Former PM Manmohan Singh: पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह हमेशा अपने शांत स्वभाव और सादगी के लिए जाने गए। वे ना तो भाषणों में जोश दिखाते थे और ना ही किसी तरह के विवाद में पड़ते थे। उनका काम बोलता था और उनकी यही पहचान थी। मनमोहन सिंह ने भारत को आर्थिक संकट से उबारा और देश को दुनिया में नई पहचान दिलाई। उन्होंने अपने कार्य-व्यवहार से साबित किया कि बिना शोर मचाए भी बड़े बदलाव किए जा सकते हैं। मनमोहन सिंह का नाम भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में ऐसे शख्स के रूप में दर्ज है, जिसने अपने काम से देश को पहचान दिलाई।
रोजाना 18 घंटे काम करते थे
मनमोहन सिंह 2004 से 2014 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। इन 10 सालों में मनमोहन सिंह ने कभी छुट्टी नहीं ली, सिर्फ 2009 में जब उन्हें हार्ट की बाईपास सर्जरी करानी पड़ी, तब वे छुट्टी पर गए थे। वे हर दिन 18 घंटे काम करते थे और करीब 300 फाइलें निपटाते थे, लेकिन उनके शांत स्वभाव की वजह से लोग उन्हें कमजोर नेता मानने लगे थे।
पूर्व प्रधानमंत्री सिंह ने कहा था- इतिहास मेरे साथ इंसाफ करेगा
मनमोहन सिंह ने 2014 में साफ कर दिया कि वो तीसरी बार प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे। तब उन्होंने कहा था, ‘इतिहास मेरे साथ समकालीन मीडिया और विपक्ष से ज्यादा इंसाफ करेगा।’ आज उनके निधन के बाद लोग उनके योगदान को याद कर रहे हैं।
साल 1991 में लिया था ऐतिहासिक फैसला
साल 1991 में जब देश की अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजर रही थी, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी। उस दौर में भारत पर भारी कर्ज में डूबा था और विदेशी मुद्रा भंडार करीब खत्म होने के कगार पर था। मनमोहन सिंह ने एक बड़ा फैसला लिया और भारत को खुले बाजार की ओर ले गए। उन्होंने लाइसेंस-परमिट राज खत्म किया, टैक्स कम किए, विदेशी निवेश (Foreign Investment) को बढ़ावा दिया और भारत में कारोबार करना सरल बनाया।
उनका ये बयान आज भी याद किया जाता है-
‘दुनिया की कोई ताकत उस विचार को नहीं रोक सकती, जिसका समय आ गया है।’ इन फैसलों ने भारत की अर्थव्यवस्था को नई गति दी। भारत पहली बार वैश्विक आर्थिक (Global Economic) मंच पर मजबूत दिखाई देने लगा है
अटल जी की बात पर इस्तीफा देने का मन बना चुके थे

भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी सरकार के नेता होने से पहले मनमोहन सिंह वित्त मंत्री के रूप में राजनीतिक गलियारे में अपनी मजबूत छवि बना चुके थे। साल 1992 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने आर्थिक संकट से जूझ रहे देश को बचाने के लिए मनमोहन सिंह को जिम्मेदारी सौंपी थी। राजनीति में नए व्यक्ति के रूप में बाहर से आए मनमोहन सिंह के लिए ये राह सरल नहीं थी।
राष्ट्रपति की सलाह पर मनमोहन को बनाया था वित्त मंत्री
जिस समय देश में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार बनी थी, उस समय देश पर विदेशी मुद्रा का गंभीर संकट था। इस कठिन परिस्थिति में नए प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति से भेंट की और उनसे सलाह ली कि ऐसे माहौल में वित्त मंत्री किसे बनाया जाए। तत्कालीन राष्ट्रपति आर वेंकटरमन ने अपनी किताब ‘जब मैं राष्ट्रपति था’ में उल्लेख किया है कि नरसिम्हा राव ने मुझसे कहा कि वह ऐसे व्यक्ति को वित्त मंत्री बनाना चाहते हैं, जिसे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं के बारे में ज्ञान हो और उसके साथ काम करने का कुछ अनुभव भी हो।
वेंकटरमन ने लिखा कि उन्होंने नरसिम्हा राव को सलाह दी कि उन्हें एक ऐसे व्यक्ति को वित्तमंत्री नियुक्त करना चाहिए जो पार्टी के बाहर से हो। उन्होंने इस संदर्भ में दो नामों का सुझाव दिया। इसके बाद, वेंकटरमन ने बताया कि प्रधानमंत्री राव ने मनमोहन सिंह को वित्तमंत्री के रूप में चुना, क्योंकि वे साउथ ब्लॉक में उनके उत्कृष्ट कार्यों से भली-भांति परिचित थे।
अटल जी ने की थी उनके बजट की कड़ी आलोचना
मनमोहन सिंह ने वित्तमंत्री बनने के बाद आर्थिक सुधारों के संबंध में निर्णय लेना प्रारंभ किया। वर्ष 1992 में, उन्होंने अपना पहला बजट प्रस्तुत किया। इस दौरान विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने उनके बजट की कड़ी आलोचना की। इस आलोचना से मनमोहन सिंह का संवेदनशील और गैर-राजनीतिक मन इतना व्यथित हुआ कि उन्होंने इस्तीफा देने का विचार किया। जब नरसिम्हा राव को इस स्थिति का पता चला, तो वे बेहद चिंतित हो गए।
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…ऐसे बदला इस्तीफा देने का विचार
तत्कालीन प्रधानमंत्री राव ने बाद में अटल बिहारी वाजपेयी से अनुरोध किया कि वे मनमोहन सिंह से चर्चा कर लें। इसके बाद वाजपेयी ने मनमोहन सिंह से भेंट की और उन्हें बताया कि विपक्ष की आलोचना को व्यक्तिगत रूप से नहीं लेना चाहिए, क्योंकि विपक्ष का कार्य आलोचना करना ही होता है। यह सुनकर मनमोहन सिंह ने इस्तीफा देने का निर्णय बदला। इसके बाद वे राजनीति में अत्यंत गंभीर हो गए। इसका परिणाम यह हुआ कि उनके दो प्रधानमंत्रित्व काल के दौरान, उन्हें विपक्ष के अनेक हमलों का सामना करना पड़ा, लेकिन मनमोहन सिंह किसी भी प्रकार की आलोचना से प्रभावित नहीं हुए।
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