Krishna Janmashtami 2024 Chauk Uthane ke Niyam: हिन्दूधर्म में हर पूजा के लिए नियम बताए गए हैं। 26 अगस्त को जन्माष्टमी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है। मंदिरों के साथ-साथ घरों में भी पूजन के अलग नियम हैं।
जन्माष्टमी पूजा के बाद किस दिन उठाना चाहिए पूजन
ज्योतिषाचार्य पंडित रामगोविंद शास्त्री (9893159724) के अनुसार हर पूजा को उठाने का नियम होता है। जिस तरह हम भगवान का आव्हन करके पूजा को लगाते हैं। उन्हें विराजते हैं तो उन्हें विधि से विदा करने की भी एक विधि होती है।
कुछ व्रत ऐसे होते हैं जिसमें पूजा करने के बाद तुरंत उठाया दिया जाता है। पर कुछ पूजन ऐसे होते हैं जिनके लिए नियम (Puja Niyam) अलग होते हैं। आइए जानते हैं पंडित के अनुसार श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Shri Krishna Janmashtami Rules in Hindi) की पूजा उठाने के नियम क्या हैं। इसे कितने दिन बाद उठाना चाहिए।
कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा कितने दिन बाद उठानी चाहिए
ज्योतिषाचार्य के अनुसार भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। इस दिन रोहिणी नक्षत्र था। जन्माष्टमी का उत्सव पूरे छह दिन तक चलता है।
ऐसे में मंदिरों में तो ये उत्सव छह दिन तक यानी छठी के दिन तक चलता है। जन्म के दूसरे दिन नामकरण संस्कार (Namkaran Sanskar ke Niyam) आदि होते हैं। ऐसे में घरों में भी जन्माष्टमी के दिन के छह दिन बाद इस पूजा को उठाना चाहिए।
अष्टमी के बाद नवमी, दशमी बीतने के बाद एकादशी के दिन जन्माष्टमी की पूजा उठाना चाहिए।
क्या जन्माष्टमी की पूजा को हिलाना चाहिए
हर पूजा के पूर्ण होने के बाद उसे हिला कर उठा जाता है। ऐसे में जन्माष्टमी की पूजा के लिए भी कहा जाता है कि भगवान का जन्म होने के बाद पूजा के चौक को हल्का सा हिला देना चाहिए। इसे संकेत के रूप में पूजा उठाना कहा जाता है।
जन्माष्टमी की पूजा हिलाते समय क्या बोलना चाहिए
हर पूजा को स्थापित करने और उठाने का नियम होता हैं इस पूजा को उठाते समय भी संस्कृत में श्लोक बोले जाते हैं।
हालांकि गृहस्थ जीवन में इन श्लोकों का उच्चारण नहीं कर पाते हैं तो उनके लिए जिस तरह से संकल्प लिया जाता है उसी तरह पूजा पूरी करने और सुखी समृद्धता की कामना के साथ अगले साल फिर आने की प्रार्थना करके पूजा को हिलाना चाहिए।
दीपावली की पूजा दो बाद उठाई जाती है
चूंकि दीपावली में लक्ष्मी पूजन होता है। इसमें दो दिन माता रानी को घर में विराजते हैं इसके बाद परमा होने के बाद दूसरे दिन यानी दूज पर पूजा उठाने का दुकान और व्यापार को पुन: शुरू करने का विधान हैं।
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