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Matchbox Price Hike: 14 अलग-अलग तरीके के रॉ मटेरियल को मिलाकर बनती है माचिस, कभी इसे जलाने पर हो जाता था विस्फोट

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Bansal Digital Desk
Matchbox Price Hike: 14 अलग-अलग तरीके के रॉ मटेरियल को मिलाकर बनती है माचिस, कभी इसे जलाने पर हो जाता था विस्फोट

नई दिल्ली। 14 साल बाद माचिस के दाम दोगुने हो गए हैं। आज यानी 1 दिसंबर 2021 से माचिस अब 2 रूपए की बिकेगी। लोग मीम बना रहे हैं और कह रहे हैं कि जब गैस की कीमतें आसामान छू रही है तो माचिस कहां पीछे रहने वाले थी। बतादें कि माचिस बनाने वाली कंपनियों के प्रितिनिधियों ने एक साथ मिलकर यह फैसला लिया है। इससे पहले 2007 में माचिस की कीमत 50 पैसे से बढ़ाकर 1 रूपए की गई थी।

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  • क्यों बढ़ाई गई माचिस की कीमत?

कच्चे माल के रेट में बढ़ोतरी और चौतरफा बढ़ रही महंगाई के कारण माचिस का दाम बढ़ाया गया है। मैन्युफैक्चर्स के अनुसार,'एक माचिस को बनाने में 14 अलग-अलग तरीके के रॉ मटेरियल की जरूरत होती है। इनमें से कई मटेरियल ऐसे हैं, जिनकी कीमत दोगुनी से ज्यादा हो गई है। रेड फास्पोरस का रेट 425 रुपए से बढ़कर 810 रुपए हो गया है। वैक्स यानी मोम की कीमत 58 रुपए से बढ़कर 80 रुपए हो गई है। आउटर बॉक्स बोर्ड की कीमत 36 रुपए से बढ़कर 55 रुपए हो गई है. इनर बॉक्स बोर्ड की कीमत 32 रुपए से बढ़कर 58 रुपए हो गई है।

  • कैसे हुआ माचिस का आविष्कार

अब सवाल खड़ा होता है कि आखिर माचिस का आविष्कार कैसे हुआ था। बतादें कि 31 दिसंबर 1827 को इसका आविष्कार हुआ था। आविष्कार करने वाले वैज्ञानिक का नाम जॉन वॉकर था। जॉन वॉकर ने 1827 में सबसे पहले पत्थर को रगड़ने से जलाई जाने वाली आग को माचिस का रूप देने का विचार किया। उन्होंने एक ऐसी तीली बनाई, जिसे किसी भी खुरदरी जगह पर रगड़ने से वह जल उठती थी। हालांकि तब इसे काफी खतरनाक आविष्कार माना जाता था। क्योंकि कई लोग इससे चोटिल हो जाते थे।

मालूम हो कि माचिस की तीली पर सबसे पहले एंटिमनी सल्फाइड, पोटोसियम क्लोरेट और स्टार्च का इस्तेमाल किया जाता था। ऐसे में जब इसे रेगमाल पर रगड़ा जाता था तो एक छोटा सा विस्फोट होता था और इसके जलने पर काफी बदबू भी आती थी।

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  • इस तरह बनी सुरक्षित माचिस की तीली

ऐसे में साल 1832 में फ्रांस में एंटिमनी सल्फाइड की जगह माचिस की तीली पर फॉस्फोरस का इस्तेमाल किया गया। इससे तीली जलने पर निकलने वाली गंध दूर हो गई। लेकिन मामला यहीं शांत नहीं हुआ। क्योंकि अब इससे निकलने वाला धुंआ काफी विषैला और खतनाक हो गया था। ऐसे में साल 1855 में स्वीडन ट्यूबकर ने दूसरे केमिक्लस के मिश्रण से एक सुरक्षित माचिस बनाई, जिसका इस्तेमाल आज हम करते हैं।

  • भारत में माचिस का उत्पादन

भारत में सबसे पहले साल 1927 में शिवाकाशी में नाडार बंधुओं ने माचिस का उत्पादन शुरू किया था। इससे पहले भारत में माचिस विदेश से आती थी। बतादें कि माचिस की तीली कई तरह की लकड़ियों से बनाई जाती है। सबसे अच्छी माचिस की तीली अफ्रीकन ब्लैकवुड से बनती है। पाप्लर नाम के पेड़ की लकड़ी भी माचिस की तीली बनाने के लिए काफी अच्छी मानी जाती है। हालांकि, ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए कुछ कंपनियां तेजी से जलने वाली लकड़ी का इस्तेमाल करती हैं। माचिस की तीली के टॉप पर फास्फोरस का मसाला लगाया जाता है। ये एक अत्यंत ज्वलनशील रासायनिक तत्व है। इसके अलावा पोटैशियम क्लोरेट, लाल फॉस्फोरस, ग्लू, पिसा हुआ कांच, सल्फर और स्टार्च की मिलावट की जाती है।

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