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हाइलाइट्स
शिक्षा-सरकारी नौकरियों में मिलेगा 10% आरक्षण
आरक्षण बिल महाराष्ट्र विधानसभा से पास
लंबी है मराठा आरक्षण की मांग
Maratha Reservation: महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण पर बड़ा फैसला आया है। महाराष्ट्र कैबिनेट ने आज शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10% मराठा आरक्षण के बिल के मसौदे को मंजूरी दी फिर उसे महाराष्ट्र विधानसभा से पारित किया गया है।
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यानी अब महाराष्ट्र में मराठों को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण (रिजर्वेशन) मिलेगा। मराठों काफी सालों से इसकी मांग कर रहे थे।
सर्वे रिपोर्ट के आधार पर दिया गया आरक्षण
राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष सेवानिवृत्त न्यायाधीश सुनील शुक्रे ने बीते शुक्रवार यानी 16 फरवरी को मराठा समुदाय के पिछड़ेपन की जांच के लिए राज्य भर में किए गए सर्वेक्षण की रिपोर्ट मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (CM Eknath Shinde) को सौंपी थी। रिपोर्ट के अनुसार ही सरकार ने मराठों को आरक्षण दिया।
महाराष्ट्र सरकार ने मंगलवार, 20 फरवरी को दो दिन का राज्य विधानमंडल का विशेष सत्र बुलाया। सरकार ने सत्र में मराठों को 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण देने के लिए एक विधेयक पेश किया जो पास हो गया है। सत्र की शुरुआत राज्यपाल रमेश बैस के अभिभाषण से हुई। राज्यपाल रमेश बैस के आगमन पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने उनका स्वागत किया।
मनोज जरांगे ने जताई निराशा
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इस बीच मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जारांगे पाटिल ने कहा कि सरकार का यह फैसला चुनाव और वोटों को ध्यान में रखकर लिया गया है। यह मराठा समुदाय के साथ धोखा है। मराठा समुदाय आप पर भरोसा नहीं करेगा।
हमारा फायदा तभी होगा, जब हमारी मूल मांगें पूरी की जाएं। इस आरक्षण से काम नहीं चलेगा। सरकार अब झूठ बोलेगी कि आरक्षण दे दिया गया है। जरांगे फिलहाल मराठा आरक्षण को लेकर जालना जिले में अपने पैतृक स्थान पर 10 फरवरी से अनिश्चितकालीन अनशन पर हैं।
मराठा आरक्षण का इतिहास
मराठा खुद को कुनबी समुदाय का बताते हैं। इसी के आधार पर वे सरकार से आरक्षण की मांग कर रहे हैं। कुनबी, कृषि से जुड़ा एक समुदाय है, जिसे महाराष्ट्र में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की कैटेगरी में रखा गया है। कुनबी समुदाय को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण लाभ का मिलता है।
मराठा आरक्षण की नींव पड़ी 26 जुलाई 1902 को, जब छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज और कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति शाहूजी ने एक फरमान जारी कर कहा कि उनके राज्य में जो भी सरकारी पद खाली हैं, उनमें 50% आरक्षण मराठा, कुनबी और अन्य पिछड़े समूहों को दिया जाए।
इसके बाद 1942 से 1952 तक बॉम्बे सरकार के दौरान भी मराठा समुदाय को 10 साल तक आरक्षण मिला था। लेकिन, फिर मामला ठंडा पड़ गया। आजादी के बाद मराठा आरक्षण के लिए पहला संघर्ष मजदूर नेता अन्नासाहेब पाटिल ने शुरू किया। उन्होंने ही अखिल भारतीय मराठा महासंघ की स्थापना की थी। 22 मार्च 1982 को अन्नासाहेब पाटिल ने मुंबई में मराठा आरक्षण समेत अन्य 11 मांगों के साथ पहला मार्च निकाला था।
उस समय महाराष्ट्र में कांग्रेस (आई) सत्ता में थी और बाबासाहेब भोसले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे। विपक्षी दल के नेता शरद पवार थे। शरद पवार तब कांग्रेस (एस) पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने आश्वासन तो दिया, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाए। इससे अन्नासाहेब नाराज हो गए।
अगले ही दिन 23 मार्च 1982 को उन्होंने अपने सिर में गोली मारकर आत्महत्या कर ली। इसके बाद राजनीति शुरू हो गई। सरकारें गिरने-बनने लगीं और इस राजनीति में मराठा आरक्षण का मुद्दा ठंडा पड़ गया।
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