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हाइलाइट्स
खतरे में है एमपी के मालवा का अस्तित्व
ओवर एक्सप्लाॅटेड केटेगिरी में सूबे के 26 ब्लॉक
ग्राउंड वॉटर को लेकर 5 ब्लॉक की है क्रिटिकल स्थिति
World Water Day 2024: आज विश्व जल दिवस है। अमूमन हम एक दिन इस पर चर्चा कर इसे भूल जाते हैं। हालांकि मध्य प्रदेश में इसे लेकर स्थिति विस्फोटक हो चली है।
यदि हम अब भी नहीं चेते तो आने वाले सालों में इंदौर में होली खेलने पर प्रतिबंध लग सकता है। वहीं राजगढ़, उज्जैन और शाजापुर में पानी खरीदकर नहाने की मजबूरी शुरु हो जाएगी।
मंदसौर और नीमच में लोग पानी की किल्लत के कारण पलायन भी कर सकते हैं।
ये कोई होली की मसखरी नहीं है
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होली पर अक्सर लोग मसखरी करते हैं, लेकिन ये कोई मसखरी नहीं है। यदि आप चाहते हैं कि ऊपर लिखी लाइनें आपकी जिंदगी की कहीं हकीकत न बन जाए तो आपको अभी इसी समय जागरुक होने की जरूरत है।
यकीं माने हम इस मामले में पहले से ही बहुत देरी कर चुके हैं।
बेंगलुरु का जलसंकट किसी से छुपा नहीं
विश्व जल दिवस (World Water Day 2024) पर यदि हम जल संकट की बात करें तो बेंगलुरु में जारी जल संकट किसी से छुपा नहीं है। शहर के तमाम हिस्सों में लोग पानी की एक-एक बूंद के मोहताज हो गए हैं।
यहां होली खेलने पर प्रतिबंध लग गया है। आपको लगता है कि ये हालात एमपी में नहीं हो सकते तो आप बिल्कुल गलत हैं। प्रदेश में 26 शहर-कस्बे ऐसे हैं जो जलसंकट के बिल्कुल मुहाने पर ही खड़े हैं।
आप ऐसा तो बिल्कुल नहीं चाहेंगे
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यदि आप चाहते हैं कि इंदौर में होली पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाता रहे। यदि आप चाहते हैं कि राजगढ़, उज्जैन, शाजापुर, मंदसौर, नीमच में पानी की किल्लत न हो तो हमें अभी इसे लेकर जागरुक होना पड़ेगा।
आज विश्व जल दिवस (World Water Day 2024) पर हमें पानी की बचत का संकल्प लेना होगा।
खतरे में है मालवा का अस्तित्व
मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र के लिए पहले एक कवाहत कही जाती थी- मालव माटी धीर गंभीर, पग पग रोटी, डग-डग नीर यानी मालवा की माटी ऐसी है जहां कदम कदम पर रोटी और जगह-जगह पर पानी मिल जाता है।
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पर स्थिति अब खतरनाक ही नहीं बल्कि विस्फोटक हो चली है। हालत यह है कि अब भी नहीं चेते तो वो दिन दूर नहीं जब मालवा का अस्तित्व ही खतरे में होगा।
अब समय आ गया है जब सिर्फ विश्व जल दिवस (World Water Day 2024) पर ही नहीं बल्कि साल के 365 दिन इस पर चिंता करने की आवश्यकता है।
एक-दो मानसून रूठे तो यहां भी बेंगलुरु जैसे हालात
इंदौर, उज्जैन, देवास, धार, मंदसौर, रतलाम, नलखेड़ा, सुसनेर, पंसेमल, सोनकच्छ, बदनावर, नल्छा, देपालपुर, सांवेर, सारंगपुर, सीतामउ, नीमच, जावद, आलोट, जावरा, पिप्लौदा, कालापीपल, शुजालपुर, मोहन बड़ौदिया, बड़नगर और घटिया वो इलाके हैं जो भीषण जलसंकट के मुहाने पर खड़े हैं।
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यदि एक-दो मानसून भी इन इलाकों में रूठा तो बेंगलुरु जैसे हालात यहां भी बन जाएंगे।
26 ब्लाॅक ओवर एक्सप्लाॅटेड केटेगिरी में शामिल
केंद्रीय भूजल बोर्ड की 2022 की ग्राउंड वाॅटर रिसोर्स असेस्मेंट रिपोर्ट के अनुसार ऊपर दिये गए सूबे के 26 ब्लाॅक ऐसे हैं जो ओवर एक्सप्लाॅटेड यानी अति शोषित केटेगिरी में है।
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वहीं छिंदवाड़ा, धार जिले के तिरला, इंदौर अर्बन, नरसिंहगढ़ और आष्टा को क्रिटिकल केटेगिरी में रखा गया है।
जमीन के अंदर खत्म हो रहा पानी
इसका मतलब हुआ कि यहां ग्राउंड वाॅटर जितना रिचार्ज (जमीन के अंदर पानी जाना) नहीं हो रहा है। उससे ज्यादा हर साल पानी निकाला जा रहा है।
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इस स्थिति में भविष्य में यहां जमीन के अंदर का पानी खत्म हो जाएगा, जिससे इस क्षेत्र को पानी की भारी किल्लत का सामना करना होगा। इनमें से अधिकतर ब्लाॅक मालवा क्षेत्र के हैं।
चार केटेगिरी में बंटा सूबे का ग्राउंड वाॅटर...
