Minimum marriage age: लड़कियों की शादी की उम्र में बड़ा बदलाव क्यों कर रही है सरकार! जानिए क्या होगा इसका असर

Minimum marriage age: लड़कियों की शादी की उम्र में बड़ा बदलाव क्यों कर रही है सरकार! जानिए क्या होगा इसका असर

Minimum marriage age

Minimum marriage age: केंद्र सरकार ने लोकसभा में लड़कियों की शादी की उम्र 18 साल से बढ़ा 21 साल किए जाने वाले संबंधी बिल को पेश कर दिया। लोकसभा में बिल पास होने के बाद इसे राज्यसभा में भी पेश किया जाएगा। वहीं दोनों सदनों से पास होने के बाद और राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल जाने के बाद इसे एक कानून की रूप में देश में लागू कर दिया जाएगा।

सरकार इस कानून को क्यों ला रही है?

कानून के लागू होते ही देश में 21 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों की शादी करना कानून अपराध होगा। हालांकि, कई लोगों के मन में ये सवाल उठ रहा है कि आखिर सरकार ऐसा क्यों करना चाह रही है? ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत कई विपक्षी दलों ने सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाए हैं। वहीं सरकार इस कानून को लेकर दावा कर रही है कि इसके लागू होते ही लड़कियों को काफी फायदा होगा। चलिए जानते हैं इस बिल से जुड़े कुछ तथ्यों के बारे में।

1978 में 18 साल तय किया गया था न्यूनतम उम्र

बतादें कि वर्तमान में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल है। जिसे 1978 में तय किया गया था। वहीं लड़कों की उम्र 21 साल है। वहीं अब केंद्र सरकार लड़कियों के लिए इस उम्र को बढ़ाकर 21 साल करने जा रही है। सरकार का दावा है कि ऐसा करने से लड़कियों के पोषण, हेल्थ, आर्थिक और एजुकेशनल स्थित में काफी सुधार आएगा।

पीएम ने जाहिर की थी चिंता

मालूम हो कि इसी साल 15 अगस्त को लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात का संकेत दिया था कि आने वाले समय में लड़कियों की शादी की उम्र में बदलावा किया जाएगा। उन्होंने इस दौरान बेटियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ को लेकर चिंता जाहिर की थी। उन्होंने कहा था कि अगर बेटियों को कुपोषण से बचाना है तो उनके विवाह की उम्र में सुधार किया जाना चाहिए।

सरकार ने कमेटी का गठन किया था

सरकार ने इसके लिए एक कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी में समता पार्टी के अध्यक्ष जया जेटली, नीति आयोग के डॉ. विनोद पॉल समेत कई मेंबर्स थे। सभी ने लड़कियों की शादी की उम्र से लेकर, मां के स्वास्थ, चिकित्सा कल्याण और पोषण संबंधी मामलों पर अपनी राय रखी थी। इस चर्चा में कुल प्रजनन दर, शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर को भी शामिल किया गया था।

लोगों की राय

हालांकि अब भी देश में इस कानून को लेकर लोग दो तरह की बातें करते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि सरकार इस कानून को नहीं भी लाती तो इससे ज्यादा कुछ फर्क नहीं पड़ता। DW हिंदी की रिपोर्ट के अनुसार एचएसक्यू-सेंटर फॉर राइट्स की एनाक्शी गांगुली कहती हैं कि निश्चित तौर पर महिलाओं और लड़कियों को सशक्तिकरण की जरूरत है। हम सरकार के इस फैसले पर उनके साथ हैं। लेकिन हम ऐसा लोगों को जागरूक करके भी कर सकते थे। इसके पीछे वो तर्क देती हैं कि एनसीआरबी के जो आंकड़े आएं हैं। उसके अनुसार देश में बाल विवाह के मामले घटे हैं।

लोग अब मर्जी से कम उम्र में नहीं करना चाहते शादी

अगर ये मामले बढ़ रहे होते तो इस कानून को लाना सही था। लेकिन अगर लोग अपनी मर्जी से अब बेटियों की शादी कम उम्र में नहीं कर रहे हैं तो फिर इस कानून को लाने का कोई मतलब ही नहीं था। मौजूदा कानून ही कम उम्र में शादी को रोकने के लिए पर्याप्त था। जो लोग मौजूदा कानून का पालन नहीं करते हैं वो आगे भी इस कानून का पालन नहीं करेंगे। हम चाह कर भी इसे कानून से नहीं रोक सकते, जब तक की लोग खुद जागरूक नहीं हो।

लड़कियों की छूट जाती थी पढ़ाई

वहीं केंद्र सरकार के इस फैसले पर सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की रंजना कुमारी कहती हैं कि हमने लंबे समय से शादी की उम्र बराबार, यानी लड़का और लड़की की उम्र 21 वर्ष करने को लेकर अभियान चलाया है। ऐसे में सरकार का ये कदम स्वागत योग्य है। इससे लड़कियों की शिक्षा की संभावना बढ़ेगी। ग्रैजुएशन स्तर तक पढ़ाई करने से उन्हें अब कोई नहीं रोक सकता, क्योंकि पहले लोग 18 के बाद लड़की की शादी कर देते थे, तो बीच में ही लड़कियों की पढ़ाई छूट जाती थी।

कुमारी आगे कहती हैं कि लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाने से वे अब फैसले लेने में अधिक सक्षम हो पाएंगी और प्रजनन को लेकर भी सही से फैसले कर पाएंगी। परिपक्व उम्र में शादी होने से वे सजग हो पाएंगी और उनके पास संभावनाएं ज्यादा होंगी।

वर्तमान में शादी की औसत उम्र

वहीं सरकारी आंकडे़ बताते हैं कि वर्तमान में महिलाओं की शादी होने की औसत उम्र बढ़कर 22.1 साल हो गई है। हालांकि अभी भी देश में 23 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं जिनकी शादी 18 साल से पहले हो जाती है।

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