छत्तीसगढ़। अब तक तो आपने सिर्फ देवी-देवताओं के ही मंदिर के बारे में सुना होगा, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि छत्तीसगढ़ में एक ऐसा भी मंदिर है जिसमें कुत्ते ही पूजा होती है। इस मंदिर को कुकुरदेव मंदिर Kukurdev Mandir के नाम से जाना जाता है। यहां वफादारी का दीपक जलाने लोग आते हैं।
दरअसल, कुकुर देव मंदिर एक स्मारक है। एक वफादार कुत्ते की याद में इसे बनाया गया था। ऐसी मान्यता है कि सदियों पहले एक बंजारा अपने परिवार के साथ इस गांव में आया। उसके साथ एक डांंग भी था। इस मंदिर के बनने का किस्सा उसी से जुड़ा है। मान्यता है कि यहां दर्शन करने से कुकुर खांसी व कुत्ते के काटने का कोई भय नहीं रहता है।
शिवरात्रि में मेला भी लगता
चौदहवीं शताब्दी में बने इस मंदिर को 1993 से पुरातत्व विभाग ने अपने अधीन किया,लेकिन मंदिर में केवल औपचारिकता मात्र केयर टेकर की व्यवस्था की गई है। आज तक इसे पर्यटन स्थल का दर्जा नहीं मिल पाया। यहां नवरात्रि और शिवरात्रि में मेला भी लगता है। आस्था और इतिहास को सेमेटे इस मंदिर को पर्यटन के रूप में विकसित किया जाए। तो यहां स्थानीय लोगों को भी फायदा होगा।
मंदिर का इतिहास
इस मंदिर का निर्माण फणी नागवंशी शासकों द्वारा 14वीं-15 वीं शताब्दी में कराया गया था। मंदिर के गर्भगृह में कुत्ते की प्रतिमा स्थापित है और उसके बगल में एक शिवलिंग भी है। कुकुर देव मंदिर 200 मीटर के दायरे में फैला है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर भी दोनों ओर कुत्तों की प्रतिमा लगाई गई है। लोग शिव जी के साथ-साथ कुत्ते (कुकुरदेव) की वैसे ही पूजा करते हैं जैसे आम शिवमंदिरों में नंदी की पूजा होती है।
गणेश प्रतिमा भी मंदिर में स्थापित
मंदिर में गुंबद के चारों दिशाओं में नागों के चित्र बने हुए हैं। मंदिर के चारों तरफ उसी समय के शिलालेख भी रखे हैं लेकिन स्पष्ट नहीं हैं। इन पर बंजारों की बस्ती, चांद-सूरज और तारों की आकृति बनी हुई है। राम लक्ष्मण और शत्रुघ्न की प्रतिमा भी रखी गई है। इसके अलावा एक ही पत्थर से बनी दो फीट की गणेश प्रतिमा भी मंदिर में स्थापित है।
बंजारे ने डंडे से पीट-पीटकर कुत्ते को मार डाला
जनश्रुति के अनुसार, कभी यहां बंजारों की बस्ती थी। मालीघोरी नाम के बंजारे के पास एक पालतू कुत्ता था। अकाल पड़ने के कारण बंजारे को अपने प्रिय कुत्ते को साहूकार के पास गिरवी रखना पड़ा। इसी बीच, साहूकार के घर चोरी हो गई। कुत्ते ने चोरों को साहूकार के घर से चोरी का माल समीप के तालाब में छुपाते देख लिया था। सुबह कुत्ता साहूकार को चोरी का सामान छुपाए स्थान पर ले गया और साहूकार को चोरी का सामान भी मिल गया। कुत्ते की वफादारी से अवगत होते ही उसने सारा विवरण एक कागज में लिखकर उसके गले में बांध दिया और असली मालिक के पास जाने के लिए उसे मुक्त कर दिया। अपने कुत्ते को साहूकार के घर से लौटकर आया देखकर बंजारे ने डंडे से पीट-पीटकर कुत्ते को मार डाला।
कुकुरदेव मंदिर के नाम से विख्यात
कुत्ते के मरने के बाद उसके गले में बंधे पत्र को देखकर उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और बंजारे ने अपने प्रिय स्वामी भक्त कुत्ते की याद में मंदिर प्रांगण में ही कुकुर समाधि बनवा दी। बाद में किसी ने कुत्ते की मूर्ति भी स्थापित कर दी। आज भी यह स्थान कुकुरदेव मंदिर के नाम से विख्यात है।