Kurwai State Fort : भारत में ऐसे कई किले है जो बदहाली के चलते अपना इतिहास खो चुके है तो कई ऐस भी किले है जो सरकार के अधीन है, सरकार के अधीन इन किलों को टूरिस्ट प्लेस बना दिया है। हालांकि कुछ ऐतिहासिक किले आज भी अपने इतिहास की गवाही देते है। मध्यप्रदेश की धरा पर ऐसे कई किले बने जो सालों बाद धरासाई हो गए तो कुछ खंडर हो गए, लेकिन एक किला ऐसा भी है जहां आज भी नवाब अपने शान ओ शौकत के साथ ठाठ से रहते है।
कभी स्टेट हुआ करती थी कुरवाई
जी हां हम बात कर रहे है मध्यप्रदेश के विदिशा जिले की एक छोटी सी तहसील कुरवाई की, जिसे एक जमाने में कुरवाई स्टेट के नाम से जाना जाता था। कुरवाई भले ही एक छोटी सी तहसील हो लेकिन इसे अब तहसील कहना ज्यादा मुनासिब होगा। क्योंकि नवाब सरवर अली खान यहां के आखिरी नवाब हुए। इस किले का निर्माण नवाब दिलेर मोहम्मद खान ने सन 1698 कराया था। दिलेर मोहम्मद खान के बाद नवाब नजफ मोहम्मद खान ने 1822—1887 तक कुरवाई रियासत संभाली। इसके बाद सन 1867 से 1895 तक नवाब मुनव्वर अली खान ने किले पर राज किया। सन 1870 से 1906 तक नवाब याकूब अली खान कुरवाई स्टेट के नवाब रहे। इसके बाद कुरवाई सलतनत की कमान सरवर अली खान ने संभाली। सरवरी अली खान के इंतकाल के बाद उनके बेटे नवाब जफर अली खान आज भी कुरवाई के किले को संवार कर रखे हुए है।
आज भी है नवाब सरवर के वंशज
सबसे बड़ी बात तो यह हे कि पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के पूर्व चेयरमैन शहरयार खान की जन्मस्थली कुरवाई ही है। नवाब सरवर के पुत्र और पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के लंबे समय तक चेयरमैन रहे शहरयार खान का जन्म कुरवाई के बेगम महल में हुआ था। आजादी के बाद कुरवाई का विलय हो गया, लेकिन नवाब सरवर के वंशज अभी भी यहीं अपने पुश्तैनी किले में स्थित आलीशान कोठी में रहते हैं। कुरवाई रियासत के आखिरी नवाब सरवर अली खान के बेटे जो आज भी किले में रहते है।
वो बताते है कि 1698 में किले का निर्माण कार्य प्रारंभ कर दिया था। दिलेर मोहम्मद खान अपनी सेना के साथ भारत आए थें। भोपाल के दोस्त मोहम्मद खान उनके चचेरे भाई है। नवाब जफर अली खान के अनुसार दिलेर मोहम्मद खान जब लड़ाई में जाते थे तब उन्हें तौहफे के रूप में यह किला दिया गया था। नवाब जफर अली खान बताते है कि उस जमाने में कुरवाई बहुत बड़ी रियासत हुआ करती थी। कुरवाई रियासत झांसी तक लगती थी। नवाब जफर अली खान ने बताया की उनका जन्म 1941 में हुआ था, कुरवाई रियासत की हिस्ट्री उन्होंने अपने पिता सरवर अली खान से सुनी थी।
गंगा जमुना तहजीब मानते आए है नवाब
नवाब जफर अली खान बताते है कि मेरे बालिद सहाब कहते थे कि यहां हम हिंदू—मुसलमान को बरावर रखते है। वो परंपरा उनसे मैने देखी है, जो चली आ रही है उसपर हम आज भी कायम है। हम हिंदुओं के त्यौहारों पर जाते है वो हमारे त्यौहारों पर आते है। उन्होंने बताया की सबसे बडी बात तो है कि की कभी हिंदू मुस्लिम को लेकर कोई फसाद नहीं हुआ। उन्होंने आगे बताया की हमारे जो बालिद थे वो हिंदू और मुस्लिम को एक समान देखते थे। जब भी किसी मस्जिद या किसी मुस्लिम को रहने के लिए जमीन दी जाती थी तो उतनी ही जमीन मंदिर या फिर किसी हिंदू को दी जाती थी। त्योहार कोई भी चाहे होली या दिवाली हम सब मिलकर मनाते थे और आज भी मनाते है, हमने आज भी वो परंपराएं कायम रखी है।
लोग कर रहे हमे बदनाम
नवाब जफर अली खान ने बताया की उन्हें अफसोस की बात एक है कि कुछ हमारे ही लोग , उनका ऐजेंड़ा हमे समझ में नहीं आत वो कुछ सालों से परेशान कर रहे है। इतेफाक की बात तो यह है कि वो घर के लोग ही है। उन्होंने आगे बताया कि एक बार तो हम पर मस्जिद में मूर्ति रखने का इल्जाम लगा दिया। वो इसलिए की एक मस्जिद हमारे किले में बनी हुई है। जहां हमारे परिवार और किले में काम करने वालों के लिए यह एक व्यवस्था है, लेकिन अपने ही और समाज के कुछ लोग बदनाम करने में जुटे हुए है। जबकि ऐसा कुछ नहीं है। कोई मूर्ति नहीं रखी गई पूरी मस्जिद में कैमरे लगे हुए है, लेकिन फिर भी ऐसा किया जा रहा है। जबकि वो लोग नमाज भी पढ़ रहे है उसी जगह, अगर जब मस्जिद में मूर्ति है तो आप नमाज क्यों पढ़ रहे है ये भी एक पांईट वाली बात हैं। जबकि पूरी कुरवाई में एक नहीं दो नहीं बल्कि सैकड़ों मस्जिद है। नवाब जफर अली खान ने आगे बताया की कुछ कट्टरपंथी जो की हमारी ही समाज के है वह यह तक अफवाह फैला रहे है कि हम एक मंदिर बनवा रहे है, जबकि ऐसा कुछ नहीं है। यह बात पूर्ण रूप से गलत है।
इंग्लैड़ में की 8 साल पढ़ाई
नवाब जफर अली खान ने बताया की उन्होंने अपनी शिक्षा इंग्लैड़ से प्राप्त की है। उन्होंने आगे बताया बताते है कि कुरवाई में एक बड़ा मैदान हुआ करता था। जिसमें मेजर ध्यान चंद जैसे दिग्गज खिलाड़ी खेलने आते थे। मशहूर प्लेयर दारा जो पाकिस्तान चले गए वो भी कुरवाई के मैदान में खेले है।