हाइलाइट्स
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13 विभिन्न भाषाई समाज के 289 कलाकारों ने दीं प्रस्तुतियां
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दो दिवसीय भाषाई सम्मेलन का शक्ति नगर स्थित सुभाष मैदान में समापन
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ऋषि-मुनियों के चित्रों की प्रदर्शनी सम्मेलन में आकर्षण का केंद्र रही
Matra Bhasha Manch Sammelan: राजधानी के शक्ति नगर स्थित सुभाष मैदान में रविवार को दो दिवसीय मातृभाषा मंच के सम्मेलन का समापन हुआ।
कार्यक्रम में पहले दिन 125 कलाकारों ने अपने-अपने भाषाई नृत्यों की प्रस्तुतियां दीं।
वहीं, दूसरे दिन 164 कलाकारों ने सांस्कृतिक नृत्यों के साथ धार्मिक लीलाओं का भी मंचन किया गया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बीएचईएल के कार्यपालक निदेशक एसएम रामनाथन, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भोपाल विभाग के विभाग संघचालक सोमकांत
उमालकर और मातृभाषा संगठन के अध्यक्ष संतोष सिंह रावत उपस्थित रहे।
स्व का बोध, दैनिक उपयोग की वस्तुएं भारतीय हो, इसका ध्यान रखें
सम्मेलन (Matra Bhasha Manch Sammelan) में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भोपाल विभाग के संघचालक सोमकांत उमालकर ने कहा कि समाज में स्व का बोध होना आवश्यक है।
स्व से तात्पर्य स्वदेशी से है। हमारे दैनिक उपयोग की वस्तुओं से लेकर वस्त्र, खानपान का सामान और मोबाइल फोन, सब भारतीय ही हों, इसका ध्यान रखने की आवश्यकता है।
समाज अगर स्व बोध को समझ गया तो भारत आर्थिक रूप से सशक्त होगा।
‘युवा नौकरी करने वाला नहीं देने वाला बन रहा है’
उमालकर ने कहा (Matra Bhasha Manch Sammelan) कि आज के भारत का युवा नौकरी करने वाला नहीं, नौकरी देने वाला बन रहा है।
इसमें हमारा क्या योगदान हो सकता है, इसे सोचने की आवश्यकता है। क्या हम हमारे आसपास के कारीगरों, बुनकरों, बढ़ई, दर्जियों आदि से उनके द्वारा निर्मित स्वदेशी वस्तुएं खरीद सकते हैं। उ
न्होंने कहा कि सामाजिक समरसता की शुरुआत स्वयं से ही करनी होगी। बिना किसी छुआछूत के समाज का प्रत्येक हिन्दू मेरा भाई है, इस अवधारणा के साथ समाज में काम करना है।
कुटुम्ब प्रबोधन की आवश्यकता
साथ ही उमालकर ने बताया कि कुटुम्ब प्रबोधन की आवश्यकता है। कुटुम्ब प्रबोधन से तात्पर्य है कि भारत में वर्षों से एक अनोखी परिवार व्यवस्था विकसित हुई।
भारतीय परिवारों ने अन्य देशों की तुलना में अधिक अनुपालन और लचीलापन दिखाया है।
साझा करना और देखभाल करना, पारिवारिक स्वास्थ्य और अखंडता के मूल में है।
स्वाभाविक रूप से ‘सभी एक के लिए और एक सभी के लिए’ पर आधारित प्रणाली भारतीय परिवारों में सफलता का चालक प्रतीत होती है।
परिवारों को संस्कृति के संरक्षण और प्रसार के माध्यम के रूप में माना जाता है।
13 भाषाई समाजों के व्यंजन और नृत्यों ने बिखेरा आनंद
राजधानी के विभिन्न भाषाई समाजों की भागीदारी से मातृभाषा मंच (Matra Bhasha Manch Sammelan) के दो दिवसीय कार्यक्रम में 13 भाषाई समाजों के व्यंजन और नृत्यों ने आनंद बिखेर दिया।
