भोपाल। हाल ही में बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में हुए भाजपा विधायकों के प्रशिक्षण शिविर में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया समेत कई बड़े नेताओं ने भाग लिया। दो दिवसीय इस कार्यक्रम में नेताओं को एक रात उज्जैन में ही बिताना था। लेकिन पुरानी परंपराओं के अनुसार ज्योतिरादित्य सिंधिया और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उस रात उज्जैन में नहीं रूके। दोनों रात में इंदौर चले गए। आईए जानते हैं कि आखिर ऐसी क्या मान्यता है कि कोई भी राजा या मुख्यमंत्री उज्जैन में रात बिताने से डरता है।
क्या है मान्यता?
दरअसल, उज्जैन में रात को रूकने को लेकर एक मिथक है और यह मिथक काफी लंबे समय से चलता आ रहा है। इसी मिथ के चलते यहां कोई भी राजा, मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति या देश का प्रधानमंत्री कभी भी नहीं रूकता। मालूम हो कि बाबा महाकाल को उज्जैन का राजाधिराज माना जाता है। ऐसी धारणा है कि एक राज्य में कभी भी दो राजा नहीं रूक सकते। अगर कोई रूक भी जाता है तो उसे खामियाजा भुगतना पड़ता है। आज भी लोग इस परंपरा को निभा रहे हैं। वर्तमान में भी कुछ ऐसी घटनाएं हुई हैं। जिसे लोग इस मिथक से जोड़कर देखते हैं।
मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई थी
कहा जाता है कि राजा-महाराज युग की समाप्ति के बाद यानी आजादी के बाद जब देश के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई महाकालेश्वर के दर्शन करने पहुंचे और उज्जैन में एक रात रूके तो उनकी सरकार अगले ही दिन गिर गई। इसके अलावा कर्नाटक के सीएम वाईएस येदियुरप्पा भी एक बार उज्जैन में रात को रूके थे। तब 20 दिनों के अंदर ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। वर्तमान में सिंधिया राजघराने को लेकर कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य के बाद इस घराने से कोई भी राजा रात को उज्जैन में नहीं रूका और जो पहले रूके वो अपनी आपबीती कहने के लिए जीवित नहीं रहे।
राजा भोज के समय से ही कोई नहीं रूकता
वहीं वर्तमान में सिंधिया राजघराने के राजा ज्योतिरादित्य सिंधिया भी उज्जैन में रात को नहीं रूकते। साथ ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी यहां नहीं रूकते, सिंहस्थ के दौरान वो दिन में उज्जैन में होते थे और रात होते ही भोपाल लौट आते थे। मंदिर से जुड़े रहस्य और सिंघासन बत्तीसी के अनुसार राजा भोज के समय से ही कोई भी राजा उज्जैन में रात्रि निवास नहीं करता।
मंदिर की संरचना
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग के रूप में शिव विराजमान हैं। मंदिर के तीन भाग हैं, जहां सबसे निचे ज्योतिर्लिंग है। भगवान शिव के साथ यहां माता पार्वती, गणेश और कार्तिकेय विराजमान हैं। बीच वाले हिस्सें में ओंकारेश्वर मंदिर और सबसे ऊपर नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थित है। बतादें कि भगवान शिव का यह एकमात्र मंदिर है जहां भस्म आरती की जाती है और इसे देखने के लिए दुनिया भर के लाखों पर्यटक आते हैं।
ऐसे हुआ था मंदिर का निर्माण
मान्यताओं के अनुसार, उज्जैन में महाकाल के प्रकट होने और मंदिर की स्थापना से जुड़ी एक कहानी है। इस कहानी के अनुसार दूषण नामक असुर से उज्जैन निवासियों की रक्षा करने के लिए भगवन शिव महाकाल के रूप में प्रकट हुए थे। महाकाल द्वारा असुर के वध के बाद भक्तों ने भगवान शिव से उज्जैन प्रान्त में ही निवास करने की प्रार्थना की, जिसके बाद महाकाल ज्योतिर्लिंग के रूप में वहां विराजमान हो गए। वर्तमान मंदिर को श्रीमान रानाजिराव शिंदे ने 1736 में बनवाया था। इसके बाद श्रीनाथ महाराज महादजी शिंदे और महारानी बायजाबाई शिंदे ने इस मंदिर में कई बदलाव किए और समय-समय पर मरम्मत भी करवाई थी।