कोरबा से लक्ष्मण महंत की रिपोर्ट। Korba Exclusive News: कभी जिस बिजली संयंत्र ने कोरबा को ऊर्जाधानी बनाया, अब वह इतिहास के पन्नों में दफन हो चुका है। उसकी दूसरी चिमनी भी ध्वस्त कर दी गई है। इस प्लांट का मलबा कबाड़ियों के लिए बेच दिया गया है। एक-एक कर पुर्जे खुल गए और बिकते चले गए।
अविभाजित मध्यप्रदेश का हिस्सा
दरअसल, 70 के दशक में अविभाजित मध्यप्रदेश का हिस्सा रहे छत्तीसगढ़ के कोरबा में एमपीईबी ने भारत हैवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड (BHEL) के सहयोग से कोरबा पूर्व ताप विद्युत संयंत्र परिसर में वर्ष 1976 में 120 मेगावाट की एक इकाई क्रमांक पांच व 1981 में दूसरी इकाई क्रमांक छह स्थापित की गई थी।
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की आपत्ति
यह बजिली संयंत्र काफी पुराना होने की वजह से निर्धारित मानक से अधिक प्रदूषण फैलाने लगा। लिहाजा कुछ साल पहले नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने पूर्व संयंत्र से प्रदूषण अधिक होने पर एतराज जताते हुए बंद करने सिफारिश राज्य सरकार से की थी।
वर्ष 2005 में किया नवीनीकरण
इस संयंत्र को चालू रखने के लिए दोनों इकाइयों का नवीनीकरण वर्ष 2005 में 300 करोड़ से भी ज्यादा राशि खर्च कर किया गया और फिर पुन: पूरी क्षमता से विद्युत उत्पादन होने लगा। बाद में प्रदूषण के मापदंड के नियम कड़े होने पर इकाइयों का परिचालन में दिक्कत आने लगा और आखिरकार कंपनी ने इन दोनों इकाइयों को 31 दिसंबर 2020 की रात 12 बजे बंद कर दिया।
24 घंटे में चिमनियां डिस्मेंटल
अब इस संयंत्र का कबाड़ खरीदने वाली कंपनी द्वारा वर्तमान में लगातार सामान निकाला जा रहा है। संयंत्र के स्ट्रक्चर को गिराया जा रहा है। यह काम भी लगभग अंतिम चरण में है। इसी कड़ी में 24 घंटे के भीतर ही संयंत्र की दोनों चिमनियों के लिए भी डिस्मेंटल कर दिया गया है।
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