मराठी से अंग्रेजी में अनुवाद में मूल विचारों को बरकरार रखना अहम : नदीम खान -

मराठी से अंग्रेजी में अनुवाद में मूल विचारों को बरकरार रखना अहम : नदीम खान

(किशोर द्विवेदी)

नयी दिल्ली, छह जनवरी (भाषा) प्रभाकर नारायण और विश्वास पाटिल जैसे मशहूर मराठी रचनाकारों की कृतियों का अनुवाद कर चुके लेखक नदीम खान का कहना है कि अंग्रेजी पाठकों के लिए मूल भावना और शब्दों के वास्तविक अर्थ को बरकरार रखना एक प्रमुख चुनौती होती है।

खान ने पाटिल की 1988 में प्रकाशित उत्कृष्ट मराठी कृति ‘पानीपत’ का भी अनुवाद किया है। उन्होंने कहा कि किसी भी भारतीय भाषा से अंग्रेजी में अनुवाद करना एक भिन्न संस्कृति में बदलने के समान होता है और इसमें मुहावरों, भावनात्मक ढांचे आदि की अहम भूमिका होती है।

खान ने पीटीआई-भाषा के साथ एक ईमेल साक्षात्कार में कहा कि उनका काम कृतियों को उनकी मूल भावना और उसके विषयों के वास्तविक स्वरूप को बरकरार रखते हुए उसे दूसरी भाषा में आकर्षक रूप से पेश करना है।

प्रसिद्ध मराठी लेखक अवधूत डोंगरे का जिक्र करते हुए खान कहते हैं कि लेखक अपने पात्रों का वर्णन करने के लिए भाषा की अलग-अलग बोलियों का इस्तेमाल करते हैं और इसे बदलना मुश्किल होता है

खान ने कहा, ‘‘ मूल कृति के शब्द और उनकी भावना को वास्तविक रूप में रखते हुए अंग्रेजी पाठक के लिहाज से बदलना हमेशा एक चुनौती होती है। लेकिन मेरा सौभाग्य है कि मैं टैगोर, इस्मत चुगताई, मंटो, राजिंदर सिंह बेदी, विजय तेंदुलकर आदि के अनुवाद के महान कार्यों को पढ़ते हुए बड़ा हुआ हूं। इससे मुझे अपने काम के लिए उपयुक्त रणनीति तैयार करने में मदद मिली।’’

खान ने 2018 में डोंगरे के दो उपन्यासों का अनुवाद किया था। डोंगरे साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार विजेता हैं।

पाटिल की रचना ‘पानीपत’ का अनुवाद करते समय, 69 वर्षीय सेवानिवृत्त अंग्रेजी प्राध्यापक के लेखक के साथ ‘गंभीर मतभेद’ थे। पाटिल उनके मित्र भी हैं।

खान ने कहा, ‘‘मैं स्पष्ट रूप से देख सकता था कि रचना मराठी पाठकों के साथ यह काफी लोकप्रिय क्यों हुयी, लेकिन मैं यह भी जानता था कि शब्दशः अनुवाद अंग्रेजी पाठकों को पसंद नहीं आएगा। यह एक रोमांचक ऐतिहासिक कहानी वाला उपन्यास है जिसमें काफी शोध किया गया है। लेकिन यह मराठी पाठकों के आत्म-सम्मान के अनुकूल था। इसलिए, मेरे सामने महाग्रंथ की सभी खूबियों, रोमांच को बरकरार रखने की चुनौती थी। साथ ही यह भी सुनिश्चित करना था कि यह अखंडता और साहस के लिए सार्वभौमिक प्रशंसा को लक्षित करे।’’

भाषा

अविनाश पवनेश

पवनेश

Share This

Login

Welcome! Login in to your account

Remember me Lost your password?

Lost Password