Maharana Pratap Jayanti: आज महाराणा प्रताप की जयंती है। उनका जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के मेवाड़ में हुआ था। महाराणा प्रताप ऐसे योद्धा थे, जिन्हें दुश्मन भी सलाम करते थे। महाराणा प्रताप घास की रोटी खाकर भी अकबर के खिलाफ लड़ते रहे थे। अकबर 30 साल तक कोशिश करता रहा, लेकिन महाराणा प्रताप को कभी बंदी नहीं बना सका। पढ़िए घास की रोटी की पूरी कहानी…
हल्दीघाटी का युद्ध और जंगल में शरण
1576 में हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप ने अपनी सेना से 4 गुना ज्यादा अकबर के सैनिकों से लोहा लिया। महाराणा के कई सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए और कई घायल हुए। हार को सामने देखकर प्रजा के हित में महाराणा प्रताप ने अरावली के जंगलों में शरण लेने का फैसला किया। इस बियाबान जंगल में उन्हें और उनकी प्रजा को भयंकर परेशानियों का सामना करना पड़ा।
घास की रोटी खाकर किया गुजारा
महाराणा प्रताप और उनके सैनिकों के पास जब राशन खत्म हो गया। तब उन्होंने जंगली घास के पत्तों और बीजों को पीसकर रोटी बनाई और उसे खाई। ये घास कोदो या रागी के नाम से जानी जाती है। इसकी रोटियां काफी पौष्टिक होती हैं।
जब बेटे के हाथ से रोटी छीनकर भागा जंगली बिल्ला
एक दिन महाराणा प्रताप के बेटे अमरसिंह घास की रोटी खा रहे थे, तभी एक जंगली बिल्ला उनके हाथ से रोटी छीनकर भाग गया। नन्हे और भूखे युवराज बिल्ले को देखकर डर के मारे रोने लगे। ये देखकर महाराणा प्रताप बहुत उदास हो गए। उन्हें काफी पीड़ा हुई। महाराणा का मनोबल टूट गया और उन्होंने अकबर को आत्मसमर्पण करने वाला पत्र लिखकर भेज दिया।
पृथ्वीराज की कविता से जागा प्रताप का स्वाभिमान
अकबर को जब महाराणा प्रताप का पत्र मिला तो उसने दरबारियों के सामने महाराणा प्रताप सहित पूरी राजपूत जाति को अपमानजनक शब्द कहे। अकबर के दरबार में महाराणा प्रताप के एक प्रशंसक पृथ्वीराज राठौड़ भी थे। उन्हें प्रताप का आत्मसमर्पण करना अपमानजनक लगा, लेकिन उस समय वो चुप रहे। इसके बाद पृथ्वीराज ने महाराणा प्रताप को उनकी उपलब्धियों और वीरता का वर्णन करते हुए एक पत्र लिखा।
पत्र में लिखी कविता
अरे घास री रोटी ही, जद बन बिलावडो ले भाग्यो,
नान्हों सो अमरयो चीख पड्यो, राणा रो सोयो दुःख जाग्यो।
हूं लड्यो घणो, हूं सह्यो घणो, मेवाडी मान बचावण नै,
में पाछ नहीं राखी रण में, बैरया रो खून बहावण नै।
फिर आखिरी सांस तक लड़ते रहे महाराणा प्रताप
पृथ्वीराज के पत्र को पढ़कर महाराणा प्रताप का स्वाभिमान जाग उठा। वे तमाम दुख-तकलीफों को भुलाकर अन्याय के खिलाफ लड़ने को फिर तैयार हो गए और आखिरी सांस तक लड़ते रहे। महाराणा प्रताप ने अकबर की सेना को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया। 30 साल कोशिश करने के बाद भी अकबर महाराणा प्रताप को बंदी नहीं बना सका।
हल्दीघाटी का युद्ध याद अकबर को जब आ जाता था,
कहते है अकबर महलों में सोते-सोते जग जाता था।
महाराणा के निधन की खबर सुनकर रो पड़ा था अकबर
महाराणा प्रताप की वीरता के दुश्मन भी कायल थे। उनका भाला 81 किलो का था और उनकी छाती के कवच का वजन 72 किलो था। भाला, कवच, ढाल और दो तलवारों का वजन 208 किलो था। वहीं महाराणा प्रताप 110 किलो के थे। उनकी लंबाई 7 फीट 5 इंच थी। 208 किलो के वजन के साथ वे रणभूमि में लड़ते थे। उनका घोड़ा चेतक 26 फीट का नाला पार कर गया था जिसे मुगल सैनिक पार नहीं कर पाए। 19 जनवरी 1597 को प्रताप वीरगति को प्राप्त हुए। उनके निधन की खबर सुनकर अकबर की आंखें भी नम हो गई थीं।