भोपाल। साल 2018 में रिलीज हुई फिल्म पैडमैन याद है। इस फिल्म को अरूणाचलम मुरूगनथम की वास्तविक जीवनी पर बनाया गया था। उन्होने अपनी पत्नी के लिए सैनिटरी नैपकिन को इतना जरूरी समझा कि उन्होंने एक मशीन का ही आविष्कार कर दिया। इस मशीन के माध्यम से सस्ते दाम पर नैपकिन्स बनाए जाते हैं। सरकार ने उन्हें इसके लिए पदम श्री से भी नवाजा था। वहीं मुरूगनथम के सपने को अब कई लोग आगे बढ़ा रहे हैं। इन्हीं में से एक हैं देवास की ज्योति कर्मा, जो ग्रामीण महिलाओं के लिए निशुल्क सैनेटरी नैपकिन उपलब्ध करवा रही हैं।
शुरूआत में करना पड़ा विरोध का सामना
जरा सोचिए, जहां देश के दूर दराज इलाकों में अभी तक मुलभूत सुविधाएं नहीं पहुंची है। वहां कर्मा, आदिवासी महिलाओं के लिए ये नेक काम कर रही है। हालांकि उन्हें इस दौरान कई बार विरोध का भी सामना करना पड़ता है। आज भी ग्रामीण महिलाएं मासिक धर्म के दौरान सैनेटरी नैपकिन उपयोग करने को लेकर संकीर्ण मानसिकता रखती हैं। लेकिन इसमें उनका कोई दोष नहीं है, दोष है उस महौल का जहां वो रहती हैं।
छोटी सी लापरवाही से कई महिलाओं की चली जाती है जान
आज भी ग्रामीण महिलाएं कई बार मासिक धर्म के दौरान गंदे कपड़े इस्तेमाल करती हैं। इस कारण से वो गम्भीर बीमारियों से ग्रसित हो जाती हैं। कई महिलाओं को तो इस छोटी सी लापरवाही के लिए जान से भी हाथ धोना पड़ता है। वो अब भी अपने परंपराओं से जकड़ी हुई हैं। वहीं अब इन कुरितियों के खिलाफ वन विभाग में पदस्थ वनरक्षक ज्योति कर्मा ने मुहिम छेड़ रखी है। वो अब गांव-गांव में जाकर महिलाओं को जागरूक कर रही हैं।
बंसल न्यूज से ज्योति ने क्या कहा
ज्योति ने अब तक हजारों महिलाओं को निशुल्क नैपकिन उपलब्ध करवाया है। जब बंसल न्यूज डॉट कॉम ने इस पूरे मामले पर ज्योति से बात कि तो उन्होंने कहा कि जब मैं शरूआत में इन इलाकों में जागरूक करने जाती थी तो कई महिलाएं परम्पराओं का हवाला देकर मेरे मुहिम का विरोध करती थीं। लेकिन, वो मेरा विरोध नहीं करती थीं। क्यों कि मैं भी एक आदिवासी थी और वनरक्षक होने के नाते इन इलाकों में पहले भी जाती रहती थी। इस कारण से थोड़ा समय तो जरूर लगता था। लेकिन अंत में मैं उन्हें समझाने में कामयाब हो जाती थी।
उनकी स्थिती को देखकर बूरा लगता था
इस दौरान जब हमने उनके पति राजेश जाट से बात कि तो, उन्होंने कहा कि वनरक्षक होने के नाते ज्योति जब भी ग्रामीण इलाकों में जाती थी और वहां महिलाओं को इस स्थिती में देखती थी तो उसे काफी बूरा लगता था। वह घर पर आकर इस बारे में हमसे बात किया करती थीं। ऐसे में हमने सोचा क्यों न उन महिलाओं की मदद की जाए। फिर हमने ये तय किया कि अपने पैसों से महिलाओं को सैनेटरी नैपकिन उपलब्ध करवाएंगे।
स्वेच्छा से कर रहे हैं ये काम
इस दौरान जब हमने उनसे पूछा कि क्या आपकों इस काम के लिए कभी सरकार का साथ मिला है। इस पर उन्होंने कहा कि ये मैं अपनी स्वेच्छा से कर रहा हूं। इसके लिए मैंने अभी तक किसी से मदद नहीं मांगी है। अगर सरकार इस काम में सहायता करना चाहे तो वो उसकी मर्जी है। हम तो लोगों की ऐसे ही मदद आगे भी करते रहेंगे। राजेश ने आगे बताया कि वो अब अपनी पत्नी के साथ मिलकर वैसे आदिवासी बच्चियों की शादी कराएंगे, जिनकी शादी पैसों की तंगी की वजह से नहीं हो पा रही है।