हाइलाइट्स
-
मोदी, राम मंदिर और राष्ट्रवाद बीजेपी कैंडिडेट की ताकत
-
नीटू को परिवार के राजनीतिक रसूख का मिल सकता है लाभ
-
मुरैना सीट पर बीजेपी को मिलेगी कांग्रेस की बड़ी चुनौती
Morena Lok Sabha seat: मध्यप्रदेश में कांग्रेस के तीन प्रत्याशियों की शनिवार को घोषणा के साथ ही सभी 29 लोकसभा सीटों की तस्वीर साफ हो गई है।
मध्यप्रदेश में कांग्रेस 28 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। खजुराहो सीट कांग्रेस ने समझौते के तहत समाजवादी पार्टी को दी थी, लेकिन वहां से सपा के प्रत्याशी का पर्चा खारिज हो गया है।
ऐसे में खजुराहो में बीजेपी को एक तरह से विपक्ष का वाकओवर मिल गया है। यहां बता दें, खजुराहो से बीजेपी के प्रत्याशी वीडी शर्मा हैं। जो मौजूदा सांसद भी हैं।
शिवमंगल सिंह vs नीटू सिकरवार
यहां हम मुरैना लोकसभा सीट (Morena Lok Sabha seat) की बात कर रहे हैं। इस लोकसभा सीट पर बीजेपी के शिवमंगल सिंह तोमर का मुख्य मुकाबला कांग्रेस के सत्यपाल सिंह सिकरवार ‘नीटू’ से है।
हालांकि अभी यहां से बसपा का प्रत्याशी का ऐलान होना बाकी है।
मुरैना में बीजेपी का लगातार 28 साल से कब्जा
मुरैना लोकसभा सीट (Morena Lok Sabha seat) पर 28 साल से बीजेपी का कब्जा है। इस बार भी डबल एम फैक्टर ( मोदी और मंदिर ) चल रहा है।
ऐसे में कांग्रेस के सामने ढेरों मुश्किलें हैं। ऐसे मुरैना में कांग्रेस का कैंडिडेट, बीजेपी प्रत्याशी को कितनी चुनौती दे पाएगा? यह अहम सवाल सियासी गलियारों में गूंज रहा है। मुरैना में एक तरह से ठाकुर बनाम ठाकुर की टक्कर है।
शिवमंगल सिंह की छवि कॉपरेटिव नेता की
मुरैना (Morena Lok Sabha seat) में बीजेपी प्रत्याशी शिवमंगल सिंह तोमर, विधायक रहे हैं। इसके अलावा उनकी छवि कॉपरेटिव नेता की है।
साथ में शिवमंगल सिंह तोमर मध्यप्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के समर्थक हैं। यानी मुरैना में नरेंद्र सिंह फैक्टर भी काम करेगा।
बीजेपी कैंडिडेट शिवमंगल सिंह का मजबूत पक्ष
बीजेपी प्रत्याशी शिवमंगल सिंह तोमर के मजबूत पक्ष के रूप में यहां हम पांच कारण गिना रहे हैं-
1- मोदी और राम मंदिर
शिवमंगल सिंह तोमर को मोदी लहर और राम मंदिर फैक्टर का पूरा लाभ मिलने की संभावना है।
जैसा कि बीजेपी ने इस बार 400 पार का नारा दिया है और राष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह की बीजेपी और पीएम नरेंद्र मोदी की हवा चल रही है।
उसमें शिवमंगल सिंह की नैया पार होने से इनकार नहीं किया जा सकता है। इसमें अयोध्या में बना राम मंदिर भी बड़ी मदद कर सकता है। यानी हिंदू वोटर्स को कमल पर बटन दबाने के लिए उत्साहित कर सकता है।
2- नरेंद्र सिंह तोमर
