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Kisse Kahaniyaan: तबाही का मंजर, जानें कहानी दुनिया के सबसे भीषण महायुद्ध की

Kisse Kahaniyaan: इजराइल-हमास युद्ध में जो स्थिति मिडिल-ईस्ट और दुनिया के अन्य देशों की बन रही है, लगभग उसी स्थिति की शुरुआत 1914 को हुई.

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Kisse Kahaniyaan: तबाही का मंजर, जानें कहानी दुनिया के सबसे भीषण महायुद्ध की

Kisse Kahaniyaan: इजराइल-हमास युद्ध में जो स्थिति मिडिल-ईस्ट और दुनिया के अन्य देशों की बन रही है, लगभग उसी स्थिति की शुरुआत 1914 को हुई.

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प्रथम विश्व युद्ध की नींव पड़ी और यूरोप समेत दुनिया के अनेक हिस्सों तक इसका असर हुआ.

इस युद्ध में दोनों पक्षों से लड़ रहे देशों के अपने-अपने हित थे. चार साल से ज्यादा समय तक चले इस विनाशकारी युद्ध ने दुनिया को अनेक सबक भी दिए. करोड़ों जानें लेने के बाद अंततः 11 नवंबर 1918 को इस युद्ध के समापन की घोषणा हुई लेकिन तब तक बहुत कुछ बर्बाद हो चुका था.

कैसे पड़ा इसका नाम प्रथम विश्व युद्ध

इस युद्ध में रूस, फ्रांस, ब्रिटेन ने सर्बिया की मदद की तो जर्मनी ने आस्ट्रिया की. जर्मन वैज्ञानिक, विचारक अन्सर्ट हेकल ने पहली बार इसे प्रथम विश्व युद्ध नाम दिया. इस महाविनाशकारी युद्ध में लगभग नौ करोड़ सैनिक, 1.3 करोड़ आम नागरिक मारे गए. इसी युद्ध की वजह से फैले स्पैनिश फ्लू ने अलग ही विनाश लीला फैला दी. इसकी चपेट में भी कई करोड़ लोग मारे गए.

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प्रथम विश्व युद्ध को आधुनिक इतिहास का पहला वैश्विक महाभारत भी कहा जा सकता है, असल महाभारत में जिस तरह से देश भर के राजा और उनकी सेनाएं जुटी हुई थीं, ठीक उसी तरह प्रथम विश्व युद्ध में भी दुनिया के देश एक-दूसरे से लड़ रहे थे.

महाशक्तियां टकराई थीं

देखते ही देखते पहले यूरोप की महाशक्तियां आमने-सामने फिर पूरी दुनिया के अन्य देश भी इसमें शामिल होते गए. औद्योगिक क्रांति की शुरुआत थी. सभी बड़े देश चाहते थे कि उनका विस्तार हो. वे अपने प्रभाव वाले देशों से कच्चा माल ला सकें. अपना तैयार माल वहां भेज सकें. इसके लिए अलग-अलग देश अपनी-अपनी सुविधा से कूटनीति करने लगे. एक-दूसरे पर हमले करने लगे. नतीजे में एक-दूसरे के प्रति अविश्वास बढ़ता गया.

कुछ ही महीनों में यह इतना विनाशकारी दौर में पहुंच गया कि सब केवल लड़ रहे थे, शांत कराने की तो किसी को चिंता भी नहीं थी.

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कुल मिलाकर यह लड़ाई यूरोप, एशिया और अफ्रीका तक पहुंच गई. युद्ध जल-थल-नभ, तक लड़ा गया.

भारत और ब्रिटेन थे साथ

भारत उस समय ब्रिटेन की ओर से लड़ रहा था, क्योंकि उस समय भारत पर ब्रिटेन का राज था. जवान और अफसर तो भारत से गए ही थे, करीब दो लाख घोड़े, खच्चर, ऊंट, गए-भैंस, बैल भी भेजे गए थे. आठ लाख भारतीय सैनिकों ने इस युद्ध में हिस्सा लिया था. आंकड़ों के मुताबिक, इनमें से 74 हजार शहीद हो गए थे और हजारों की संख्या में भारतीय सैनिक घायल हुए थे. भारत की अर्थव्यवस्था दिवालिया हो गई थी.

भारत था दांव पर

ब्रिटेन उस समय इस युद्ध में इस कदर डूबा हुआ था कि वह भारत का सब कुछ दांव पर लगा बैठा. लोगों की रोटी तक. बहुत बड़ी मात्रा में अनाज तक भारत से युद्ध में भेजा जा रहा था.

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सैनिकों के सम्मान में दिल्ली में साल 1921 में इंडिया गेट की नींव रखी गई, जो साल 1931 में बनकर तैयार हुआ.

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