हाइलाइट्स
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एम्स में पहली बार हुआ किडनी ट्रांसप्लांट।
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59 साल के पिता ने किडनी देकर बचाई 32 साल के बेटे की जान।
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1 रुपया भी नहीं हुआ खर्च।
AIIMS Bhopal News: जब बच्चे की जान पर खतरा आता है, तो पिता अपने बच्चे के लिए जान की बाजी लगा देता है, बेटे के लिए त्याग का एक ऐसा ही मामला भोपाल के एम्स (AIIMS) अस्पताल से सामने आया है। जहां एक 59 साल के पिता ने अपने 32 साल के बेटे को किडनी देकर उसकी जान बचाई।
आपको बता दें, कि बेटा भूख न लगने और उल्टी, कमजोरी की वजह से पिछले 3 साल से परेशान था। जब उसने एम्स (AIIMS Bhopal News) में जांच कराई तो पता चला कि उसकी किडनी डैमेज हो चुकी है।
जांच में सामने आया कि डायलिसिस या फिर किडनी ट्रांसप्लांट कराने के अलावा अन्य कोई ऑप्शन नहीं है। इस स्थिति में डोनर तलाशना भी काफी मुस्किल था। इस कठिन घड़ी में पिता ने किडनी देने का फैसला लिया। ट्रांसप्लांट सफल होने के बाद अब मरीज और डोनर पूरी तरह से स्वथ्य है। डॉक्टरों ने केक कटवाकर दोनों को डिस्चार्ज किया। मरीज का ट्रांसप्लांट आयुष्मान स्कीम से किया गया। जिससे एम्स में फ्री इलाज हुआ। इलाज में 1 रूपए भी खर्च नहीं हुआ।
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ट्रांसप्लांट 25 की जगह 8 टांकों से कर दिया
किडनी ट्रांसप्लांट सुबह 9 से शाम 4 बजे तक चला। नार्मल सर्जरी में 25 टांके लगाने की जरूरत पड़ती है, लेकिन लेप्रोस्कोपी तकनीक से 8 टांके के जरिए ही ट्रांसप्लांट हो गया।
लेप्रोस्कोपिक रिमूवल
लेप्रोस्कोपिक रिमूवल से 3 छोटे छेद कर दूरबीन से किडनी निकालते हैं। सर्जरी होने के बाद किडनी निकालने के बाद पेट में 5 से 8 टांके लगाने की जरूरत पड़ती है। ओपन सर्जरी नहीं होने से डोनर को लंबे समय तक दर्द नहीं सहना पड़ता। अस्पताल से 2 से 3 दिन में ही डिस्चार्ज किया जा सकता है।
ओपन सर्जरी
ओपन सर्जरी करने के लिए पेट के बड़े हिस्से में चीरा लगाकर किडनी निकाली जाती है। सर्जरी होने के बाद डोनर के पेट पर 20 से 25 टांके लगाए जाते हैं। ज्यादा टांके लगने से डोनर को लंबे समय तक दर्द झेलना पड़ता है।