भोपाल। makar sankranti 2024 हम हर साल 14 या 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाते हैं। नए साल के उत्सव के बाद हम हमारे प्राचीन पर्व मकर संक्रांति पर्व (makar sankranti 2024) की तैयारी में जुट जाते हैं, और जब यह पर्व आता है तो घरों में तिल-गुड़ की खुशबू महकती है। इस त्योहार पर सबमिलकर एक दूसरे को तिल के लड्डू खिलाकर पर्व की बधाई देते हैं।
बच्चे, बूढ़े, माता-बहनें सभी वर्ग इस पर्व के उत्सव में डूबकर मस्त हो जाते हैं।
वहीं बच्चे शहरों में घरों की छत और गांवों में खेतों की मेढ़ पर या गांव की गलियों में पतंगबाजी करते हैं।
लेकिन बड़ी बात यह है कि कई हजार साल पहले हुई इस मकर संक्रांति पर्व की शुरुआत के इतिहास के बारे में शायद ही हम ज्यादा जानते हैं। इस पर्व पर तिल-गुड़ के लड्डू का क्या है महत्व, इसकी परंपरा कब से शुरू हुई-
खगोल विज्ञान में क्या है इसका महत्व और यह कैसे काम करता है कि इस पर्व के आते ही लोग उत्साह से भर जाते हैं। इतना ही नहीं ज्योतिष में भी इसका काफी महत्व है। ज्योतिषियों के अनुसार इस पर्व के आने से हमारी दिनचर्या और जीवन के साथ—साथ खेती—किसानी, व्यवसाय में कैसा रहता है इसका असर… आइये इसके बारे में हम विस्तार से जानते हैं…
पतंग उत्सव के हो रहे आयोजन
इस बार मकर संक्रांति (makar sankranti 2024) 15 जनवरी को मनाई जा रही है। मकर संक्रांति पर्व को लेकर सनातन समाज में उत्साह है। नए
साल की शुरुआत से ही शहरों व कस्बों में कई तरह के आयोजन किए जा रहे हैं। इस दौरान तिल के लड्डुओं का वितरण किया जा रहा है। इतना ही नहीं सबसे ज्यादा पतंग उत्सव के आयोजन हो रहे हैं। इसका खुमार सबसे ज्यादा युवाओं और बच्चों के सर चढ़कर बोल रहा है। पतंगबाजी प्रतियोगिता के बाद इनाम भी पतंगबाज विजेताओं को दिए जा रहे हैं।
संक्रांति का 5 हजार साल पुराना इतिहास
आपको बता दें हर साल गुजरात 200 से भी अधिक त्योहार मनाता है। इसमें महत्वपूर्ण त्योहार मकर संक्रांति पर्व (makar sankranti 2024) और अंतरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव का है। संक्रांति पर्व का उल्लेख ऋग्वेद में भी है। ऋग्वेद में 5 हजार साल से भी अधिक पुराना यह त्योहार बताया गया है।
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भारतीय कैलेंडर के अनुसार, उत्तरायण का त्योहार उस दिन को चिह्नित करता है, जब सर्दी गर्मियों में बदलने लगती है। यह किसानों के लिए संकेत है कि सूर्य वापस आ गया है और फसल का मौसम, (makar sankranti 2024) मकर संक्रांति आ रही है। यह भारत में सबसे महत्वपूर्ण फसल दिवसों में से एक माना जाता है क्योंकि यह सर्दियों के अंत और फसल के मौसम की शुरुआत का भी प्रतीक है।
यहां से हुई पतंग उत्सव की शुरुआत
गुजरात के कई शहर अपने नागरिकों के बीच पतंग प्रतियोगिताएं आयोजित करते हैं। जनवरी माह में गुजरात में देशभर से लोग पतंग प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने पहुंचते है।
मालूम हो कि यहां लोगों में पतंगबाजी का इतना जुनून है कि गुजरात के प्रमुख शहरों में पतंगबाजी सुबह 5 बजे से ही शुरू हो जाती है और देर रात तक चलती है।
पतंग उड़ाना कई वर्षों से गुजरात में एक क्षेत्रीय कार्यक्रम रहा है। यहां पहला अंतरराष्ट्रीय उत्सव 1989 में मनाया गया था, जब दुनिया भर से लोगों ने भाग लिया और अपनी नवीन पतंगों का प्रदर्शन किया। इस उत्सव में लगभग 8-10 मिलियन लोग भाग लेते हैं।
