MP Aaj Ka Mudda: विकलांग श्रद्धा का दौर साहित्य के सूरज हरिशंकर परसाई का मशहूर व्यंग जो आजकल मध्यप्रदेश और खासकर विंध्य की सियासत पर सटीक बैठ रहा है। एक के बाद एक नेता श्रद्धा बदलकर मिनटों में दूसरे पाले में पूरे विश्वास के साथ आस्था का प्रदर्शन करते हैं।
सिद्धार्थ तिवारी बीजेपी के हुए
सिद्धार्थ तो विंध्य की राजनीति के दादा कहे जाने वाले श्रीनिवास तिवारी की विरासत को टिकट के चक्कर में बीजेपी में ले गए। लेकिन विंध्य में भरोसे के भरभराकर टूटने के सिद्धार्थ न तो पहले और ना ही आखिरी उदाहरण हैं।
चुनावी साल, सियासी फेर
चुनावी आस्था के कई बड़े प्रतीक विंध्य में पहले से मौजूद हैं। लिस्ट इतनी लंबी है कि नाम गिनाने में लंबा वक्त लगेगा। किसी ने टिकट से पहले श्रद्धा का तर्पण किया। कोई टिकट न मिलने के बाद रोते हुए कहीं और से आस्था का सर्टीफिकेट ले आया और चुनौती देने लगा।
बागी हुए नारायण, केदार
पार्टी को 440 वोल्ट का झटके देने की कोशिश हर दल के नेताओं ने की है। सफेद शेरों की धरती कहे जाने वाले विंध्य में सवा सेर बनने के चक्कर में कोई नारायण बना तो किसी का केदार पर्वत सा भरोसा टिकट कटते ही छन से टूट गया।
विंध्य में और कितने शेर !
कुल मिलाकर चुनावी पूजन में आस्था की गारंटी चाइनीज माल की तरह है, जब तक चला तो चला। सेवा को सियासत का लक्ष्य बताने वाले बिना टिकट के सेवा का भाव क्यों पैदा नहीं कर पाते। क्या ये पार्टी के प्रति श्रद्धा और विश्वास के दरकने का दौर है। जिसकी आवाज़ फिलहाल विंध्य की राजनीति में बढ़ी तेजी से सुनाई दे रही है।
बंसल न्यूज के सवाल
पहला सवाल—सिद्धार्थ तिवारी का जाना क्या विंध्य में कांग्रेस को बड़ा झटका है?
दूसरा सवाल— क्या सिद्धार्थ के बहाने बीजेपी ने कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान को उजागर किया?
तीसरा सवाल—क्या नेताओं की आवाजाही का दौर और तेज होगा?
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