शिवमंगल सिंह तोमर, विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के कैंडिडेट माने जा रहे हैं। इसलिए यहां नरेंद्र सिंह फैक्टर भी चलेगा और उनके समर्थकों का साथ मिलेगा।
नरेंद्र सिंह तोमर मुरैना से दो बार सांसद रहे हैं और केंद्र में मंत्री भी रहे हैं। उनका भी मुरैना में एक प्रभाव है। जिसका लाभ शिवमंगल सिंह तोमर को मिल सकता है।
3- ब्राह्मण और क्षत्रीय वोट बीजेपी का बड़ा वोट बैंक
ब्राह्मण और क्षत्रीय वोट बैंक सामान्य रूप से बीजेपी के पक्ष में ज्यादा रहता है। इससे यहां के ब्राह्मणों के 60 फीसदी वोट बीजेपी के खाते में जाते रहे हैं।
इस बार अभी तक कोई ब्राह्मण कैंडिडेट भी मैदान में नहीं आया है। इसलिए इस बार बीजेपी को मिलने वाले ब्राह्मण वोटों में इजाफा हो सकता है।
इसके अलावा ओबीसी और अनुसूचित जाति का 50 प्रतिशत वोट बीजेपी के पक्ष में जाने की संभावना है।
4- राष्ट्रवाद
बीजेपी हमेशा राष्ट्रवाद की बात करती है और इसे लेकर मोदी सरकार ने काफी काम भी किए हैं। राष्ट्रीयता से प्रभावित वोटर्स बीजेपी और मोदी को देखकर वोट करते हैं। ऐसे में शिवमंगल सिंह तोमर को पार्टी की इस विचारधारा का भी लाभ मिल सकता है।
5- तोमर समाज का वोट बोनस का काम करेगा
बीजेपी कैंडिडेट शिवमंगल सिंह तोमर को उनके समाज का भी वोट बोनस के रूप में मिलेगा। मुरैना लोकसभा सीट पर एक लाख के करीब तोमर वोट बैंक है।
कांग्रेस प्रत्याशी नीटू सिकरवार का मजबूत पक्ष
कांग्रेस प्रत्याशी सत्यपाल सिंह सिकरवार ‘नीटू’ के पक्ष को मजबूत करते पांच मुख्य कारण ये हैं-
1- पिता का राजनीतिक रसूख
नीटू सिकरवार के पिता गजराज सिंह सिकरवार दो बार सुमावली से बीजेपी विधायक रहे हैं।
इसके अलावा गजराज सिंह, मुरैना बीजेपी के जिला अध्यक्ष रहे हैं। ग्वालियर-चंबल के अधिकतर सीनियर नेताओं से जगराज सिंह सिकरवार के खास और व्यक्तिगत रिश्ते रहे हैं।
उसमें विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर भी शामिल हैं। चूंकि बीजेपी उनकी मात्र संस्था रही है, सो अभी तक उनके बीजेपी नेताओं से अच्छे संबंध हैं। इसका लाभ नीटू को मुरैना में मिल सकता है।
2- नीटू सिकरवार सुमावली से विधायक रहे
शिवराज सिंह चौहान कार्यकाल ( बीजेपी सरकार ) में में नीटू सिकरवार सुमावली से बीजेपी के विधायक रहे हैं।
नीटू मुरैना जिला पंचायत के अध्यक्ष भी रहे हैं। उनका मुरैना की सियासत में खासा दखल है। मुरैना के लिए जाने-पहचाने चेहरे हैं।
ठाकुर समाज, विशेष रूप से सिकरवारों का मुरैना में ठीक-ठाक वोट बैंक है। जिसका नीटू को पूरा लाभ मिलने की संभावना है।
3- चाचा बृंदा सिकरवार और चचेरे भाई मानमेंद्र भी जनप्रतिनिधि
नीटू सिकरवार के चाचा बृंदावन सिंह सिकरवार की मुरैना की राजनीति में जबरदस्त पैठ है। वे 2014 में मुरैना से लोकसभा चुनाव बसपा के टिकट पर लड़ चुके हैं।
