा राजनीतिक दबाव में जिला प्रशासन ने अंतराम के खिलाफ ही 11 मामले दर्ज कर दिए। इन्हीं में से दो अन्य आपराधिक मामलों को आधार बनाते हुए कलेक्टर बुरहानपुर ने शिकायतकर्ता के खिलाफ यानी अंतराम के विरुद्ध ही जिला बदर का आदेश जारी कर दिया। हालांकि बाद में अंतराम ने कलेक्टर के आदेश को इंदौर कमिश्नर के समक्ष चुनौती दी, लेकिन कमिश्नर ने भी सजा को यथावत रखा। अंत में पीड़ित अंतराम ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट पहुंचे।
जस्टिस अग्रवाल ने कहा- राजनीतिक दबाव में कार्रवाई करना गलत
हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल की कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा, अगर राजनीतिक दबाव में आकर ऐसी कार्रवाई की गई है, तो यह न्याय उचित नहीं है। याचिकाकर्ता के वकील काजी फखरुद्दीन ने कोर्ट को बताया कि अंतराम अवासे ने 2023 को बुरहानपुर जिले में हो रही अवैध वन कटाई के खिलाफ आवाज उठाई थी, जिसके बाद 2024 में कलेक्टर ने उनके खिलाफ जिला बदर का आदेश जारी कर दिया। याचिकाकर्ता की दलील सुनने के बाद कोर्ट ने कहा, कलेक्टर और इंदौर कमिश्नर ने बिना उचित विवेक के आदेश पारित किया। कोर्ट ने यह भी कहा कि अंतराम अवासे से सुनवाई के दौरान भी लोक शांति और सुरक्षा को कोई खतरा साबित नहीं हुआ।
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