ग्वालियर: इसे नियती कह लें या फिर अपनों की बेरुखी एक अफसर कब भिखारी बन गया किसी को होश नहीं। झकझोर देने वाली ये कहानी है, ग्वालियर के एक शार्प शूटर की जिसने अपने डीएसपी साथी से कहा मैं तेरा दोस्त हूं…
नियती का खेल बड़ा ही अजीब है। राजा कब रंक और रंक कब राजा बन जाए पता नहीं चलता। ऐसी ही एक घटना ग्वालियर में सामने आई जहां पेट्रोलिंग पर निकले डीएसपी रत्नेश तोमर अपने काफिले के साथ सड़क से गुजर रहे थे, तभी उन्हें कचरे के ढेर पर एक भिखारी दिखाई दिया जो कचरे में कुछ खाने की तलाश कर रहा था। पुलिस की टीम रुकी और उस शख्स के पास पहुंची और उसे खाने के पैकेट्स दिए। इसी के साथ उसे कुछ गरम कपड़े भी दिए। लेकिन जब पुलिस टीम मदद देकर लौटने लगी तो कुछ कदमों के बाद पीछे से एक आवाज है..रत्नेश मैं तुम्हारा दोस्त हूं. पूरी टीम ठिककर रूक गई। दोबारा वापस उसी भिखारी के पास पहुंचे और पूछताछ की।
पूछताछ में पता चला की ये भिखारी कोई और नहीं, बल्कि 1999 बैच में सिलेक्ट सब इंस्पेक्टर मनीष मिश्रा थे। जो कई साल तक पुलिस डिमार्टमेंट की शान रहे। ग्वालियर चंबल में उनकी गिनती शार्प शूटर्स में होती थी। होनहार खिलाड़ी और एथलीट के तौर भी उन्होंने अपनी पहचान बनाई। लेकिन पिछले आठ दस से उनकी मानसिक स्थिति ऐसे बिगड़ी की होश खो बैठे।
मनीष मिश्रा का पूरा परिवार पुलिस सेवा में रहा है। उनकी पत्नी भी न्यायिक सेवा में है। आर्थिक तौर पर परिवार काफी संपन्न है, लेकिन अपने बेटे को संभाल नहीं पाया। ना ही उस महकमे ने उनकी चिंता की जो कभी उनकी तारीफों के पुल बांधा करता था। बताया जाता है कि पिछले 8-10 साल से वे इधर उधर भटक रहे हैं। परिवार ने कुछ समय खोजबीन की फिर उन्हें तलाशना छोड़ दिया। अब उनके पुराने साथियों ने सामाजिक संस्था स्वर्ग सेवा सदन आश्रम में भर्ती काराया है। सबको उम्मीद है मनीष पहले जैसे फिर स्वस्थ हो जाएंगे।