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Mandsaur: मध्य प्रदेश में मिली संजीवनी बूटी, रामायण काल में हुआ था इस पौधे का इस्तेमाल!

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Bansal Digital Desk
Mandsaur: मध्य प्रदेश में मिली संजीवनी बूटी, रामायण काल में हुआ था इस पौधे का इस्तेमाल!

मंदसौर। रामायण में जीवन रक्षक संजीवनी का उल्लेख मिलता है। अब ये संजीवनी आपको मध्य प्रदेश के मंदसौर में देखने को मिलेगी। दरअसल, मंदसौर के गांधी सागर अभयारण्य में 'अग्निशिखा' का पौधा मीला है। इस पौधे को प्राण बचाने वाली संजीवनी के तौर पर भी देखा जाता है। जैविक विविधता के लिए प्रसिद्ध गांधी सागर अभयारण्य में पहली बार वनस्पतियों का सर्वे हुआ। जिसमें विलुप्त मानी जाने वाली प्रजातियों के पौधे मिले हैं।

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क्या है धार्मिक मान्यता?

इन्हीं विलुप्त प्रजातियों में से एक अग्निशिखा का पौधा भी है। इसे विषलया के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि रामायण काल में भगवान राम के भाई लक्ष्मण जी के प्राण बचाने में इस औषधि का उपयोग किया गया था।

सर्वे में 502 से अधिक प्रजातियां मिली है

गांधी सागर अभयारण्य में 11 दिनों तक चले इस सर्वे को वनस्पति विशेषज्ञ डॉक्टर परवेज खान और सुभद्रा बारिक की टीम ने किया । इस सर्वे में 502 से अधिक प्रजातियां मिली है। जिनमें से 300 से अधिक औषधीय हैं और 70 प्रजातियां ऐसी हैं जो बहुत कम पाई जाती हैं। गौरतलब है कि इस सर्वे से पहले वन विभाग के पास गांधीनगर में केवल 48 पेड़ पौधों की प्रजातियों का ही डाटा था।

क्या है अग्निशिखा की विशेषता?

माना जाता है कि रामायण काल में लक्ष्मण जी को इसी पौधे की मदद से बचाया गया था। यह पौधा आसानी से नहीं मिलता। मध्य प्रदेश में इसे विलुप्त प्रजातियों में शामिल किया गया था। लेकिन अब पहली बार इसे गांधी सागर अभयारण्य में देखा गया है। घाव पर इस पौधे को लगाने से आराम मिलता है। साथ ही इसका लेप गर्भवती महिलाओं के पेट पर लगाने से प्रसूति में आसानी होती है।

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