इसलिए मनाते हैं मकर संक्रांति
ज्योतिष एवं भागवत सिंधु आचार्य पं. हर्षित शास्त्री महाराज का कहना है कि जब सूर्य का मकर (makar sankranti 2024) राशि में प्रवेश होता है उसी दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं। इसी के कारण मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है। यह अधिकतर 14 और 1415 जनवरी को ही पड़ती है।
उन्होंने कि बताया शास्त्रों के अनुसार सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश करने का संकेत ही किसानों की फॉर्मिंग एक्टिविटी बढ़ जाती है। उत्तरायण से ही रात छोटी होने लगती है और दिन बड़े होने लगते हैं। दिनों के बड़े होने बढ़ने से व्यवसायिक एक्टिविटी भी बढ़ जाती है।
कितना जरूरी है तिल के लड्डू खाना
पं. शास्त्री के अनुसार शिव महापुराण में वर्णन है कि जल में तिल डालकर स्नान करने से शरीर के सारे कष्ट दूर होते हैं। इतना ही नहीं सूर्य उत्तरायण के बाद जब मौसम बदलता है, दिन बड़े होने लगते हैं। ठंड कम हो जाती है, तब हमारे शरीर में कई तरह के मौसमी रोग बढ़ने लगते हैं और कई तरह की बीमारियों का खतरा रहता है।
इसलिए शास्त्रों में तिल और गुड़ से बने लड्डुओं का सेवन कर उत्सव (makar sankranti 2024) के रूप में सभी में बांटा भी जाता है ताकि कोई भी किसी बीमारी से पीड़ित न हो। तिल-गुड़ के लड्डू का सेवन करने से शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
मकर संक्रांति का ये है वैज्ञानिक महत्व
वैज्ञानिक पक्ष की जानकारी नेशनल अवॉर्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने बताया कि मान्यता है कि मकर संक्रांति (makar sankranti 2024) के दिन सूर्य उत्तरायण हो जाता है, लेकिन वास्तव में अब ऐसा नहीं होता है। हजारों साल पहले मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण हुआ करता था। इसलिए यह बात अब तक प्रचलित है।
उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक रूप से सूर्य उत्तरायण 22 दिसम्बर 2023 को प्रात: 8 बजकर 57 मिनट पर हो चुका है। उस समय सूर्य मकर (makar sankranti 2024) रेखा पर था। इसके बाद दिन की अवधि बढ़ने लगी है।
इसलिए 360 डिग्री घूमती है पृथ्वी
सारिका ने जानकारी दी कि संक्रांति (makar sankranti 2024) का अर्थ सूर्य का एक तारामंडल से दूसरे तारामंडल में पहुंचने की घटना है। सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती पृथ्वी एक साल में 360 डिग्री घूमती है। इस दौरान पृथ्वी के आगे बढ़ने से सूर्य के पीछे दिखने वाला तारामंडल बदलता जाता है। जब सूर्य धनु तारामंडल छोड़कर मकर तारामंडल में प्रवेश करता दिखता है तो इसे मकर संक्रांति कहा जाता है।
अभी से लगभग 1800-2000 वर्ष पूर्व मकर संक्रांति (makar sankranti 2024) 22 दिसंबर के आसपास मानाई जाती थी। इसी गति और समय अन्तराल के बढ़ते क्रम के कारण यह संक्रांति अब 14-15 जनवरी तक आ गई है। लगभग 80 से 100 वर्ष में यह संक्रांति काल 1 दिन बढ़ जाता है। एक गणना के अनुसार एक साल में संक्रांति 9 मिनट आगे बढ़ जाती है तथा 400 सालों में औसत रूप से 5.5 दिन आगे बढ़ जाती है।
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