कार्यक्रम में आकर्षण का केंद्र छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा प्रचलित ‘होन’ मुद्रा रही।
प्रदर्शनी में लगाए गए 39 ऋषि मुनियों के चित्र
प्रांगण में लगी प्रदर्शनी में लगाए गए ऋषि-मुनियों के चित्रों ने ना केवल हिन्दू समाज को अपनी गौरवशाली संस्कृति और समृद्धशाली इतिहास की ओर देखने को विवश कर दिया।
वहीं, प्रदर्शनी के चित्रों ने कार्यक्रम में आए दर्शकों अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति का भी बोध कराया।
रामाष्टकम का संस्कृत श्लोक के साथ किया मंचन
रविवार को सम्मेलन (Matra Bhasha Manch Sammelan) में श्री रामाष्टकम संस्कृत भाषाई समाज के 9 कलाकारों ने संस्कृत के श्लोक ‘आदौ रामतपो वनादि गमनम’ पर प्रस्तुति दी,
जिसमें कम समय में संक्षिप्त रामायण का चित्रण किया गया। श्रीरामाष्टकम व्यास मुनि की एक सुन्दर रचना है, जिसमें ऋषि व्यास राम की आराधना करते हैं।
सिख समाज ने किया ‘गतका’ का प्रदर्शन
‘गतका’ सिख समाज की एक पारंपरिक युद्ध कला है। इसे पारंपरिक कपड़ों में लाठी, तलवार और ढाल के साथ खेला जाता है। गतका में तलवार चलाने वाले व्यायाम शामिल हैं,
जो हाथ-आंख के समन्वय और संतुलन में सुधार करते हैं। गतका का प्रदर्शन एकाग्रता, शक्ति, लचीलापन, चपलता, गति, सटीकता, परिशुद्धता के साथ सटीकता और समग्र शरीर समन्वय भी विकसित करता है।
माना जाता है कि गतका की उत्पत्ति तब हुई जब सिखों के 6वें गुरु हरगोबिंद ने मुगल काल के दौरान आत्मरक्षा के लिए कृपाण अपनाया था,
पंजाब सरकार ने इस भारतीय मार्शल आर्ट को खेल की मान्यता प्रदान कर दी है। गतका को खेलो इंडिया गेम्स में भी शामिल किया गया है।
मराठी नृत्य गोफ और तमिल नृत्यों की दी प्रस्तुतियां
सम्मेलन में महाराष्ट्र समाज के 21 कलाकारों ने मराठी नृत्य ‘गोफ’ और लेजिम की प्रस्तुतियां दी। वहीं, तमिल संगम समिति के 25 कलाकारों ने भक्तिमय लोकनृत्य माला की प्रस्तुतियां दी।
इसमें तमिलनाडु के तीन प्रमुख लोकनृत्य-अम्मानकुड़म, कावड़ीअट्टम और मयिलाट्टम का मंचन किया गया।
बिहार समाज भाषाई समाज के बिहार सांस्कृतिक परिषद भेल भोपाल के माध्यम से भोजपुरी, मगही और मैथिली भाषाई समूह के प्रतिभागियों द्वारा प्रस्तुति पेश की गई,
जिसमें भाषाई समूह के लोक संस्कृति, लोक नृत्य एवं लोक संगीत को प्रस्तुत किया गया।
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पंजाबी और कन्नड़ भाषाई समाज के कलाकारों ने भी लोक नृत्य प्रस्तुत किए
साथ ही पंजाबी भाषाई समाज के 10 कलाकारों ने पंजाबी नृत्य, कन्नड़ भाषाई समाज के 4 कलाकारों ने जाथीस्वरमण और भरतनाट्यम गीत, सिंधी भाषाई समाज के 10 कलाकारों ने अपने
परंपरागत लोकनृत्य, उड़िया भाषाई समाज के 8 कलाकारों ने जगन्नाथ भजन, बांग्ला भाषाई समाज के कलाकारों 24 कलाकारों ने माटीर कोले, तेलगु भाषाई समाज के 6 कलाकारों ने
कुचिपुड़ी और छत्तीसगढ़ी भाषाई समाज के 5 कलाकारों ने लोक गीत गायन की प्रस्तुतियां दीं।