नई दिल्ली। केरल हाईकोर्ट ने दहेज को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि शादी के समय दुल्हन को उसकी भलाई के लिए दिए गए उपहारों को दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के दायरे में नहीं माना जाएगा।
उपहार को दहेज नहीं कह सकते
उच्च न्यायालय ने यह बात थोडियूर निवासी के द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए कही, हाइकोर्ट से पहले कोल्लम जिला दहेज निषेध अधिकारी ने दुल्हन के माता-पिता द्वारा उपहार में दिए गए गहने वापस करने का आदेश दिया था। केरल उच्च न्यायालय ने एक मामले में सुनवाई करते हुए माना कि शादी के समय दुल्हन के माता-पिता की ओर से उसकी भलाई के लिए उपहार स्वरूप दी गई वस्तुओं को दहेज नहीं माना जा सकता।
कोर्ट ने आदेश का रद्द किया
मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एम.आर.अनीथा ने कहा कि विवाह के समय दुल्हन को बिना किसी मांग के दिए गए उपहार और जो इस अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों के अनुसार बनाई गई सूची में दर्ज किए गए हैं, वो धारा 3(1) के दायरे में नहीं आएंगे, जो दहेज देने या लेने पर रोक लगाती है। HC ने दहेज निषेध अधिकारी के दिए हुए आदेश को रद्द कर दिया।
कोर्ट ने अधिकारी की लगाई फटकार
साथ ही कोर्ट ने कहा कि दहेज निषेध अधिकारी को हस्तक्षेप करने या आदेश जारी करने की कोई शक्ति नहीं थी। क्या अधिकारी ने जांच की थी और पुष्टि की थी कि क्या आभूषण दहेज के रूप में ही प्राप्त हुए थे।
क्या है दहेज निषेध अधिनियम, 1961
इस अधिनियम के तहत दहेज लेने, देने या फिर इसमें सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद और 15 हजार रूपए के जुर्माने का प्रावधान है। दहेज के लिए उत्पीड़न करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए जो कि पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा सम्पत्ति अथवा कीमती वस्तुओं के लिए अवैधानिक मांग के मामले से संबंधित है, के अन्तर्गत 3 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है। धारा 406 के अन्तर्गत लड़की के पति और ससुराल वालों के लिए 3 साल की कैद अथवा जुर्माना या दोनों, यदि वे लड़की के स्त्रीधन को उसे सौंपने से मना करते हैं।
इस मामले में आजीवन कारावास भी हो सकता है
यदि किसी लड़की की विवाह के सात साल के भीतर असामान्य परिस्थितियों में मौत होती है और यह साबित कर दिया जाता है कि मौत से पहले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी के अन्तर्गत लड़की के पति और रिश्तेदारों को कम से कम सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।
दहेज़ निषेध अधिनियम, 1961 के महत्वपूर्ण प्रावधान
दहेज़ निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 2 को दहेज़ (निषेध) अधिनियम संशोधन अधिनियम 1984 और 1986 के तौर पर संशोधित किया गया जिसमें दहेज़ को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया है:- “दहेज़” का अर्थ है प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर दी गयी कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति सुरक्षा या उसे देने की सहमति”
हालांकि केरल हाई कोर्ट ने इस मामले में कहा कि भलाई के लिए दिए गए उपहारों को दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के दायरे में नहीं माना जाएगा।