नई दिल्ली। दीपावली में पटाखे जलाने की पुरानी परंपरा है। हालांकि कई राज्यों ने वायु प्रदूषण को देखते हुए अपने यहां पटाखों की बिक्री पर रोक लगाया हुआ है। वहीं कई राज्यों ने त्योहार को देखते हुए ग्रीन पटाखे बेचने और इस्तेमाल करने की अनुमति दी है। ऐसे में जानना जरूरी है आखिर ये ग्रीन पटाखे होते कैसे हैं और ये आम पटाखों से कैसे अलग होते हैं?
इन्हें नेचर फ्रेंडली पटाखे भी कहा जाता है
बतादें कि ग्रीन पटाखों को नेचर फ्रेंडली पटाखे भी कहा जाता है। सामान्य पटाखों की तुलना में ये कम प्रदूषण फैलाते हैं। ग्रीन पटाखे ना सिर्फ आकार में छोटे होते हैं, बल्कि इन्हें बनाने में भी कम मैटीरियल का इस्तेमाल होता है। ग्रीन पटाखों में पार्टिक्यूलेट मैटर का विशेष ख्याल रखा जाता है। ऐसे इस लिए ताकि धमाके के बाद इससे कम से कम प्रदूषण फैले।
इन्हें ऐसे पहचान सकते हैं
ग्रीन पटाखे से करीब 20 प्रतिशत तक पार्टिक्यूलेट मैटर निकलता है, जबकि 10 प्रतिशत गैसें उत्सर्जित होती है। आप इन ग्रीन पटाखों को आसानी से पहचान सकते हैं। क्योंकि ग्रीन पटाखों के बॉक्स पर एक क्यूआर कोड बना होता है। जिसे आप NEERI नाम के एप से स्कैन करके पहचान कर सकते हैं। सामान्य पटाखों से सबसे ज्यादा खतरा, हार्ट डिसीज या अस्थमा से पीड़ित मरीजों को होता है। क्योंकि पटाखों से बाहर निकलने वाले पार्टिक्यूलेट मैटर शरीर के अंदर चेल जाते हैं और फेफड़ों में फंस जाते हैं। इन बीमारियों से जुझ रहे लोगों के लिए ये जानलेवा हो सकता है।
NGT ने भी की थी बैन की मांग
मालूम हो कि त्योहारी सीजन को देखते हुए दिल्ली और ओडिशा की सरकारों ने पटाखों की बिक्री पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। इससे पहले एनजीटी ने भी सुप्रीम कोर्ट से पटाखों की बिक्री और उपयोग पर पाबंदी लगाने की मांग की थी। लेकिन कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया था। NGT ने कोर्ट में कहा था कि कोविड-19 महामारी के दौरान उन इलाकों में पटाखों की बिक्री और उपयोग पर पाबंदी लगाई जाए, जहां एयर क्वालिटी पहले से ही खराब स्थिति में है।