Martyrs Day: कभी महात्मा गांधी के आंदोलनों में भाग लिया करता था गोडसे, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि उसने बापू की हत्या कर दी?

नई दिल्ली। देश को आजाद हुए एक साल भी नहीं हुए थे कि 30 जनवरी 1948 का दिन भारत के लिए एक मनहूस दिन बन गया। इस दिन देश ने अपने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को खो दिया था। नाथूराम गोडसे (Nathuram Godse) ने उनके सीने में 3 गोलियां मारीं थी और वो महात्मा हे राम कहते हुए इस दुनिया को अलविदा कह गए। गोडसे को इस जुर्म में 15 नवंबर 1949 को फांसी की सजा दी गई। लेकिन आपको ये जानकर हैरानी होगी कि खुद को हिंदू राष्ट्रवाद का कट्टर समर्थक कहने वाला गोडसे कभी महात्मा गांधी का पक्का भक्त हुआ करता था। आज हम गांधी जी को याद करते हुए नाथूराम गोडसे के बारे में जानेंगे कि ऐसा किया हुआ था कि जो कभी उनका अनुआई था वो विरोधी हो गया था।
कभी गांधीजी का भक्त था गोडसे
नाथूराम गोडसे का जन्म महाराष्ट्र के नाशिक में हुआ था। उसके पिता का नाम विनायक वामनराव गोडसे था जो पोस्ट आफिस में काम करते थे और उसकी मां लक्ष्मी गोडसे एक हाउस वाइफ थीं। गोडसे का पूरा नाम नाथुराम विनायक गोडसे था। ब्रिटिश हूकूमत के खिलाफ उसने हाई स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर आजादी की लड़ाई में कूद गया था। तब बापू ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को शुरू किया था। इस आंदोलन में गोडसे ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। हालांकि जैसे-जैसे दिन बीतने लगे तो उसके मन में ये बैठ गया कि बापू अपने आंदोलनों में हिंदू हितों को अनदेखी करते हैं और वह बापू के खिलाफ हो गया।
हिंदू राष्ट्र का सपना देखता था गोडसे
नाथूराम गोडसे पढ़ने लिखने में काफी अच्छा था और उसमें नेतृत्व करता के भी गुण थे। लेकिन जैसा कि हम जानते हैं कि कोई व्यक्ति अच्छी नीतियों को नेतृत्व देता है तो कोई गलत नीतियों को, गोडसे भी उन्हीं में से था। उसके मन में शुरूआत से ही कट्टर हिंदू और हिंदू राष्ट्र के सपने थे। यही कारण है उसने एक हिंदू राष्ट्रीय दल के नाम से एक संगठन भी बनाया था और लेखन की रूचि की वजह से वह हिंदू राष्ट्र नाम का एक अखबार भी निकालता था।
गोडसे ने गांधी जी की हत्या के लिए कई बार कोशिश की थी
हालांकि बापू की हत्या उसने किस वजह से की ये आज तक साफ नहीं हो पाया है। उनकी हत्या के पीछे कई कारण बताए जाते हैं, लेकिन कई सवाल आज भी जिंदा हैं जिसके जवाब नहीं मिल पाए हैं। कोर्ट में कार्यवाही के दौरान भी बार-बार हत्या के कारणों का जिक्र किया गया, लेकिन उसने कोर्ट को भी इस बारे में कुछ साफ नहीं बताया। गोडसे ने गांधी जी की हत्या के लिए कई बार कोशिश की थी, लेकिन वो हर बार नाकाम हो रहा था। लेकिन आखिरकार उसे 30 जनवरी 1948 को बापू की हत्या कर ही दी।
विभाजन के लिए गांधीजी को जिम्मेदार मानता था
जानकार मानते हैं कि गोडसे भारत के विभाजन के लिए गांधीजी को जिम्मेदार मानता था और उसे लगता था कि गांधीजी ने अंग्रेजों और मुसलमानों के बीच अपनी अच्छी छवि बनाने के लिए देश का बंटवारा होने दिया। वह तात्कालिन सरकार के मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए भी गांधीजी को ही जिम्मेदार मानता था। उसका मानना था कि गांधीजी मुस्लिमों के प्रति इतना दया भाव क्यों दिखाते हैं। उसके मन में ये हमेशा ये चलते रहता था कि गांधी जी ने हिंदुओं की तुलना में मुस्लिमों को ज्यादा तवज्जो दिया है।
अंबाला जेल में गोडसे को दी गई थी फांसी
एक बार गोडसे ने कहा भी था कि गांधीजी एक अच्छे साधु हो सकते हैं, लेकिन एक अच्छे राजनीतिज्ञ वो नहीं हैं। उन्होंने मुस्लिमों को खुश करने के लिए आजादी के बाद पाकिस्तान को 55 करोड़ रूपये दिलाए हैं। गांधी की हत्या करने के बाद गोडसे को गिरफ्तार कर लिया गया और उस पर मुकदमा चलाया गया। जसके बाद उसे 15 नवंबर 1949 को अंबाला जेल में फांसी दे दी गई।