केटेगिरी 01: सेफ यानी सुरक्षित
इस केटेगिरी में वह ब्लाॅक शामिल किए गए जो ग्राउंड वाॅटर रिचार्ज से 70 फीसदी से कम पानी ले रहे हैं। इसमें सूबे के 226 ब्लाॅक शामिल है। यानी यहां फिलहाल चिंता की बात नहीं है।
केटेगिरी 02: सेमी क्रिटिकल यानी अर्ध दोहित
इस केटेगिरी में वह ब्लाॅक शामिल किए गए जो ग्राउंड वाॅटर रिचार्ज से 70 से 90 फीसदी तक पानी उपयोग कर रहे हैं। इसमें सूबे के 60 ब्लाॅक शामिल है। यहां बोर्ड आर्टिफिशियल रिचार्ज की अनुशंसा करता है।
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केटेगिरी 03: क्रिटिकल यानी दोहित
इसमें वह ब्लाॅक शामिल किए गए जो ग्राउंड वाॅटर रिचार्ज से 90 से 100 फीसदी तक पानी निकाल रहे हैं। इसमें सूबे के छिंदवाड़ा, आष्टा, इंदौर अर्बन सहित 5 ब्लाॅक शामिल है। यह ब्लाॅक कभी भी अति शोषित केटेगिरी में आ सकते हैं।
केटेगिरी 04: ओवर एक्सप्लाॅटेड यानी अति शोषित
यह सबसे विस्फोटक स्थिति है। इसमें वह ब्लाॅक शामिल किए हैं जो ग्राउंड वाॅटर रिचार्ज से 100 फीसदी से ज्यादा पानी उपयोग कर रहे हैं। ये 26 ब्लाॅक जमीन के अंदर के पानी को लगातार उपयोग कर खत्म करते जा रहे हैं।
जगह-जगह बोर होने से भी जलस्तर में गिरावट
जगह-जगह बोर होना भी जलस्तर में गिरावट का एक बड़ा कारण है। यहां नियमानुसार एक बोर होने के बाद तीन सौ मीटर के दायरे में दूसरा बोर नहीं किया जा सकता है। लेकिन पूरे प्रदेश में ही इस नियम की धज्जियां उड़ते देखी जा सकती है।
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अगर घर आंगन में या सार्वजनिक स्थान पर ट्यूबवेल खनन करवा हो रहा है तो कस्बों में ये अनुमति नगर पंचायत, जिलों में नगर पालिका और बड़े शहरों में नगर निगम से मिलती है, गर्मी के मौसम में बोरिंग पर प्रतिबंध लग जाने के बाद ये अनुमति एसडीएम से लेनी होती है।
बगैर अनुमति के ट्यूबवेल खनन करने से जुर्माना तो लगता ही है साथ ही खुदे हुए बोर को बंद भी किया जा सकता है, पर यह नियम सिर्फ कागजों में सिमटा रहता है और धड़ल्ले से जगह-जगह बोर हो जाते हैं।
नियम में ये भी कमी
विश्व जल दिवस (World Water Day 2024) पर जल संरक्षण की बात तो खुब होती है। लेकिन केंद्रीय भूजल बोर्ड के नियम में तो दो बोर के बीच निश्चित दूरी का कोई पैमाना ही नहीं है।
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24 सितंबर 2020 को इसे लेकर केंद्र ने नई गाइडलाइन जारी की, जिसके अनुसार अब वे सभी इंडस्ट्री, माइनिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर यूनिट जो पानी का 10 किलो लीटर पर डे से शायद उपयोग कर रही हैं उन्हें सशुल्क बोर्ड से एनओसी लेना होगी।
पहले यह फ्री थी पर अब इसके लिए शुल्क देना होगा। पर इस नियम में ऐसा कहीं कोई उल्लेख नहीं है कि एक बोर से दूसरे बोर के लिए कितनी दूरी जरूरी है। बोर्ड सभी को एनओसी देगा, चाहे वह बोर कुछ मीटर की दूरी पर ही क्यों न हो।
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