Mahakaleshwar Temple: मध्यप्रदेश, आस्था का केंद्र माना जाता है या भक्तों के लिए पहली पसंद उज्जैन में स्थित बाबा महाकाल का स्थल महाकालेश्वर मंदिर का नाम सामने आता है। क्या आपने बाबा महाकाल के इस खास स्थल के बारे में जानकारी है आखिर कहां से आया महाकाल नाम और कैसा रहा इसका परिसर। आइए जानते है- आज से महाकाल की नगरी उज्जैन में बाबा महाकाल के भक्तों के लिए महान महाकाल लोक कॉरिडोर की स्थापना हो रही है जानिए कैसा होगा आज का कार्यक्रम।
जानिए क्या है महाकालेश्वर का इतिहास और पुराणों में वर्णन
आपको बताते चलें कि, पुराणों में महाकाल मंदिर का इतिहास मिलता है जिसमें पुराणों के अनुसार महाकालेश्वर मंदिर की स्थापना ब्रह्मा जी ने की थी. प्राचीन काव्य ग्रंथों में भी महाकाल मंदिर का जिक्र किया गया है. ऐसा कहा जाता है कि इस भव्य मंदिर की नींव व चबूतरा पत्थरों से बनाया गया था और मंदिर लकड़ी के खंभों पर टिका था। जैसा कि, बाबा महाकाल की नगरी में ऐसी मान्यता मानी जाती है कि, गुप्त काल से पहले मंदिर पर कोई शिखर नहीं था, मंदिर की छतें लगभग सपाट थीं, अस्तित्व के विषय में तो जानकारी नहीं मिलती है लेकिन कहा जाता है कि, इस वन में स्थित होने के कारण ही यह ज्योतिर्लिंग महाकाल कहलाया और आगे जाकर मंदिर को महाकाल मंदिर कहा जाने लगा. स्कन्दपुराण के अवन्ती खण्ड में भगवान महाकाल का भव्य प्रभामण्डल प्रस्तुत किया गया है. इसके अलावा पुराणों में भी महाकाल मंदिर का उल्लेख है। माना जाता है कि, महाकाल का वर्णन कालिदास ने मेघदूतम के पहले भाग में किया था जहां पर शिवपुराण के अनुसार नन्द से आठ पीढ़ी पहले एक गोप बालक द्वारा महाकाल की प्राण-प्रतिष्ठा हुई है।
जानिए उज्जैन का इतिहास
आपको बताते चलें कि, उज्जैन का इतिहास जैसे कि, आप जानते ही है इसका प्राचीन नाम उज्जयिनी था जिसे पहले अवंति राजा के नाम पर रखा गया था। इसका इतिहास कहें तो, उज्जैन विज्ञान और गणित की रिसर्च केंद्र हुआ करता है. कई महान गणितज्ञ, जैसे भास्कराचार्य, ब्रह्मगुप्त और वाराहमिहिर और खगोलविद् ने उज्जैन को अपने शोध का केंद्र बनाया हुआ था. शोध के लिए इसी जगह को चुनने की कई वजह थीं। कहा जाता है कि, भारतीय गणितज्ञ समय की गणना करते थे. दुनियाभर में मानक समय इसी रेखा से तय किया जाता है. इसे ग्रीनविच रेखा के नाम से भी जाना जाता है।
जानिए कैसा है बाबा महाकाल का परिसर
आपको बताते चलें कि, बाबा महाकाल के परिसर की बात करें तो, महाकाल मंदिर जिनता भव्य है उसका परिसर भी उतना ही भव्य है. यह मंदिर तीन मंजिला है जिसमें सबसे नीचे महाकालेश्वर, बीच में ओंकारेश्वर और सबसे ऊपर वाले हिस्से में नागचंद्रेश्वर के लिंग स्थापित है. सबसे ऊपर वाले हिस्से का दर्शन तीर्थ यात्री केवल नाग पंचमी पर ही कर सकते हैं. इस मंदिर-परिसर में कोटि तीर्थ नाम का एक बहुत बड़ा कुंड भी है, जिसकी शैली सर्वतोभद्र बताई जाती है। यहां पर इस कुंड का हिंदू धर्म में बहुत ज्यादा महत्व माना जाता है. इस कुंड की सीढ़ियों से सटे रास्ते पर परमार काल के दौरान बनाए गए मंदिर की मूर्तिकला की भव्यता को दर्शाने वाले कई तस्वीर है. इस कुंड के पूरव में एक बहुत बड़ा आंगन है जिसमें गर्भगृह की ओर जाने वाला रास्ता है. इस आंगन के उत्तर की तरफ एक कमरा है, जिसमें श्री राम और देवी अवंतिका की पूजा की जाती है।
जानें क्या महाकाल लोक परियोजना
आपको बताते चलें कि, आपको बताते चलें कि, महाकाल लोक की परियोजना की बात की जाए तो, परियोजना के तहत मंदिर परिसर का करीब सात गुना विस्तार किया जाएगा. पूरी परियोजना की कुल लागत करीब 850 करोड़ रुपये है. मंदिर के मौजूदा तीर्थयात्रियों की संख्या, जो लगभग 1.5 करोड़ प्रति वर्ष है, दोगुना होने की उम्मीद है. उसी को देखते हुए यह प्रोजेक्ट शुरू किया गया था. इस परियोजना के विकास की योजना दो चरणों में बनाई गई है। इस परियोजना की बात की जाए तो, महाकाल पथ में 108 स्तंभ (खंभे) हैं जो भगवान शिव के आनंद तांडव स्वरूप (नृत्य रूप) को दर्शाते हैं. महाकाल पथ के किनारे भगवान शिव के जीवन को दर्शाने वाली कई धार्मिक मूर्तियां स्थापित की गई हैं. पथ के साथ भित्ति दीवार चित्र शिव पुराण की कहानियों पर आधारित है जिनमें सृजन कार्य, गणेश का जन्म, सती और दक्ष कहानियां आदि शामिल हैं। यहां पर बताते चलें कि, बाबा महाकाल के बारे में बात करें तो, 2.5 हेक्टेयर में फैला प्लाजा क्षेत्र कमल के तालाब से घिरा हुआ है और इसमें फव्वारे के साथ शिव की मूर्ति भी स्थापित है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और सर्विलांस कैमरों की मदद से इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर द्वारा इस पूरे परिसर की चौबीसों घंटे निगरानी की जाएगी।