Jhiram Ghati Attack: 25 मई 2013 का दिन छत्तीसगढ़ कभी नहीं भूल सकता. कांग्रेस के लिए ये किसी काले दिन की तरह है. झीरम घाटी में खेले गए खूनी खेल में छत्तीसगढ़ कांग्रेस की पूरी लीडरशिप खत्म हो गई. आज घटना को 11 साल होने आए हैं. लेकिन आज भी इसे लेकर सियासत उतनी ही ताजा है. सुकमा के झीरम घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के काफिले पर नक्सलियों ने घात लगाकर जो हमला किया, उसमें कांग्रेस के कई कद्दावर नेता समेत 33 लोगों को जान गंवानी पड़ी.
25 मई के दिन क्या हुआ था ?
साल 2013 में छत्तीसगढ़ में विधानसभा के चुनाव होने थे. कांग्रेस सत्ता वापसी के लिये राज्य में परिवर्तन यात्रा निकालने का फैसला करती है. 25 मई 2013 को सुकमा में यात्रा का आयोजन होता है. जिसके लिए कांग्रेस का काफिला 25 गाड़ियों में सवार होकर सुकमा से जगदलपुर के लिए निकलता है. इस काफिले में करीब 200 लोग शामिल होते हैं.
काफिले में कांग्रेस का पूरा शीर्ष नेतृत्व शामिल था. शाम को 4 बजे झीरम घाटी से काफिला जैसे गुजरता है तो उसे रास्ते में पेड़ गिराकर रोक दिया जाता है. इसके बाद काफिले पर 200 से ज्यादा नक्सली अंधाधुंध फायरिंग करते हैं. बताते हैं कि नक्सलियों ने करीब डेढ़ घंटे तक गोलियां चलाई थी. गाड़ियों को चेक कर-करके नेताओं की सांसे छीनी थीं.
तत्कालीन PCC चीफ महेंद्र कर्मा को गोलियों से छलनी कर दिया था. बस्तर टाइगर कर्मा नक्सलियों का मुख्य टारगेट थे. नक्सलियों ने महेंद्र कर्मा के शव पर चढ़कर डांस भी किया था.
कांग्रेस के कई दिग्गजों की हुई थी मौत
योगेन्द्र शर्मा, पूर्व विधायक उदय मुदालियर, मो.अल्लानूर, गनपत नाग, अभिषेक गोलछा, सदासिंह नाग मनोज जोशी, भागीरथी नाग और राजकुमार श्रीवास्तव की गोली लगने से मौके पर ही मौत हो गई. तो वहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री वीसी शुक्ल को कई गोलिया दागी गई थी. जिनकी दिल्ली के मेदंता अस्पताल में 17 दिन बाद मौत हो गई.
इधर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, कद्दावर आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा, नंदकुमार के बड़े बेटे दिनेश पटेल और कोंटा विधायक कवासी लखमा को रस्सियों से बांध कर अलग-अलग जगहों में ले जाया गया. नक्सलियों ने कवासी लखमा को तो छोड़ दिया था, लेकिन महेंद्र कर्मा, नंदकुमार पटेल और दिनेश पटेल की हत्या कर दी थी. दुसरे दिन करीब शाम 4 बजे इन तीन नेताओं के शव बरामद किए गए. नक्सलियों के इस नरसंहार में में 9 कांग्रेसी नेताओं समते 33 लोगों की मौत हो गई थी.
झीरम हत्याकांड की जांच अब भी अधूरी
तत्कालीन UPA सरकार ने झीरम हमले के बाद NIA को जांच का जिम्मा सौंप दिया था. लेकिन आज तक जांच पूरी नहीं हो सकी है. साल 2013 में बीजेपी सत्ता पर काबिज हो गई और केंद्र में भी NDA की सरकार आ गई. तब से लेकर अब तक झीरम हमले का सच सामने नही आ सका है.
राज्य में साल 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी. उस समय के सीएम भूपेश सरकार ने जांच के लिये SIT का गठन किया. जिसे बीजेपी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. किसी ना किसी तरह से झीरम का सच सामने नहीं आने देना भी शक की निगाह से देखा जाने लगा है.
घटना के बाद पीसीसी चीफ बने भूपेश बघेल ने दावा किया कि झीरम के सारे सबूत उनकी जेब में है. सरकार बनने पर सबूत भी बाहर आएंगे और आरोपी भी. लेकिन 2018 में कांग्रेस सरकार बनने के बाद भी नतीजा सिफर ही रहा.
कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई, तो भूपेश बघेल ने बीजेपी पर ही सवाल खड़े कर दिए. सरकारें बदलीं. वक्त बदला. लेकिन झीरम के शहीदों को सियासत के अलावा कुछ भी नहीं मिला. भूपेश बघेल ने केंद्र में सरकार बनने की बनने पर जांच की बात कही. तो बीजेपी ने भी पलटवार में देर नहीं की.
कांग्रेस नेता मलकीत सिंह गैदु ने बीजेपी पर लगाया आरोप
बता दें कि कांग्रेस नेता मलकीत सिंह गैदु हमले में बच गए थे. गैदु ने एक मीडिया संस्थान से कहा कि एनआईए (NIA) ने सही से जांच नहीं की. भूपेश बघेल की सरकार ने कमेटी बनाई, मगर एनआईए ने उसे कोर्ट में चुनौती दी. इससे स्पष्ट है कि भाजपा इस साजिश को साफ नहीं करना चाहती. मलकीत सीधे बीजेपी पर आरोप लगाते हैं. कहते हैं कि बीजेपी और नक्सलियों ने मिलकर इस जघन्य हत्या काण्ड को अंजाम दिया है. उनका मानना है अमूमन नक्सली जब भी कोई बड़ी घटना को अंजाम देते हैं तो कोई ना कोई वीडियो या विज्ञप्ति जारी करते हैं, लेकिन आज 11 साल बीत गये कोई वीडियो या विज्ञप्ति जारी नहीं की गई. इससे साफ हो रहा है कि बीजेपी ही मुख्य साजिशकर्ता है.
झीरम के शहीदों को कब मिलेगा न्याय?
बता दें कि इस हमले का मास्टर माइंड हिडमा को बताया गया था. लेकिन हिडमा झीरम में नहीं था. विकल्प ने यहां का पूरा मोर्चा संभाल रखा था. कहा जाता है कि हमले को अंजाम देने के लिये करीब 1 हजार नक्सली 7 दिनों तक घाटी में मौजूद थे. खैर झीरम घाटी खूनीकांड को 1 के बाद 1 ग्यारह साल बीत गए. लेकिन जांच के नाम पर ढांक के 3 पात और नौ दिन चले अढ़ाई कोस वाली कहावत ही सामने आई.
मगर तमाम कहावतों और सियासी हलचल के बीच सवाल वही कि आखिर कब झीरम की सच्चाई छत्तीसगढ़ की जनता के सामने आएगी और कब पीड़ितों और झीरम के शहीदों को न्याय मिलेगा.