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भोपाल। देश और खासकर मध्य प्रदेश की राजनीति में सिंधिया राज परिवार का दवदबा अभी भी कायम है। रियासत से सियात में आकर इस राज परिवार के तीन पिढ़ियों ने अपना योगदान दिया है। लेकिन अभी तक इस राज परिवार से मध्य प्रदेश में कोई भी मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है। हालांकि कई बार ऐसे मौके आए हैं जिसमें मुख्यमंत्री का दावेदार सिंधिया परिवार से सामने आया है। हाल के दिनों में देखें तो 2018 में कांग्रेस की जीत के बाद कई लोग ये मांग कर रहे थे कि ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) को मुख्यमंत्री बनाया जाए, लेकिन अंत में कमलनाथ (Kamal Nath) ने बाजी मारी और वो मुख्यमंत्री बन गए। ज्योतिरादित्य सिंधिया से पहले उनके पिता माधवराव सिंधिया भी मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री बनते-बनते रह गए थे।
कांग्रेस में माधवराव सिंधिया का कद काफी बड़ा था
माधवराव सिंधिया (Madhavrao Scindia) आज इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन उनकी चर्चा राजनीतिक कारणों से हमेशा होते रहती है। पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे माधवराव सिंधिया का जन्म 10 मार्च 1945 को मुंबई में हुआ था। उनकी मां विजयाराजे सिंधिया (Vijaya Raje Scindia) पहले से ही राजनीति में थीं। उन्होंने ही माधवराव सिंधिया को राजनीति में लाया था। हालांकि बाद में कुछ कारणों से दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए थे। माधवराव कांग्रेस में चले गए तो वहीं उनकी मां भाजपा की सदस्य बनीं रहीं। कांग्रेस में जाने के बाद माधवराव सिंधिया का कद काफी बड़ा हो गया था। इतना बड़ा कि उन्हें मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा माना जाने लगा था। लेकिन वो दो बार मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए थे।
राजीव गांधी चाहते थे कि सिंधिया बनें मुख्यमंत्री
यह किस्सा है साल 1989 का जब मध्य प्रदेश में चुरहट लॉटरी कांड हुआ था। उस समय प्रदेश में अर्जुन सिंह की सरकार थी और वे चुरहट से विधायक थे। यही कारण था कि उनपर इस्तीफे का दवाब बनने लगा। लोग ये मांग करने लगे कि जिस मुख्यमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र में ये कांड हुआ है, उन्हें मुख्यमंत्री के पद पर बने रहने का काई औचित्य नहीं है। तब केंद्र में भी कांग्रेस की सरकार थी और राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। उन्होंने ने सोचा चुरहट कांड का बवाल और ज्यादा बढ़े इससे पहले ही मुख्यमंत्री को बदल दिया जाए। उनकी इच्छा थी कि माधवराव सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाया जाए। लेकिन, अर्जुन सिंह भी राजनीति के माहिर खिलाड़ी थे। उन्होंने साफ कर दिया कि वे इस्तीफा नहीं देंगे। सिधिंया भी तब तक भोपाल पहुंच चुके थे। वो बस सीएम बनने की घोषणा का इंतजार कर रहे थे। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
अर्जुन सिंह के शर्त ने पासा पलट दिया
अर्जुन सिंह ने अपना इस्तीफा देने से पहले कांग्रेस आलाकमान के सामने एक शर्त रख दी थी। जिसमें उन्होंने कहा था कि मैं तभी इस्तीफा दूंगा जब मोतीलाल वोरा को सीएम बनाया जाएगा। इसके बाद एक समझौते के तहत वोरा को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया गया और सिंधिया बस बनते-बनते रह गए। इस घटना से तात्कालिन प्रधानमंत्री राजीव गांधी अर्जुन सिंह से नाराज हो गए। उन्होंने पार्टी में अर्जुन सिंह के धुर विरोधी शायामाचरण शुक्ल को ज्वाइन करवा दिया और मोतीलाल वोरा के बाद शुक्ल को ही मुख्यमंत्री बनाया गया।
दूसरी बार दिग्विजय ने दे दी थी सिंधिया को मात
अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश की राजनीति से निकल कर केंद्र में चले गए। लेकिन उन्होंने सिंधिया को कभी भी मुख्यमंत्री नहीं बनने दिया। एक बार फिर से 1993 में ऐसा लगा कि सिंधिया ही मुख्यमंत्री बनेंगे लेकिन, अर्जुन सिंह गुट ने सिंधिया राजघराने के प्रतिद्वंदी और राघौगढ़ राजघराने के राजा दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनवा दिया। कहा जाता है कि उस वक्त अर्जुन सिंह, दिग्विजय के राजनीतिक गुरू हुआ करते थे। इस कारण से दूसरी बार भी सिंधिया मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए।