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नई दिल्ली। गर्मियों के दौरान काला कोट और गाउन पहनने से छूट देने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। जिसमें कहा गया है कि, न्यायालय और देश भर के उच्च न्यायालयों में वकीलों को गर्मियों के दिनों में काला कोट और गाउन पहनने से छूट का प्रावधान किया जाए। वकील शैलेंद्र मणि त्रिपाठी द्वारा दायर याचिका में स्टेट बार काउंसिल्स को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
वकील का कहना है कि, भीषण गर्मी में कोट पहनकर एक अदालत से दूसरी अदालत में जाना वकीलों के लिए काफी मुश्किल भरा होता है। ऐसे में जानना जरूरी है कि आखिर वकील काला कोट ही क्यों पहनते हैं कोई और कोट क्यों नहीं पहनते?
इंग्लैंड से शुरू हुई थी परंपरा
कभी न कभी आपके मन में भी ये सवाल जरूर उठा होगा। बतादें कि कोर्ट में काला कोट पहनने की परंपरा इंग्लैंड से शुरू हुई थी। भारतीय न्यायिक व्यवस्था भी अंग्रेजों के सिस्टम से ही चलती है। इसलिए भारतीय कोर्ट में वकीलों के ब्लैक कोट पहनने का रिवाज अब भी चल रहा है। वहीं वकालत की शुरूआत की बात करें तो वर्ष 1327 में एडवर्ड तृतीय द्वारा इसकी शुरूआत की गई थी। जिसके बाद यह भी तय किया गया कि जजों को कैसे कपड़े पहनने चाहिए।
पहले वकील इस रंग के गाउन पहनते थे
वहीं वकीलों को चार कैटेगरी में बांटा गया था। पहला-स्टूडेंट, दूसरा- प्लीडर, तीसरा- बेंचर और चौथा -बैरिस्टर। ये सभी जज का स्वागत करते वक्त लाल और भूरे रंग से तैयार गाउन पहनते थे। लेकिन सन् 1600 में वकीलों की वेशभूषा में बदलाव किया गया और उन्हें जनता के अनुसार ही कपड़े पहनने को कहा गया। सन 1694 में चेचक की बीमारी से ब्रिटिश क्वीन मैरी का निधन हो गया है। जिसके बाद उनके पति राजा विलियंस ने सभी जजों और वकीलों को सार्वजनिक रूप से शोक सभा में काले रंग के गाउन पहनकर आने का आदेश जारी किया। कहा जाता है कि राजा ने इस आदेश को कभी रद्द नहीं किया और वहीं से वकीलों के काले कोट पहनने की प्रथा शुरू हुई।
1961 में काला कोट को अनिवार्य कर दिया गया
बाद में वकीलों के इस पहनावे में सफेद बैंड और टाई को जोड़ दिया गया। भारत में अधिनियम 1961 के तहत अदालतों में सफेद बैंड टाई के साथ काला कोट पहन कर आना अनिवार्य कर दिया गया। ये ड्रेस आज वकीलों की पहचान बन गई है। हालांकि, अब वकील शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने सुप्रीम कोर्ट से गर्मियों में काला कोट और गाउन पहनने से छूट देने की मांग की है।