जिसमें बीजेपी के अनूप मिश्रा के खिलाफ 2 लाख 42 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए थे और कांग्रेस के कैंडिडेट डॉ. गोविंद्र सिंह को तीसरे नंबर पर धकेल दिया था।
इसके अलावा नीटू के चचेरे भाई मानमेंद्र सिंह मुरैना जिला पंचायत के उपाध्यक्ष रहे चुके हैं। यानी नीटू को चाचा और चचेरे भाई का भरपूर साथ मिलेगा। जो वोटों की संख्या बढ़ाने में नीटू के लिए मददगार होगा।
4- विधायक भाई और मेयर भाभी का आशीर्वाद
नीटू सिकरवार को बड़े भाई और ग्वालियर पूर्व से कांग्रेस विधायक सतीश सिंह सिकरवार और ग्वालियर की मेयर भाभी शोभा सिकरवार का आशीर्वाद मिलना तय है।
क्योंकि, नीटू को मुरैना से टिकट दिलाने में सतीश सिकरवार की भी बड़ी भूमिका रही है।
हालांकि, कांग्रेस सतीश को ग्वालियर से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहती थी, लेकिन उन्होंने दावेदारी नहीं जताई और नीटू के लिए मुरैना लोकसभा से टिकट की सिफारिश थी।
5- धन-बल से सक्षम
नीटू सिकरवार सक्षम कांग्रेस कैंडिडेट हैं। उनकी प्रचार-प्रसार के लिए कांग्रेस पर ज्यादा निर्भरता नहीं रहेगी।
वे चुनाव के लिए सभी संसाधन खुद जुटाने में समर्थ हैं। इसके अलावा चुनाव मैनेजमेंट से लेकर जनसंपर्क तक के लिए उनके पास बड़ी संख्या में समर्थकों की फौज है।
मुरैना लोकसभा सीट (Morena Lok Sabha seat) पर विभिन्न वर्ग के वोटर्स
- ब्राह्णण समाज 3.25 लाख
- ओबीसी (गुर्जर व अन्य भी ) 4 लाख
- क्षेत्रीय ( तोमर व सिकरवार भी ) 3.50 लाख
- अनुसूचित जाति 4.25 लाख
- मुसलमान 1 लाख
- तोमर 1 लाख
- सिकरवार 65 हजार
(सभी आंकड़े अनुमानित )
आठ विधानसभा सीट में से 5 पर कांग्रेस
मुरैना लोकसभा सीट (Morena Lok Sabha seat) में आठ विधानसभाएं आती हैं। जिसमें से दो श्योपुर जिले में और 6 मुरैना जिले में हैं।
इनमें से श्योपुर, विजयपुर, जौरा, मुरैना और अंबाह में कांग्रेस का कब्जा है। वहीं सबलगढ़, सुमावली और दिमनी में बीजेपी के विधायक हैं।
मुरैना में 1996 से बीजेपी का कब्जा
मुरैना लोकसभा सीट (Morena Lok Sabha seat) पर 1996 से लगातार बीजेपी का कब्जा है। 1996 में अशोक अर्गल चुनाव जीते थे।
उसके बाद 1998, 1999 और फिर 2004 में अशोक अर्गल ने जीत हासिल की।
इसके बाद 2009 और 2019 में नरेंद्र सिंह तोमर दो बार चुनाव जीते और केंद्र में मंत्री बने। इसके बीच में बीजेपी के ही अनूप मिश्रा 2014 में चुनाव जीते और संसद पहुंचे।
हालांकि मुरैना (Morena Lok Sabha seat) से सबसे पहले बीजेपी के छविराम अर्गल 1989 में चुनाव जीते और दो साल तक सांसद रहे।
अंतिम बार मुरैना के कांग्रेस के बारेलाल जाटव 1991 में चुनाव जीते थे और पूरे पांच साल तक सांसद रहे।