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Chanakya Neeti: आचार्य चाणक्य से जानिए शत्रु को उसकी चाल से कैसे मात दें ?

Chanakya Neeti: नीति शास्त्र के आचार्यों की वैसे तो बहुत लंबी परंपरा है लेकिन शुक्राचार्य, महात्मा विदुर और आचार्य चाणक्य इनमें प्रमुख हैं।

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Manya Jain
Chanakya Neeti: आचार्य चाणक्य से जानिए शत्रु को उसकी चाल से कैसे मात दें ?

Chanakya Neeti: नीति शास्त्र के आचार्यों की वैसे तो बहुत लंबी परंपरा है लेकिन शुक्राचार्य, आचार्य बृहस्पति, महात्मा विदुर और आचार्य चाणक्य इनमें प्रमुख हैं। आचार्य चाणक्य ने श्लोक और सूत्र दोनों रूपों में नीति शास्त्र का व्याख्यान किया है। चाणय का कौटिल्य बनना जनहित के लिए था। उनका स्वप्न अखंड भारत बनाना था। इसी के लिए उन्होंने शत्रुओं को उन्ही की चाल से मात दी थी.आज हम चाणक्य की कुछ नीतियाँ पढ़ेगें.

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तदहं सम्प्रवक्ष्यामि लोकानां हितकाम्यया। (Chanakya Neeti)

येन विज्ञानमात्रेण सर्वज्ञत्वं प्रपद्यते ।।

अर्थ: अब मैं मानवमात्र के कल्याण की कामना से राजनीति के उस ज्ञान का वर्णन करूंगा जिसे जानकर मनुष्य सर्वज्ञ हो जाता है।

भावार्थ: चाणक्य कहते हैं कि इस ग्रंथ को पढ़कर कोई भी व्यक्ति दुनियादारी और राजनीति की बारीकियां समझकर सर्वज्ञ हो जाएगा। यहां 'सर्वज्ञ' से चाणक्य का अभिप्राय ऐसी बुद्धि प्राप्त करना है जिससे व्यक्ति में समय के अनुरूप प्रत्येक परिस्थिति में कोई भी निर्णय होने की क्षमता आ आए। जानकार होने पर भी यदि समय पर निर्णय नहीं लिया, तो जानना- समझना सब व्यर्थ है। अपने हितों की रक्षा भी तो तभी सम्भव है।

आपदर्थे धनं रक्षेच्छ्रीमतां कुत आपदः ।

कदाचिच्चलिता लक्ष्मीः सञ्चितोऽपि विनश्यति ।।

अर्थ: आपत्तिकाल के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए, लेकिन सज्जन पुरुषों के पास विपत्ति का क्या काम। और फिर लक्ष्मी तो चंचला है, वह संचित करने पर भी नष्ट हो जाती है।

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भावार्थ: चाणक्य का कहना है, मनुष्य को चाहिए कि वह आपत्तिकाल के लिए धन का संग्रह करे। लेकिन धनी व्यक्ति ऐसा मानते हैं कि उनके लिए आपत्तियों का कोई महत्व नहीं है, क्योंकि वे अपने धन से सभी आपत्तियों से बच सकते हैं, परंतु वे यह नहीं जानते कि लक्ष्मी भी चंचल है। किसी भी समय वह मनुष्य को छोड़कर जा सकती है, ऐसी स्थिति में यह इकट्ठा किया हुआ धन भी किसी समय नष्ट हो सकता है।

मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टस्त्रीभरणेन च।

दुःखितैः सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति।।

अर्थ: मूर्ख शिष्य को उपदेश देने, दुष्ट-व्यभिचारिणी स्त्री का पालन-पोषण करने, धन के नष्ट होने तथा दुखी व्यक्ति के साथ व्यवहार रखने से बुद्धिमान व्यक्ति को भी कष्ट उठाना पड़ता है।

भावार्थ: चाणक्य कहते हैं कि मूर्ख व्यक्ति को ज्ञान देने से कोई लाभ नहीं होता, अपितु सज्जन और बुद्धिमान लोग उससे हानि ही उठाते हैं। उदाहरण के लिए बया और बंदर की कहानी पाठकों को याद होगी। मूर्ख बंदर को घर बनाने की सलाह देकर बया को अपने घोंसले से ही हाथ धोना पड़ा था। इसी प्रकार दुष्ट और कुलटा स्त्री का पालन-पोषण करने से सज्जन और बुद्धिमान व्यक्तियों को दुख ही प्राप्त होता है।

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