Lok Sabha Election 2024 Result: लोकसभा चुनाव 2024 के नतीजों के अनुसार देश में लगातार तीसरी बार एनडीए की सरकार बनना तय हो गया है। इसी के साथ जनता ने इंडिया गठबंधन को 18वीं लोकसभा में मजबूत विपक्ष की भूमिका निभाने का जनादेश दिया है। लेकिन इस बार सत्ता के बदले समीकरण के चलते जनता दल यूनाइटेड (JDU) के मुखिया और बिहार के सुशासन बाबू कहे जाने वाले नीतीश कुमार और तेलुगु देशम पार्टी (TDP) के सर्वेसर्वा एन. चंद्रबाबू नायडू की अहम भूमिका रहेगी। बिहार और आंध्र प्रदेश की राजनीति के ये क्षत्रप एनडीए की नई सरकार में अपने राज्य और पार्टी की ज्यादा हिस्सेदारी के लिए सौदेबाजी और शर्तें रखेंगे।
नीतीश और नायडू दोनों कैबिनेट में अपने सहयोगियों के लिए ज्यादा और महत्वपूर्ण विभाग और अपने राज्यों के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए भारी-भरकम पैकेज की शर्त रख सकते हैं।
बीजेपी के लिए असुविधाजनक स्थिति
माना जा रहा है कि अब नई सरकार में बीजेपी को अपने कोर एजेंडा से जुड़े मुद्दों पर कड़े और तेजी से फैसले लेने में असुविधाजनक स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। इस हालत में बीजेपी को यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC), एक देश एक चुनाव और जनसंख्या नियंत्रण कानून जैसे अपने कोर एजेंडा से जुड़े मुद्दों पर समझौते को मजबूर होना पड़ सकता है।
बीजेपी पर दबाव बनाएंगे नीतीश-नायडू !
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत न मिल पाने पर अब नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू देश में जातिगत जनगणना और मुसलमानों में पिछड़े वर्ग को आरक्षण का भी दबाव बना सकते हैं। माना जाता है कि नीतीश कुमार बीजेपी की धुर हिंदुत्ववादी राजनीति को लेकर सहज नहीं हैं। यही वजह है कि इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ एनडीए गठबंधन का हिस्सा होने के बाद भी उन्होंने बिहार के अल्पसंख्यक समुदाय को लगातार यही संदेश देने का प्रयास किया है कि वे बीजेपी के साथ गठबंधन में होने के बाद भी उनके हितों की रक्षा करने से पीछे नहीं हटेंगे। इसके अलावा वे बीजेपी को सहज करने वाले जाति आधारित सर्वेक्षण और आरक्षण व्यवस्था के प्रबल पैरोकार भी हैं। उनकी पार्टी का ये मानना है कि समाज में सभी वर्गों को उनकी असल संख्या के अनुपात में आरक्षण मिल रहा है या नहीं, इसके लिए जातियों की सही जनसंख्या का पता लगाना जरूरी है। इसी के चलते बिहार में उनकी सरकार जातिगत जनगणना भी करा चुकी है।
…तो NDA छोड़ सकते हैं नीतीश कुमार !
पूर्ण बहुमत के मैजिक फिगर 272 से दूर रहने वाली बीजेपी जातिगत जनगणना और अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर यदि नीतीश कुमार के नजरिए का समर्थन नहीं करती है तो वे एनडीए का साथ छोड़ने से गुरेज नहीं करेंगे।
चंद्रबाबू नायडू का रुख कैसा ?
पुराने गिले-शिकवे भुलाकर 6 साल बाद फिर एनडीए का हिस्सा बनी तेलुगु देशम पार्टी राज्य में लोकसभा की 25 में से 16 सीट हथियाने में कामयाब रही है। इतना ही नहीं आंध्र प्रदेश विधानसभा के चुनाव में टीडीपी ने 175 में से 133 सीट हासिल कर अपना झंडा ऊंचा रखा है। यहां तमाम प्रयास के बाद भी बीजेपी के खाते में महज 8 सीट ही आई है। ऐसे में माना जा रहा है कि आंध्र प्रदेश की राजनीति में लंबे समय बाद सत्ता में आए चंद्रबाबू नायडू राज्य में अपनी पकड़ बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार के साथ तोलमोल करने से परहेज नहीं करेंगे।
इस मुद्दे पर बीजेपी और TDP एक राय नहीं
अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दों को लेकर भी बीजेपी और तेलुगु देशम एक राय नहीं है। लोकसभा चुनाव में हिंदू बहुसंख्यकों को रिझाने के लिए बीजेपी ने मुसलमानों के आरक्षण के खिलाफ विरोध को हवा दी। इसके विपरीत टीडीपी के मुखिया एन. चंद्रबाबू नायडू चुनाव प्रचार के दौरान ये दोहराते नजर आए कि वे मुसलमानों के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण का समर्थन करते हैं और ये आगे भी जारी रहेगा। उन्होंने हज यात्रा पर जाने वाले मुसलमानों को सरकार की ओर से एक लाख रुपए देने का वादा भी किया।
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बीजेपी के एजेंडा में रोड़ा
अब बीजेपी के कोर एजेंडा से जुड़े उन मुद्दों पर नजर डालते हैं जिन पर अब नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू रोड़े अटका सकते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन में रोड़ा अटक सकता है। देश में वन नेशन वन इलेक्शन नीति लागू करना बीजेपी का सबसे बड़ा एजेंडा है। चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे देश की सबसे बड़ी जरूरत बताते हुए अगली सरकार में इसे अमल में लाने की बात खुलकर कह चुके हैं। अब सत्ता के बदले समीकरण में ये माना जा रहा है कि नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू उनके इस एजेंडा को अमल में लाने में बाधा बन सकते हैं। मोदी सरकार देश में समान नागरिक संहिता यानी UCC लागू करने की दिशा में आगे कदम बढ़ा चुकी है। वहीं जेडीयू और टीडीपी जैसे सहयोगी संगठन अल्पसंख्यक वर्ग में अपने वोट बैंक को नाराज करने से बचने के लिए इस मुद्दे पर बीजेपी को पीछे कदम खींचने को मजबूर कर सकते हैं। माना जा रहा है कि सरकार के गठन में नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के साथ लोग जनशक्ति पार्टी रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान और अन्य सहयोगी भी सरकार में बड़ी हिस्सेदारी को लेकर बीजेपी पर दबाव की रणनीति अपनाएंगे।